विधानसभा चुनाव भारत के राज्यों में कराए जाने वाले राज्य-स्तरीय चुनाव होते हैं। इन चुनावों में हर राज्य की जनता अपने राज्य-स्तर के शासन के लिए अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है जिन्हें विधायक कहा जाता है।
एमपी विधानसभा चुनाव 2023 साल के आखिर से पहले कराये जा सकते हैं। अक्टूबर-नवंबर के बीच चुनाव होने की अटकलें लगाई जा रही हैं। हालांकि, चुनाव आयोग ने कोई निश्चित तारीखों का ऐलान नहीं किया है। इस आर्टिकल में हम विधानसभा चुनाव के बारे में बारीकी से समझेंगे और जानेंगे कि यह चुनाव से किस प्रकार से अलग होती है।
विधानसभा चुनाव क्या है?
मौजूदा जानकारी के अनुसार, विधानसभा चुनाव भारत के राज्यों में कराए जाने वाले राज्य-स्तरीय चुनाव होते हैं। इन चुनावों में हर राज्य की जनता अपने राज्य-स्तर के शासन के लिए अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है जिन्हें विधायक कहा जाता है। यह चुनाव आम चुनावों से अलग होते हैं क्योंकि इन चुनावों में चुने हुए विधायक राज्य-स्तर पर सरकार का गठन करते हैं।
विधानसभा चुनाव कैसे होते हैं?
राज्य के प्रत्येक क्षेत्र को विधानसभा क्षेत्र में विभाजित किया गया है। लोकसभा की तरह ही विधानसभा चुनाव का आयोजन निर्वाचन आयोग द्वारा हर पांच साल के अंतराल में किया जाता है। हालांकि, राज्यों के आकार और जनसंख्या के आधार पर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग विधानसभा सीटें हैं। इन्हीं विधानसभा सीटों से राष्ट्रीय पार्टियों (National Parties), क्षेत्रीय पार्टी (Regional Parties) और निर्दलीय पार्टियों के प्रतिनिधि चुनाव में भाग लेते है।
एमपी में विधानसभा की कितनी सीटें हैं?
इस समय क्योंकि एमपी विधानसभा चुनाव आने वाले हैं तो बता दें कि एमपी राज्य 230 निर्वाचन क्षेत्र हैं।
विधानसभा चुनाव लड़ने हेतु योग्यता
– चुनाव लड़ने हेतु उम्मीदवार को भारत का नागरिक होना ज़रूरी है।
– उम्मीदवार का नाम राज्य के किसी भी निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में शामिल होना चाहिए।
– विधायक बनने हेतु उम्मीदवार की आयु 25 वर्ष होना ज़रूरी है। पिछले कई सालों में आयु को कम करने की बातें भी काफी सामने आई हैं लेकिन इस कोई फैसला नहीं आया है।
– विधानसभा चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी का मानसिक रूप से स्वस्थ होना ज़रूरी है।
– प्रत्याशी के खिलाफ किसी भी प्रकार का कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं होना चाहिए।
– उम्मीदवार को राज्य या केंद्र सरकार के किसी लाभदायक पद पर नहीं होना चाहिए।
विधानसभा का कार्यकाल
भारतीय संविधान के अनुसार विधानसभा की कार्यकाल अवधि पांच वर्ष निर्धारित की गयी है। प्रत्येक 5 वर्ष के दौरान निर्वाचन आयोग द्वारा दोबारा चुनाव कराये जाते हैं। किसी भी प्रकार की असाधारण स्थिति में उस राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति को विधानसभा भंग करनें की सलाह दे सकते हैं। हालांकि, भारतीय संविधान के अनुसार, संसद द्वारा आपातकाल की स्थिति में विधानसभा के कार्यकाल को एक वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है लेकिन जैसे ही आपातकाल की स्थिति समाप्त होती है, 6 महीने के अंदर उसका विघटन (विलय) अनिवार्य रूप से हो जाना चाहिए।
विधायक कौन होता है?
विधायक एक जनप्रतिनिधि होता है जिसे क्षेत्रीय लोगों के द्वारा विधानसभा चुनाव के ज़रिये चुना जाता है | विधायक को एमएलए (MLA) या Member Of Legislative Assembly भी कहते है।
एक विधायक जनता द्वारा 5 साल के लिए चुना जाता है जिसका काम अपने क्षेत्र के विकास व जनता के मुद्दों को राज्य सभा (State Assembly) में रखना होता है।
विधायक/एमएलए का पूरा नाम क्या है?
विधायक अर्थात एमएलए (MLA) का फुल फॉर्म – “Member Of Legislative Assembly” विधान सभा के सदस्य के रूप में होता है।
विधायक निर्वाचन प्रणाली क्या है?
– विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याशी को किसी राजनीतिक दल में शामिल होना जरूरी नहीं है। वह एक निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भी चुनाव लड़ सकते हैं।
– लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (Public Representation Act) 1951 की धारा 34(1) (ख) के मुताबिक, विधानसभा चुनाव लड़ने वाला प्रत्याशी अगर सामान्य वर्ग से है, तो उन्हें 10 हजार रुपए की प्रतिभूति राशि (Security Deposit) जमा करानी होगी। अगर उम्मीदवार अनुसूचित जाति (SC) या अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग से है, तो उन्हें प्रतिभूति राशि 5 हजार रुपए जमा करनी होगी।
– लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 33(7) के अनुसार, एक व्यक्ति दो से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों से विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ सकता।
– लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 77 के अधीन, राज्य विधानसभाओं के चुनाव में प्रत्येक प्रत्याशी को चुनाव में खर्च से संबंधित विवरण निर्वाचन आयोग को 30 दिनों के अंदर अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराना होता है।
विधायक बनने की चुनाव प्रक्रिया क्या है?
जानकारी के अनुसार, विधानसभा का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से होता है। विधायक यानि विधानसभा के सदस्य को उस विधान सभा क्षेत्र के मतदाता वोटिंग के ज़रिये से चुनते हैं।
– सभी राज्यों की जनसंख्या के आधार पर अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है।
– एक निर्वाचन क्षेत्र से कई उम्मीदवार चुनाव के लिए खड़े हो सकते हैं। इसके लिए उनका आवश्यक योग्यताओं को पूरा करना ज़रूरी है।
– उम्मीदवार किसी विशिष्ट पार्टी से इस पद के लिए चुनाव लड़ सकता है। इसके साथ ही वह स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में भी चुनाव लड़ सकते हैं ।
– विधायक पूर्ण रूप से मतदाताओं द्वारा चुने जाते हैं। जो मतदाता सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के अनुसार मतदान देते हैं।
– राज्य के राज्यपाल के पास एंग्लो-भारतीय समुदाय के सदस्य को नामांकित करने की कार्यकारी शक्ति होती है, यदि विधानसभा में उस व्यक्ति के पर्याप्त प्रतिनिधित्व की कमी हो।
विधायक के कार्य व पावर क्या हैं?
विधानसभा के सदस्यों की शक्तियों और कार्यों को कई वर्गों के तहत बांटा जा सकता है। न्यूज़18 हिंदी की रिपोर्ट ने इस बारे में बताया,
विधान शक्तियां:
विधान सभा के सदस्य का सबसे पहले काम कानून प्रणाली को सुचारु रूप से चलाना है। भारत के संविधान में कहा गया है कि विधान सभा के सदस्य सभी मामलों पर अपनी विधायी शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं जिन पर संसद कानून नहीं दे सकती है।
एक विधायक राज्य सूची और समवर्ती सूची पर अपनी विधायी शक्तियों का इस्तेमाल कर सकता है। राज्य सूची में अकेले व्यक्तिगत राज्य, जैसे व्यापार, वाणिज्य, विकास, सिंचाई और कृषि के महत्व के विषय शामिल हैं, जबकि समवर्ती सूची में केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों जैसे उत्तराधिकार, विवाह, शिक्षा, गोद लेने, जंगलों और यद्यपि आदर्श रूप से केवल विधानसभा के सदस्य राज्य सूची पर कानून बना सकते हैं।
संसद राज्य सूची में विषयों पर कानून तभी बना सकती है जब राज्य पर आपातकाल लगाया गया हो। इसके अलावा, समवर्ती सूची में शामिल मामलों पर, संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को विधान सभा द्वारा किए गए कानूनों पर प्राथमिकता दी जाती है। राष्ट्रपति विधानसभा द्वारा बनाए गए कानूनों को अपनी सहमति नहीं देता है।
वित्तीय शक्तियां:
विधानसभा के पास राज्य में पूर्ण वित्तीय शक्तियां होती हैं। एक मनी बिल सिर्फ विधान सभा से शुरू होता है और विधान सभा के सदस्यों को राज्य ट्रेजरी से किए गए किसी भी खर्च के लिए सहमति देनी होती है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि जिन राज्यों में द्विपक्षीय विधायिका है, दोनों विधान परिषद और विधान परिषद विधेयक पारित कर सकती हैं या विधेयक में 14 दिनों के अंदर विधेयक में परिवर्तन का सुझाव दे सकती हैं।
कार्यकारी शक्तियां:
हर राज्य में विधान सभा के सदस्य कुछ कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करते हैं। वे मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद द्वारा की गई गतिविधियों और कार्यों को नियंत्रित करते हैं।
दूसरे शब्दों में, सत्तारूढ़ सरकार अपने सभी निर्णयों के लिए विधानसभा के लिए उत्तरदायी है। अविश्वास का वोट किसी भी राज्य में विधायकों द्वारा ही पारित किया जा सकता है। राज्य सरकार मशीनरी के कार्यकारी अंग को प्रतिबंधित करने के लिए प्रश्नकाल, कट मोशन और एडजर्नमेंट मोशन का प्रयोग विधान सभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है।
चुनावी शक्तियां:
– विधायक राज्यसभा के सदस्यों का चयन करते हैं, जो एक विशेष राज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं।
– विधानसभा के अध्यक्ष और उप सभापति विधायकों द्वारा चुने जाते हैं।
– द्विपक्षीय विधायिका वाले राज्यों में, विधान परिषद के सदस्यों में से एक तिहाई विधायकों द्वारा ही चुने जाते हैं।
संविधान और विविध शक्तियां:
– भारत के संविधान के कुछ हिस्सों जो संघीय प्रावधानों से संबंधित हैं, उन्हें विधानसभा के आधे सदस्यों द्वारा संशोधित किया जा सकता है।
– विधायकों द्वारा सदन में विभिन्न समितियों की नियुक्ति की जाती है।
(नोट- आर्टिकल में दी गई जानकारी इंटरनेट पर दी गई मौजूदा जानकारी से ली गई है, जिसमें कुछ बदलाव हो सकते हैं।)
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