बच्चेदानी बाहर आ जाना एक ऐसी समस्या है जो महिलाओं को प्रभावित करने वाली एक आम बीमारी है। इस समस्या में महिलाओं की गर्भाशय निचले पेडू क्षेत्र में यानी प्राइवेट पार्ट में उतर जाती है। यह समस्या भारतीय महिलाओं में आमतौर पर देखी जाती है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
यह समस्या महिलाओं के शारीरिक और सामाजिक जीवन को अस्थिर करती है। यह महिलाओं को दर्द, दिक्कतें और खुदरा महसूस कराती है, जिससे उनकी दैनिक गतिविधियों पर असर पड़ता है। इस समस्या के चलते बहुत सारी महिलाओं को समाज में शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है और वे अपनी स्वास्थ्य समस्या को छिपाने की कोशिश करती हैं।
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ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं के लिए यह समस्या और भी गंभीर होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं अक्सर कठिनाइयों का सामना करती हैं, जैसे कि कमजोर आर्थिक स्थिति, अनुपस्थित स्वास्थ्य सेवाएं और ज्यादातर अपशिष्ट जीवनशैली। इसके कारण, यूटेरिन प्रोलैप्स जैसी समस्या का समाधान पाना उनके लिए और भी मुश्किल हो जाता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन जीने वाली महिलाओं के मध्यम से एक अनुभव के रूप में मैंने यह देखा है कि गर्भाशय उतरन की समस्या उनके लिए बहुत बड़ी मानसिक और शारीरिक चुनौती होती है। कुछ महिलाएं बताती हैं कि इस समस्या के कारण उन्हें अपने घर का काम नहीं कर पाना पड़ता है, जो उन्हें असमंजस में डालता है। वे अपने परिवार की ओर से दयाभाव और समर्थन की आवश्यकता होती है।
बहुत सारी महिलाएं इस समस्या को ठीक कराने के लिए डॉक्टर की सहायता के लिए समर्पित संस्थान तक नहीं पहुंच पाती हैं। यहां तक कि जहां तक मेरी जानकारी है, बहुत सारे गांवों में महिलाओं को इस समस्या के बारे में ज्ञान ही नहीं होता है। उन्हें यह जानकारी की जरूरत होती है कि इस समस्या का कारण क्या है, इसे कैसे रोका जा सकता है और कैसे इलाज किया जा सकता है।
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