भीमकुंड को लेकर एक अन्य मान्यता यह भी है कि इस कुंड में नहाने से त्वचा से जुड़ी गंभीर बीमारियां ठीक हो जाती है।
देश का दिल कहे जाने वाले मध्यप्रदेश के दिल में कई किस्से व कहानियां छिपी हुई हैं। यहां की गुफाएं, झरनें, किलें और प्रकृति गोद में छिपे पुरातत्व इमारतें, इन सबकी कहानियां रहस्य से भरी हुई हैं। इन्हीं रहस्यों और कहानियों का हिस्सा है “भीमकुंड”, जो एमपी के छतरपुर जिले में बसा हुआ है। आज इस आर्टिकल में हम आपको भीमकुंड से जुड़ी कहानियां और इसके रहस्य के बारे में बताएंगे।
एमपी टूरिज्म भी अपनी सीरीज़ ‘मध्य प्रदेश की कहानियाँ’ के ज़रिये लोगों को प्रदेश के आकर्षक पर्यटन स्थलों और उनसे जुड़ी रोचक कहानियों के बारे में बता रहे हैं।
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महाभारत से जुड़ी है भीमकुंड की कहानी
भीमकुंड को लेकर एक कथा भी जुड़ी हुई है जोकि महाभारत काल की है। कहानी के अनुसार, महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान जब पांडव जंगल से गुज़र रहे थे तो उसी समय द्रौपदी को प्यास लगी। सभी पांडव पानी की तलाश करने लगे। बहुत खोजने पर भी पानी का कोई स्त्रोत नहीं मिला।
इसके बाद कहानी कहती है कि धर्मराज युधिष्ठिर ने नकुल को याद दिलाया कि उसके पास यह क्षमता है कि वह पाताल की गहराई में स्थित जल का भी पता लगा सकता है। युधिष्ठिर की बात मानते हुए नकुल भूमि को स्पर्श करते हुए ध्यान लगाते हैं। इसके बाद यह तो पता चल जाता है कि ज़मीन के नीचे पानी कहां है पर यह समस्या आ जाती है कि आखिर पानी निकालें तो कैसे निकालें।
मध्य प्रदेश अनेक दिलचस्प कहानियों से समृद्ध है इसलिए
हम आपके लिए लेकर आये हैं, एक नई सीरीज़ 'मध्य प्रदेश की कहानियाँ' जिसमें हम आपको प्रदेश के आकर्षक पर्यटन स्थलों और उनसे जुड़ी रोचक कहानियों के बारे में बताएंगे।
आइये इस कड़ी में सबसे पहले जाने 'भीमकुंड' के बारे में।#MPTourism pic.twitter.com/lZT8MAuxhk— Madhya Pradesh Tourism (@MPTourism) February 12, 2023
द्रौपदी को प्यास से व्याकुल होता देखा भीम ने अपनी गदा उठाई और उसे जगह पर गदा मारी जहां से पानी का स्त्रोत था। गदा के हमले से ज़मीन की कई परतों में छेद हो गया और पानी भी दिखाई देने लगा। भूमि की सतह से जल का स्त्रोत काफी नीचे थे। ऐसी स्थिति में युधिष्ठिर ने अर्जुन से कहा कि अब उन्हें अपनी धनुर्विद्या के कौशल से पानी तक पहुंचने का मार्ग बनाना होगा। यह सुनकर अर्जुन ने धनुष पर बाण चढ़ाया और अपने बाणों से जल स्रोत तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बना दीं। धनुष की सीढ़ियों से द्रौपदी को जल के स्रोत तक ले जाया गया।
अब क्योंकि यह कुंड भीम की गदा से निर्मित हुआ था इसलिए इसे ‘भीमकुंड’ के नाम से जाना गया।
भीमकुंड के जल का स्त्रोत भी है रहस्य
भीमकुंड को लेकर यह मान्यता है कि यह एक शांत ज्वालामुखी है लेकिन ऐसा क्यों कहा जाता है, इसका कोई जवाब नहीं मिल पाया है। इसके आलावा अगर इसकी गहराई की बात करें तो भू-वैज्ञानिकों व गोताखारों ने कई बार इसकी गहराई नापने की कोशिश की लेकिन न तो उन्हें कुंड के स्त्रोत के बारे में पता चल पाया और न ही वह इसकी गहराई के बारे में आज तक पता कर पाएं।
ऐसा कहा जाता है कि कुंड की अस्सी फीट की गहराई में तेज जलधाराएं हैं जो शायद इसे समुद्र से जोड़ती हैं हालांकि यह भी सिर्फ एक रहस्य ही है।
बीमारी दूर, तीन बूंद से मिट जाती है प्यास
भीमकुंड को लेकर एक अन्य मान्यता यह भी है कि इस कुंड में नहाने से त्वचा से जुड़ी गंभीर बीमारियां ठीक हो जाती है। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि चाहें आपको कितनी भी प्यास लगी हो, इसकी तीन बूंदे ही सारी प्यास बुझा देती है।
तो यह थी, एमपी के भीमकुंड की कहानी और उससे जुड़े कुछ तथ्य जो आपको थोड़ा बेकरार भी करेंगे और आपको यहां आने के लिए मज़बूर भी।
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