आपका भविष्य-आपकी पसंद, आपका गर्भ निरोधक उपाय’। यह सिर्फ स्लोगन नहीं बल्कि एक मिशन है। दुनिया की जनसंख्या जिस तेजी से बढ़ रही है उस ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के मकसद से ही हर साल 26 सितंबर को दुनियाभर में विश्व गर्भनिरोधक दिवस मनाया जाता है। ताकि युवा अपने योनिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य सम्बन्धी निर्णय बेहतर जानकारी के साथ ले सकें।
पर शर्म और मिथकों की वजह से हम इस विषय में मात खा जाते हैं। हालांकि धीरे-धीरे लोग इस बारे में चर्चा कर रहे हैं और परिस्थितियों में सुधार भी होता दिखाई दे रहा है, पर अभी भी ये बेहद सीमित है। हमने ग्रामीण स्तर पर आशाबहुओ से बात की और जाना की ग्रामीण स्तर पर पुरुषों को समझा पाना कितना चुनौती भरा काम है |
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (डबल्यूसीडी) की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के 21 राज्यों में 94.5 फीसदी विवाहित महिलाओं को गर्भ निरोध के उपायों और उसके इस्तेमाल किए जाने वाले साधनों के बारे में जानकारी है। लेकिन जानकारी होने के बावजूद 50 फीसदी महिलाएं ही इस संसाधनों का इस्तेमाल कर रही हैं।
इसके अलावा 44 फीसदी ऐसी भी महिलाएं हैं जो शादीशुदा है और उन्हें इसके बारे में पता है। लेकिन फिर भी वो इन उपायों को नहीं अपनाती हैं। लेकिन ग्रामीण स्तर पर ऐसा नहीं है वहां अभी भी जागरूकता की बहुत जरुरत है अनचाहे गर्भ से बचाव के लिए बहुत सी दवाइयों का उपयोग होने लगा है जैसे माला डी अंर्ता सहेली और भी बहुत सी मेडिटेशन हैं जो मेडिकल स्टोर या एनम आशा बहू द्वारा ग्रामीण महिलाओं को दिया जाता है |
समय समय पर उनकी काऊसलिंग की जाती परिवार नियोजन के बारे मे समझाया जाता है और बच्चों मे अंतर रखने की दवाईयों का प्रयोग करने की सलाह दी जाती लेकिन सिर्फ महिलाओं की जबकि अनचाहे गर्भ के बचाव के लिए पूरूषो के लिए भी निरोध है या आपरेशन लेकिन पूरूष आपरेशन नहीं कराते की.वो कमजोर हो जाएंगे निरोध का भी इस्तेमाल बहुत कभ सख्या मे करते हैं इन मुद्दे पर ग्रामीण स्तर पर काम करने वाली एनम ,आशा संगनी या आशा बहूओं से बात की तो उन्होंने बताया हम गांव से होते हैं हमे पूरूषो को निरोध देना समझाना बहुत मुश्किल होता लोग मजाक मे ले जाते हैं अलग अलग शब्दों का प्रयोग करते हैं हम फिर पूरूषो से बात ही नहीं करते घर जाकर महिलाओं को ही दे आते हैं |