नमस्कार दोस्तों, मैं हूँ मीरा देवी, खबर लहरिया की ब्यूरो चीफ। मेरे शो राजनीति रस राय में आपका बहुत बहुत स्वागत है। जैसे जैसे चुनाव आता जा रहा है सभी पार्टियों के नेताओं में जैसे कम्पटीशन शुरू हो गया है मतदाता को लुभाने में। ऐसे लग रहा है कि सबकी परीक्षा चल रही है। अपने पाले ज्यादा से ज्यादा वोट लाने के लिए बड़े-बड़े नेताओं को ऐशोआराम वाली कुर्सी छोड़कर जनसभाएं रैलियां करना पड़ रहा है। आराम हराम जैसे हो गया है। होगा क्यों नहीं और होना भी चाहिए क्योंकि परीक्षा में पास जो होना है।
मैंने इन बेचारे नेताओं की मेहनत देखी समझी है। जैसे कितना अच्छा भाषण दें पाएं। भाइयों, मित्रो, सज्जनों, दोस्तों, अतिथियों जैसे शब्दों को सुनकर मतदाता का दिल भी बाग-बाग हो जाता है। जैसे वह बातें नहीं अमृत बरसा रहे हों। पार्टी कितनी भीड़ इकट्ठा करके अपनी विरोधी पार्टी को दिखाकर चिढ़ा सके इसकी भी होड़ है। फिर क्या विरोधी सौ लाए तो अगली पार्टी दो सौ लोगों की भीड़ जुटाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाती है।
पत्रकारिता की जिम्मेदारी को समझते हुए और इतने सालों से रिपोर्टिंग के अनुभव पर हम ये जागरूकता फैलाना चाहते हैं कि नेता एक ही है बस चुनाव की बहती बयार में पार्टी रूपी कपड़े बदल लेता है। जिसको एक पार्टी में रहने पर देख और आजमा लिया है तो दूसरी पार्टी के साथ आने पर उसे क्यों चुने? क्योंकि उस नेता ने अपने स्वार्थ के लिए पार्टी तो बदल ली है लेकिन सोच तो अभी भी वही है। यह बात बड़े स्तर पर चाहे कम हो लेकिन लोकल स्तर पर बहुत ही ज्यादा है। नेताओं को चुनाव लड़ने से मतलब टिकट चाहे जिस पार्टी से मिले।
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अब बात यहां पर आकर लटक जाती है कि मतदाता बदलाव करने के लिए किस चेहरे को चुने। कोई नेता ही नहीं दिखता जो अपने क्षेत्र का विकास कर सके। पार्टियों के मुख्य चेहरे राष्ट्रीय स्तर पर तो हैं लेकिन लोकल में कोई दमदार चेहरा नहीं। जनता उस ऐसे दमदार चेहरे की खोज कर रही है। मैंने जहां तक समझा है कि लोकल में बहुत ज्यादा नेता नहीं हैं जो हैं भी वह पार्टी-पार्टी का खेल खेलते रहते हैं। जो पार्टी सत्ता में होती है उसी के चहेते बनकर ये नेता अपनी राजनीति चमकाते रहते हैं। इसीलिए इस समय बीजेपी छोड़ किसी और पार्टी के चेहरे ढूंढ पाना मुश्किल दिख रहा है।
जिस समय से मैं राजनीति की जानकारी समझ पाई हूँ तब से राजनीति के नाम पर नेताओं को सिर्फ पार्टी बदलते देखा है। बसपा सरकार के बाद सपा आई और सपा के बाद अब बीजेपी की सरकार है। बुंदेलखंड के किसी भी जाने माने नेता, विधायक, सांसद का इतिहास उठाकर देख लीजिए। सबने बार-बार पार्टियां बदली हैं और बदलें भी क्यों नहीं, क्योंकि अब के समय में इसी का नाम राजनीति है।
हम तो सवाल पूँछेंगे ही और आपको जवाब देना पड़ेगा। चुनाव को चुनाव के नजरिए से क्यों नहीं देखा जाता? चुनाव की राजनीति में इतना कम्पटीशन क्यों? यहां कोई प्रतियोगिता हो रही है क्या? जो जीतेगा वही सिकन्दर क्यों? विपक्ष का भी तो अपने खास मायने हैं जो सरकार और सरकारी तंत्र को सुचारू रूप से चलाने में दिशा निर्देश करता है तो विपक्ष धड़ाम क्यों? दोस्तों अगर शो की चर्चा पसन्द आई हो तो शेयर जरूर करें। हमारी स्वतंत्र पत्रकारिता को सपोर्ट करने के लिए हमारे चैनल के सदस्य बनिए। कमेंट करके हमें बताएं कि इस शो की चर्चा कैसी लगी। आज के लिए बस इतना ही। अगली बार फिर आउंगी ऐसी ही चर्चा के साथ तब तक के लिए नमस्कार!
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