खबर लहरिया Blog मतदान के दौरान लगाई जाने वाली ‘मतदान स्याही’ का जानें इतिहास, जानें यह क्यों नहीं मिटती

मतदान के दौरान लगाई जाने वाली ‘मतदान स्याही’ का जानें इतिहास, जानें यह क्यों नहीं मिटती

नीले रंग की स्याही को भारतीय चुनाव में शामिल करने का श्रेय देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को जाता है।

Know the history of 'voting ink' used during voting, know why it does not erase

मतदाता की मतदान स्याही के साथ सांकेतिक तस्वीर ( फोटो – सोशल मीडिया)

देश में लोकसभा चुनाव हेतु सात चरणों में चुनावों की तारीखों का ऐलान हो चुका है। चुनाव के दौरान अपना मत देते समय कई मतदाताओं को यह सवाल रहता है कि उनका मत कितना सुरक्षित है व कहीं कोई उनके नाम से फर्ज़ी वोट न डाल दे।

आपने देखा होगा कि जब भी आप अपना मत डालते हैं, वहां मौजूद चुनाव अधिकारी द्वारा आपकी अंगुली पर नीली स्याही लगाया जाता है, जो एक तरह से फर्ज़ी मत रोकने का काम करता है। इस स्याही को ‘अमिट स्याही/मतदान स्याही’ कहा जाता है।

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अमिट स्याही/ मतदान स्याही

अमिट स्याही एक अर्ध-स्थायी स्याही (जो सिर्फ कुछ समय के लिए रहती है) या डाई है जिसे एक से ज़्यादा मतदान को रोकने के लिए चुनाव के दौरान मतदाताओं के बाएं हाथ की तर्जनी (अंगूठे के साथ वाली अंगुली) पर आमतौर पर लगाया जाता है। अंगुली पर लगी यह स्याही इस बात का प्रतीक होती है कि किसी व्यक्ति ने अपना वोट किया है या नहीं।

बता दें, चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 49क में प्रतिरूपण (गलत पहचान) के खिलाफ सुरक्षा के रूप में निर्वाचक की बाईं तर्जनी पर अमिट स्याही लगाने का प्रावधान है।

रिपोर्ट्स के अनुसार, नीले रंग की स्याही को भारतीय चुनाव में शामिल करने का श्रेय देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को जाता है।

मतदान स्याही/ अमिट स्याही क्यों नहीं मिटती?

मतदान स्याही को लेकर कई बार लोगों के मन में यह भी सवाल रहता है कि यह स्याही मिटती क्यों नहीं है? बता दें, ऐसा इसलिए क्योंकि मतदान स्याही/ चुनावी स्याही बनाने के लिए सिल्वर नाइट्रेट केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है। स्याही को लगाये जाने के बाद इसे कम-से-कम 72 घंटे तक त्वचा से नहीं मिटाया जा सकता।

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ऐसे बनाई जाती है मतदान/चुनावी स्याही

सिल्वर नाइट्रेट केमिकल का इस्तेमाल भी किया जाता है क्योंकि यह पानी के संपर्क में आने के बाद काले रंग का हो जाता है और मिटता नहीं है।

जब चुनाव अधिकारी मतदाता की अंगुली पर स्याही लगाते हैं तो सिल्वर नाइट्रेट हमारे शरीर में मौजूद नमक के साथ मिलकर सिल्वर क्लोराइड बनाता है। सिल्वर क्लोराइड पानी में घुलता नहीं है और त्वचा से जुड़ा रहता है। इसे साबुन से नहीं धो सकतें। यह निशान तभी मिटता है जब धीरे-धीरे त्वचा के सेल (त्वचा की कोशिकायें) पुराने होते जाते हैं और वे उतरने लगते हैं।

एमवीपीएल की वेबसाइट बताती है कि उच्च गुणवत्ता की चुनावी स्याही 40 सेकेंड से भी कम समय में सूख जाती है। इसका असर इतनी तेजी से होता है कि अंगुली पर लगने के एक सेकेंड के अंदर ही यह अपना निशान छोड़ देती है। यही वजह है इस स्याही को मिटाया नहीं जा सकता।

बता दें, साल 1962 के चुनाव से ही इस स्याही को इस्तेमाल किया जा रहा है।

कहां बनाई जाती है मतदान/चुनावी स्याही?

बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट के अनुसार, यह स्याही दक्षिण भारत में स्थित एक कंपनी द्वारा बनाई जाती है। मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड (MVPL) नाम की कंपनी इस स्‍याही को बनाने का काम करती है। साल 1937 में इस कंपनी की स्थापना हुई थी। बता दें, उस समय मैसूर प्रांत के महाराज नलवाडी कृष्णराजा वडयार ने इसकी शुरुआत की थी।

रिपोर्ट बताती है कि कंपनी इस चुनावी स्याही को थोक में नहीं बेचती है। एमवीपीएल के ज़रिए सरकार या चुनाव से जुड़ी एजेंसियों को ही इस स्याही की सप्‍लाई की जाती है।

वैसे तो यह कंपनी और भी कई तरह के पेंट बनाती है लेकिन इसकी मुख्य पहचान चुनावी स्याही बनाने के लिए ही है। इसे लोग इलेक्शन इंक या इंडेलिबल इंक के नाम से भी जानते हैं। यह कंपनी भारत के अलावा कई दूसरे देशों में भी चुनावी स्याही की सप्लाई करती है।

यह देखा गया है कि समय के साथ इस स्याही ने बेहतर तौर पर काम किया है।

 

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