भारत अपनी कला और प्रतिभा की वजह से हमेशा ही सुर्ख़ियों में रहता है। अकसर यहाँ के अन्य क्षेत्रों में अनोखी चीजें भी देखने को मिल ही जाती हैं लेकिन क्या आपने कभी खेतों में धान के पयार की झोपड़ी देखी है? अगर नहीं, तो अब देख लीजिये। राजधानी पटना के गांव बग्घाटोला में किसान धान की कटाई करके बचे हुए पौधे को इक्कट्ठा करते हैं और खेत के बीचों-बीच इसकी झोपड़ी तैयार करते हैं।
इसे ‘पुआल’ के नाम से भी जाना जाता है। अन्य क्षेत्रों में इसके अनेक नाम भी है जैसे बिहार में इसे ‘निवारी’ या ‘गांज’ भी बोला जाता है और बुंदेलखंड में ‘पयार’ बोला जाता है। पहले बचे हुए धान को इकठ्ठा करके जला दिया जाता था, जिससे काफी मात्रा में प्रदूषण होता था। इस समस्या से बचने के किसानों ने ये अनोखा उपाय निकाला है। यह किसानों के लिए कमाई और जानवरों के लिए अनाज के रूप में भी उपयोग होता है।
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खबर लहरिया की रिपोर्टर ने ब्लॉक बग्घाटोला में जाकर रिपोर्टिंग की और पाया की ‘पयार’ की झोपड़ी को जानवरों के अनाज के लिए भी इस्तेमाल किया जाता हैं। इस झोपड़ी को 1 साल तक बना कर रख दिया जाता है। किसानों को इसे बनाने में लगभग 3 से 4 महीने लग जाते हैं। पयार की झोपड़ी बनाने में लगभग 3 बीघा कटा हुआ धन लग जाता है। जब धान की रोपाई हो जाती है तब धान को इकठ्ठा करके, गांज कर खेतो में रख दिया जाता है। इसे खुले आसमान में इसलिए रखा जाता है क्योंकि ये अंदर रखने पर नमी से ख़राब हो जाते हैं। बरसात में पानी से बचाने के लिए इस तिरपाल से ढक दिया जाता है।
बिहार राज्य में धान की सबसे ज़्यादा उपज होती है इसलिए हर गाँव में आपको ऐसी झोपड़ी बनी हुई नज़र आ ही जाएगी। 1 साल तक यह झोपड़ी आराम से टिक सकती है। इससे यह फायदा होता है कि अनाज के लिए किसानों को कहीं और नहीं भटकना पड़ता। इसी पयार को किसान आराम से अपने जानवरों को भूसा खिलाते हैं बाकी जो बच जाता है उसे किसी व्यापारी को बेच दिया जाता है।
इस पयार की झोपड़ी के काफ़ी फायदे हैं। इसे ठण्ड में बिछौने के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। यह चूल्हे पर खाना बनाने के काम आता है। घरों में इससे चाट बनाया जाता हैं क्योंकि इससे ठण्ड नहीं लगती और इसे शादियों में भी कई कामों के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
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