ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लोगों को लगता है कि कोरोना महामारी सरकार द्वारा फैलाया गया कोई झूठ है। जो की चुनाव खत्म होने के साथ खत्म हो जाएगा।
कोरोना को लेकर हर तरफ हाहाकार मचा हुआ है। शहर से गाँव की तरफ भागती जिंदगियां अपनों के पास पहुँचने के लिए बेताब हैं। कितने तो लॉकडाउन लगने के पहले ही घर पहुँच चुके हैं। देश में बेकाबू हुई कोरोना वायरस की दूसरी लहर से कोहराम मचा हुआ है। कोरोना मरीजों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी के बीच देश के कई हिस्सों में ऑक्सीजन की किल्लत से हाहाकार मच गया है। अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहे। इस संकट से जूझने के लिए प्रशासन कितना तैयार है। यह देश में अब तक हुई मौतों से अंदाजा लगाया जा सकता है।
आजकल ऐसी स्थिति हो गई है कि सोशल मीडिया पर वायरल हो रही ख़बरें किसी को सोने नहीं दे रहीं। आँख बंद करते ही रुदन के स्वर सुनाई देते हैं। फोन उठाते ही मौत का समाचार शरीर को झकझोर कर रख देता है। पर ग्रामीण क्षेत्रों में क्या हो रहा है, हमारें गांवो की जनता कैसे इस कोरोना से जूझ रही है? आइये आज हम आपको इसकी हकीकत से रूबरू करवाते हैं।
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ग्रामीणों की कोरोना महामारी को लेकर सोच
हर एक व्यक्ति एक सेहतमंद जिंदगी की तलाश करता है। कोरोना काल में इसकी समझ और बेहतर तरीके से हो गई है। वैसे भी हम में से कोई भी बीमार नहीं पड़ना चाहता है। कहते हैं कि इलाज करवाने से बेहतर है कि हम सही एहतियात बरतें ताकि बीमारी हमें छू भी न पाए। लेकिन क्या ग्रामीण स्तर पर यह संभव है? आज मैं अपना आँखों देखा अनुभव आप सबके सामने साझा कर रही हूँ कि ग्रामीण स्तर पर लोग कोरोना से बचने के लिए कितना जरुरी एहतियात बरत रहे हैं।
कोरोना काल में सेहत और स्वच्छता को लेकर जहाँ लोगों में काफी बदलाव देखा गया है। वहीं ग्रामीण स्तर पर लोग आज भी कोरोना वायरस को हल्के में ले रहे हैं। कुछ दिन पहले ही मैं एक हप्ते की छुट्टी में अपने घर गई थी। आस-पड़ोस में जाने पर पता चला की एक घर में कई-कई लोग बुखार से पीड़ित हैं। लेकिन गांवो में कोरोना जांच की कोई व्यवस्था नहीं हैं। घर-घर लोग खांसी-जुखाम, बुखार, गले में दर्द जो भी कोरोना के लक्षण हैं उससे लोग पीड़ित हैं। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इन सबका एकमात्र सहारा हैं ‘झोलाछाप डाक्टर।’
साबुन ही नहीं, सैनिटाइजर कहाँ से लाएं – ग्रामीण
अगर आपसे आँखों देखी बात बताऊँ तो लोग भी कुछ कम नहीं हैं। डॉक्टर को दिखाने जायेंगे तो कोई भी मास्क नहीं लगाता। जो लगाता भी है तो मुंह ढका होगा और नाक खुली, ऐसे लगाने का क्या फायदा? या फिर मुंह पर लोग गमछा बाँध लेंगे। जब इस बारे में लोगों से बात की गयी कि आप लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं? जिसे लेकर उनका कहना था कि साँस फूलती है, दम घुटता है, कैसे मास्क लगाएं? जब सैनिटाइजर के लिए बात की गई तो जवाब था “ई काव हुआथै? हियाँ गाँव मा हाथ धोवै का साबुन मिल जाये उहै बहुत बाय। यतनी धूल मिटटी मा काम कईके आवा तौ नहाय के खातिर साबुन नाय जुहात हाथ साफ़ करै का सैनिटाइजर कहाँ पाई।” वह कहते हैं कि सैनिटाइज़र क्या होता है ? गांव में हाथ-पैर धोने के लिए साबुन ही मिल जाए तो वही बड़ी बात है। यहां धूल मिटटी में काम करके आने के बाद साबुन ढूंढा जाता है। ऐसे में सैनिटाइज़र कहाँ से मिले।
“मोदी ने फैलाया है वायरस” – ग्रामीण
पिछले हफ़्ते ही मैं अपने पिताजी की दवा लेने पास के बाज़ार में गई थी। वह हमारे परिचय के डॉक्टर हैं तो उन्होंने बैठने के लिए इशारा करते हुए कहा,अच्छा हुआ कोरोना में घर आ गई। दिल्ली की स्थिति तो बहुत ख़राब है। परिवार के साथ रहो कुछ दिन। लेकिन मैं बैठती कहाँ, लोगों की इतनी भीड़ जो थी। बीमार सब हैं। लेकिन एक दूसरे से ऐसे चिपककर बैठे थे। मानों शादी का घर हो। दवा लेने आई एक महिला बोलती है “हमें लागत है मोदी कौनौ वायरस हवा मा उड़ाय देहे हैं जेका देखा उहै बेमार बाय।” महिला कहती हैं कि उन्हें लगता है कि मोदी ने कोई वायरस हवा में उड़ा दिया है। जिसको देखो वह बीमार है।
चुनाव खत्म, कोरोना खत्म – ग्रामीण
महिला की बात सुनने के बाद पास बैठे लोग पहले तो ठहाका लगाकर हंस दिए। फिर बोले “कोरोना वायरस फैला बाय चुनौवा जाये दिया सब सही होय जाये। यइसे पिछली सलिया भी फैला रहा वायरस लकिन चुनाव ख़तम भा सब ठीक होइगा।” लोग कहते हैं कि चुनाव जाने दो, कोरोना वायरस भी सही हो जाएगा। पिछले साल भी ऐसे ही फैला था वायरस। लेकिन चुनाव के बाद सब सही हो गया।
सरकार बना रही है बेवकूफ – सुरेश कुमार
सुरेश कुमार जो तारुन ब्लॉक के रहने वाले हैं उनका कहना है कि ‘पहले हम लोगों को लगता था कि कोरोना वायरस कुछ भी नहीं है। सरकार बेवकूफ बना रही है पर अब बहुत डर लगता है। इतना माहौल खराब हो रहा है तो हमें लगता है ये लहर ज्यादा खतरनाक है। हम भी लोगों को बताने लगे हैं कि हमें सचेत रहने की जरूरत है। हम घर से बिना किसी जरूरी काम के नहीं निकलते न अपने किसी परिवार को निकलने देते हैं।’
सरकार के पास नहीं है कोई व्यवस्था
बेलगरा के रहने वाले अनुज कुमार का कहना है कि ‘हमें सरकार पर विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि सरकार के पास किसी भी चीज की कोई व्यवस्था नहीं है। आज जितने भी सरकारी लोग हो या आम जनता हो, सब ऑक्सीजन की कमी से खत्म हो रहे हैं। सरकार मंदिर बनाने का काम कर रही है। अस्पताल बनाती तो आज ऐसी स्थिति न आती। हर जगह पैसा बांटा करती है। कभी वह यह नहीं सोचती की पेड़-पौधे लगाए जाएं ताकि ऑक्सीजन की कमी न हो। कितने लोग मर रहे हैं सरकार को अंदाजा भी नहीं है। सरकार गलत आंकड़े देती है तो मेरे ख्याल से हमें सतर्क रहना चाहिए। हमें बिना फालतू के घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए।’
लोगों की मौतों का ज़िम्मेदार कौन ?
जाना बाजार के निवासी राहुल दुबे का कहना है कि पिछले बार जब 20 या 30,000 कोरोनावायरस के मामले थे। तब सरकार ने पूरे देश में लॉकडाउन लगा दिया था। इस बार करोड़ों की संख्या में लोग संक्रमित हैं। लाखों की संख्या में लोगों की मौत हो गई है। फिर भी सरकार चुनाव करा रही है। कितने शिक्षकों की मौत हो गई है ड्यूटी के दौरान, इसका जिम्मेदार कौन है? शादियाँ जोरों-शोरों से हो रही हैं। सौ से दो सौ लोग बारात में शामिल हो रहे हैं। जबकि 10 लोगों में 15 लोगों में भी शादी हो सकती है। सरकार को इस पर रोक लगाना चाहिए।
सोचा था अच्छे दिन आएंगे
वाराणसी जिले से जब हमने अपनी एक रिपोर्टर से बात की और जाना की लोग क्या सोच रहे हैं। वह बताती हैं कि वहां की रहने वाली सुमन ने काफी निराश स्वर में कहा कि हम लोगों ने सोचा था कि अच्छा दिन आयेगा। लेकिन आज तो एक ऐसा दिन आया है कि हर तरफ से सिर्फ मौत की खबर आ रही है। वाराणसी जिले की ही रहने वाली सावित्री ने कहा कि जो इस सरकार में हो रहा है ऐसा कभी नहीं हुआ। लोगों के मुंह में जाबा (मास्क) लगा दिया। न कहीं काम है, न कोई कमाई। जनता जीये तो कैसे जीए। चारो तरफ लोग भूख से मर रहे हैं। कोई सुविधा नहीं, कोई विकास नहीं। यह सरकार सिर्फ जनता को मारने का काम कर रही है।
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वैक्सीन लगाने से हो रही मौत – लोग
चित्रकूट से हमारी एक रिपोर्टर ने अपना अनुभव साझा किया। उनका कहना है कि कोरोना महामारी से मौतों का सिलसिला जारी है। ऐसे में लोगों मे डर और भयावह का माहौल बना हुआ है। लोगों में जहाँ ये डर है वहीं चर्चा का विषय भी है कि कहीं कोरोना वैक्सीन लगवाने से तो मौते नहीं हो रही हैं? ज्यादातर लोग 40 वर्ष के ऊपर हैं जिनकी मौत हुई है, उन्हें वैक्सीन लगी थी। वैक्सीन लगवाने के बाद लोगों को बुखार आता है और कई-कई दिनों तक रहता है। फिर सांस लेने में दिक्कत होती है। जब तक अस्पताल ले जाते हैं, रास्ते में ही या अस्पताल में व्यक्ति की मौत हो जाती है।
लेकिन मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ क्योंकि वैक्सीन तो हजारों लाखों लोगों को लगी है। जैसे पहले स्वास्थ्य विभाग के लोगों को, सफाई कर्मचारियों को, सरकारी विभागों मे कार्यकर्ताओं, आंगनबाड़ी, एनम, आशा बहू जैसे बहुत से कार्यकर्ताओं को लगी है। आखिर ये अफवाह कैसे लोगों में फैल रही है? क्या ये सच्चाई है या मौत का कारण कुछ और है? या कोरोना वायरस ज़्यादा उम्र वालों को ज्यादा अटैक कर रहा है? साथ ही कोरोना नियमों और सुरक्षा को लेकर आखिर ग्रामीणों में जागरूकता क्यों नहीं फैलाई जा रही। आज भी गाँवों में रहने वाले लोगों को महामारी सरकार द्वारा की गयी कोई नीति लगती है। लोगों द्वारा यह लगना इस बात की तरफ इशारा करता है कि सरकार किस तरह से जनता को बेवकूफ बनाती आ रही है। जिसके बारे में अब लोग भी अच्छी तरह से जान गए हैं। लेकिन इन सब चीज़ों के बावजूद भी कोरोना महामारी को अफवाह कहकर टाला नहीं जा सकता। लोगों से यही अपील है कि वह सरकार द्वारा दिए गये कोरोना नियमों का पालन करें।
लेखिका : सीनियर प्रोड्यूसर ललिता
संपादिका : संध्या