सोनी सोरी को 15 मार्च 2022 को अदालत ने बाइज्जत बरी कर दिया है। सोनी सोरी को 4 अक्टूबर 2011 को दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया था। उन पर यह आरोप लगाया गया कि वह माओवादियों से पैसे लेन-देन का काम कर रही हैं तो उन्हें अध्यापिका की पोस्ट से बर्ख़ास्त कर दिया गया। इसके बाद उन्हें छत्तीसगढ़ पुलिस को सौंप दिया गया फिर शुरू हुआ पुलिस का कहर।
अनेकों तरह की यातनाएं झेलीं सोनी सोरी ने। सोनी सोरी बड़ेबेडमा गाँव की रहने वाली साधारण आदिवासी महिला हैं जो की दंतेवाड़ा के एक स्कूल में पढ़ाती थी। आदिवासी बच्चों के हॉस्टल को संभालने का काम करती थीं जिसे पुलिस ने बना दिया इतना बड़ा देशद्रोही। साल 2010 में 15 अगस्त के दिन दंतेवाड़ा में सड़क निर्माण में लगी एस्सार कम्पनी की गाड़ियों को नक्सलियों द्वारा जला दिया गया था। इस घटना में पुलिस ने सोनी सोरी के शामिल होने की आशंका जताई थी।
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घटना के बाद सोनी को गिरफ़्तार कर लिया गया। हिरासत में पुलिस वालों ने सोनी सोरी को गंदी-गंदी गालियां देते हुए मारना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद पुलिस वाले उसे बिजली के झटके देने लगे। काफ़ी देर तक इसी तरह यातनाएं देने के बाद ज़बरदस्ती उसके कपड़े उतार दिए। सोनी सोरी को पूरी तरह निर्वस्त्र कर दिया। दीवार के सहारे खड़ा कर दिया। सोनी सोरी अपने हाथों से अपने शरीर को ढकने की कोशिश करती तो पुलिस वाले बंदूकों से उसके हाथों को हटा देते। उसकी छाती पर बंदूक की नालियों से मारने लगते, कहते “हाथ नीचे रखो।”मौके पर मौजूद बड़ा पुलिस अधिकारी गालियां देते हुए कह रहा था, “तेरा शरीर देखकर तो नहीं लगता कि तू इतना सेक्स कर सकती है, कैसे तू नक्सलियों को खुश रखती है, तू बुलाती है ना नक्सलियों को अपने घर लेकिन शरीर देखकर तो नहीं लगता कि तू उनको खुश कर पाती होगी।”
11 साल बाद जब उन्हें इस केस से बरी किया गया तो सरकारी तन्त्र के ऊपर कई सवाल उठ गए। आपमें से कई लोग अभी सोनी सोरी की घटना और कहानी से वाकिफ़ नहीं होगें, लेकिन हर शख़्स को ये जानना चाहिए। मैंने उसकी पूरी घटना और कहानी को पढ़ा। दोस्तों, ,मेरे रोमटें खड़े हो गयें। आखों मेंआंसू थे, दर्द और गुस्सा भी।
इतना बड़ा अन्याय क्यों हुआ सोनी सोरी के साथ? जेल के अंदर जितनी यातनायें और हिंसा की गई सोनी सोरी के साथ, उन लोगों को कौन सज़ा देगा? सोनी सोरी जैसी ही ना जाने कितनी और महिलाएं होंगी जिन्होंने इस तरह की हिंसा और यातनायें झेली होंगी। मैं कई बार सोचती हूँ कि इतनी हिम्मत और ताकत कहां से आई होगी सोनी सोरी को।
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दूसरा मामला : मानिकपुर इलाके में डाकुओ का बड़ा आतंक था और पुलिस गांवो में छापा मारती थी। गाँव के लोगों पर आरोप होता था कि वह डाकुओं को शरण देतें हैं। इसी शक में गोपीपुर करौहा गाँव की बुजुर्ग आदिवासी महिला सोहगिया को पुलिस ने गाँव के अंदर घसीट-घसीट कर मारा था। किसी मीडिया की हिम्मत नहीं पड़ी थी कि पुलिस के ख़िलाफ़ कोई आवाज़ उठा सके।
जब मैंने सोहगिया को देखा तो मेरा शरीर एकदम सुन्न हो गया। सोहगिया के शरीर में इतनी चोटे थी कि पूरा शरीर लाल हो गया था। बड़ी मुश्किल से उसकी एफआईआर लिखी गई। बाद में पुलिस ने भी सोहगिया को निर्दोष पाया। । ये सिर्फ एक केस है। न जाने कितने ही ऐसे केस हैं मेरे पास जिसकी चर्चा मैं चाहूँ तो पूरे दिन कर सकती हूँ। मेरे कई सवाल उठते है पुलिस प्रशासन के ऊपर। आप शक के आधार पर किसी को कैसे मार सकते हैं? प्रताड़ित कैसे कर सकते हैं? न्याय दिलाने वाले ही अगर अन्याय करते हैं तो जनता किससे न्याय की उम्मीद करेगी?
सलाम करती हूँ मैं आपको सोनी सोरी। मेरे इलाके में भी ऐसी बहुत-सी घटनाएं होती रहती हैं। रेप, हिंसा और मारपीट की। जब थाने में महिलायें रिपोर्ट लिखाने जाती हैं तो पुलिस उलटा उन पर ही सवाल करती है। मैं उन महिलाओं को कहना चाहती हूँ कि अन्याय के खिलाफ़ हमेशा लड़ना चाहिए। जीत ज़रूर होगी और न्याय भी मिलेगा ताकि ऐसे प्रशासन का चेहरा सामने आये। बस एक सवाल और कि ये जानते हुए की सोनी सोरी के साथ सरासर गलत हुआ है, क्या उन सब पुलिस वालों के ऊपर अब कार्यवाही नहीं होनी चाहिए जिन्होंने सोनी सोरी को झूठे केस में फंसाया?
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