बुंदेलखंड में गढ़िया गुल्ला एक पारंपरिक मिठाई है जो शक्कर (चीनी) और रंगों का इस्तेमाल कर पशु, पक्षी और प्रसिद्ध स्मारकों के आकार में बनाया जाता है।
रिपोर्ट व तस्वीर – श्यामकली, लेखन – सुचित्रा
मकर संक्रान्ति का त्यौहार भारत के प्रमुख पर्वों में से एक है। इसे भारत में अलग-अलग नाम से जानते हैं जैसे- उत्तर भारत में लोहड़ी, दक्षिण में पोंगल और पश्चिम में मकर संक्रांति। यह अधिकतर 14 जनवरी या 15 जनवरी के दिन मनाया जाता है। इस दिन लोग पतंग भी उड़ातें हैं। बिहार में इस दिन लोग दही-चूड़ा के साथ तिलकुट और रात में खिचड़ी खाते हैं तो वहीं यूपी के कुछ हिस्सों में घडिय़ा घुल्ला नाम की मिठाई खाकर इसे मनाया जाता है। आज हम इसी मिठाई के बारे में जानेंगे जो चीनी से तैयार की जाती है और जिसके बिना यह पर्व अधूरा माना जाता है।
गढ़िया गुल्ला क्या है?
बुंदेलखंड में गढ़िया गुल्ला एक पारंपरिक मिठाई है जो शक्कर (चीनी) और रंगों का इस्तेमाल कर पशु, पक्षी और प्रसिद्ध स्मारकों के आकार में बनाया जाता है।
उत्तर प्रदेश के महोबा जिला के कौशल सोनी ने बताया है कि, “यह परम्परा आज भी हम लोग निभा रहे हैं जैसे कि पहले मकर संक्रांति के दिन नहाते हैं, नहा कर पूजा पाठ करते हैं। उसके बाद तिल के लड्डू और चीनी के घुल्ला खाते हैं। वैसे तो चाहे जब भी तिल के लड्डू और घुल्ला खा लेते हैं लेकिन मकर संक्रांति पर खाने का स्वाद ही अलग होता है।”
गुल्ला बनाने के लिए पहले से हो जाती है तैयारी
रामलाल कानपुर के रहने वाले हैं लेकिन महोबा जिला के बेलाताल में घुल्ला बनाने के लिए आए हैं। वे कहते हैं कि “हम एक दिन में 10 से 15 बोरी चीनी के घल्ला बनाते हैं। यहां के दुकानदार हमें घुल्ला बनवाने के लिए बुलाते हैं। घुल्ला बनाने के लिए चीनी और बाकी सब समान देते हैं और हमारी मजदूरी भी देते हैं। मकर संक्रांति के 8, 10 दिन पहले से ही हम घुल्ला बनाने लगते हैं। हम यहां 13 तारीख तक बनाएंगे फिर अपने कानपुर चले जाएंगे।”
जब उनसे पूछा गया कि 1 दिन की मजदूरी कितनी मिलती है? तो उन्होंने बताया जिससे खर्चा पानी हमारा भी चल जाता है उतनी मिल जाती हैं।
चीनी का घुल्ला बनाने का साँचा
चीनी का घुल्ला बनाने के लिए चीनी के घोल को साँचे में डाला जाता है। चीनी की चाशनी इतनी टाइट बनाते हैं कि 5-10 मिनट में जम जाता है और उसको निकाल कर ट्रे में रख देते हैं। इस काम को 4 से 5 लोग करते हैं। एक चीनी डालता है और दूसरा साँचों में भरता है फिर महिला या पुरुष इसे साँचे से बाहर निकालते हैं।
बहन अपने भाइयों के लिए खरीदती है चीनी का घुल्ला
कुलपहाड़ गहरा पहाड़िया से नेहा बताती हैं कि, “मैं अपने भाइयों के लिए घुल्ला लिए जा रही हूं।” नेहा से जब पूछा गया कि जब आपकी शादी नहीं हुई थी तब भी आप गुल्ला लेती थी?
उन्होंने बताया कि. “पहले नहीं लेते थे लेकिन हमारे यहां जो भी लड़कियां ससुराल से आती हैं, वह अपने भैया और भाभियों के लिए अक्सर लेकर जाती हैं। पहले हमारी बुआ भी लाती थी। इसी तरह हमने अपनी बुआ को भी देखा कि हमारे पापा लोगों के लिए लेट हुए और अब हम अपने भाइयों को खिला रहे हैं जिसमें हमारे भाई हमें पैसे भी देते हैं।”
घुल्ला है मीठे रिश्ते की पहचान
महोबा जिला की बागवाला गांव की राधा रानी जिनकी उम्र लगभग 50 साल है। वे बताती हैं कि, मैं अपने घर के लिए 70 रुपए के 1 किलो घुल्ला लेकर जा रही हूं। हमारे यहां हर घर में ही घुल्ला की पूजा होती है इसलिए ये ले जाना जरूरी है। शादी के बाद लड़की के ससुराल वाले भी लड़की के मायके घुल्ला देने के लिए आते हैं।”
जब हमारी खबर लहरिया रिपोर्टर ने पूछा कि, “आपकी जब बेटे की शादी हुई थी तब आपने बहू के मायके में भिजवाया था?” उन्होंने बोला कि, “ हां भेजा था।”
दादी बताती है हम इसलिए भेजते हैं ताकि हमारा रिश्ता घुल्ला की तरह हमेशा मीठा बने रहे।
मकर संक्राति का यह पर्व आते ही यूपी के बुंदेलखंड, महोबा, चित्रकूट के बाज़ारों में चीनी का घुल्ला बिकने लगता है। लोग इसे अपने रिश्तेदारों और भाई बहन के लिए खरीदते हैं। ऐसे तो आज तक आप ने सिर्फ इस पर्व में चूड़ा दही, तिलकुट सुना होगा। इसके बाद से आप इस चीनी के घुल्ला के बारे में भी जान गए होंगे। आप भी इस बार चीनी के घुल्ला की मिठास को इस पर्व में महसूस कर पाएंगे।
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