भारत में हर राज्य के महलों और किलों का अपना अलग ही आकर्षण है। अगर आप प्राचीन कला और धरोहर को देखने का शौक रखते हैं तो मध्य प्रदेश के ग्वालियर में मौजूद ग्वालियर के किले का दीदार करना न भूलें। अपनी ट्रैवल डायरी में इस किले का नाम शामिल करना मत भूलियेगा, यक़ीनन इस किले की खूबसूरती आपका मन मोह लेगी।
ग्वालियर के किले का इतिहास
ग्वालियर का किला गोपांचल नामक पर्वत पर स्थित है। किले के पहले राजा का नाम सूरज सेन था, जिनके नाम का प्राचीन सूरज कुण्ड किले पर स्थित है। इसका निर्माण 8वीं शताब्दी में मान सिंह तोमर ने किया था। लाल बलुए पत्थर से बना यह किला शहर की हर दिशा से दिखाई देता है। एक ऊंचे पठार पर बने इस किले तक पहुंचने के लिये दो रास्ते हैं। एक ग्वालियर गेट कहलाता है एवं इस रास्ते सिर्फ पैदल चढ़ा जा सकता है।
गाड़ियां ऊरवाई गेट नामक रास्ते से चढ़ सकती हैं और यहां एक बेहद ऊंची चढ़ाई वाली पतली सड़क से होकर जाना होता है। इस सडक़ के आसपास की बड़ी-बड़ी चट्टानों पर जैन तीर्थकंरों (जो संसार सागर से पार लगाने वाले तीर्थ की रचना करते है) की अतिविशाल मूर्तियां बेहद खूबसूरती से और बारीकी से गढ़ी गई हैं। किले की तीन सौ पचास फीट उंचाई इस किले के अविजित (जो पराजित न हुआ हो या जो हराया न गया हो)
होने की गवाह है।
किले पर बनी नक्कासी हैं आकर्षण का केंद्र
ग्वालियर का किला उत्तर और मध्य भारत के सबसे सुरक्षित किलों में से एक है। सुंदर स्थापत्य कला, दीवारों और प्राचीरों पर बेहतरीन नक्काशी, रंग-रोगन और शिल्पकारी की वजह से यह किला बेहद खूबसूरत दिखाई देता है। यह गोपांचल पर्वत पर बना है। 15वीं शताब्दी में बना गूजरी महल उनमें से एक है जो राजा मानसिंह और गूजरी रानी मृगनयनी के प्रेम का प्रतीक है। इसमें एक चतुर्भुज मंदिर है जो भगवान्वि ष्णु को समर्पित है। इस मंदिर को 875 ईस्वी में बनवाया गया था। इस मंदिर का संबंध तेली के मंदिर से है। प्राप्त दस्तावेज की माने तो 15वीं शताब्दी से पहले ग्वालियर पर कछवाह, पाल वंश, प्रतिहार शासकों, तुर्क शासकों, तोमर शासकों जैसे राजवंशों का शासन किया था।
जानिए गूजरी महल के बारे में
ग्वालियर किले की एक अन्य महत्वपूर्ण इमारत है गूजरी महल। इस भवन को तोमर राजा मानसिंह ने 1486–1516 के बीच बनवाया था। इस महल में पुरातत्व संग्रहालय की स्थापना सन 1920 में एम.वी. गर्दे द्वारा की गयी जिसे 1922 में दर्शकों के लिए खोला गया। यह राजा मानसिंह और गूजरी रानी मृगनयनी के गहन प्रेम का प्रतीक है। गूजरी रानी की शर्त के मुताबिक राजा मानसिंह ने मृगनयनी के मैहर राई गाँव जो कि ग्वालियर से 16 मील दूर स्थित था वहां से पाइप के द्वारा पीने का पानी महल तक लाने की व्यवस्था की थी।
यह एक दुमंजिला भवन है जिसके बाहरी भाग को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने यथावत रखा है जबकि अन्दर के भाग को संग्रहालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। इस संग्रहालय के 28 कक्षों में दुर्लभ प्राचीन मूर्तियां रखी गयी हैं जो ग्वालियर और आस–पास के इलाकों से प्राप्त हुई हैं। गूजरी महल किले के ग्वालियर गेट के नजदीक है। गूजरी रानी मृगनयनी को वृन्दावनलाल वर्मा ने अपना कालजयी उपन्यास लिखकर अमर कर दिया।
लाल बलुए पत्थर से निर्मित है किला
मध्यप्रदेश के ग्वालियर में मौजूद ग्वालियर किले का निर्माण 8वीं शताब्दी में किया गया था। तीन वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले इस किले की ऊंचाई 35 फीट है। यह किला मध्यकालीन भवन निर्माणों के अद्भुत नमूनों में से एक है। यह ग्वालियर शहर का प्रमुख स्मारक है जो गोपांचल नामक छोटी पहाड़ी पर स्थित है। लाल बलुए पत्थर से निर्मित यह किला देश के सबसे बड़े किले में से एक है और इसका भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान भी है।
ग्वालियर किले में घूमने की खास जगहें
अगर आप किसी अच्छी जगह घूमना चाहते हैं और आपको इतिहास जानने में दिलचस्पी है तो आप ग्वालियर के किले से अच्छी आपके लिए और कोई जगह नहीं है। हम आपको ग्वालियर की कुछ जगहें बता रहे वहां आपको जरुर घूमना चाहिए।
1. सिद्धाचल जैन मंदिर की गुफाएं
2. उर्वशी मंदिर
3. गोपाचल पर्वत
4. तेली का मंदिर
5. गरुण स्तम्भ
6. मान मंदिर महल
ग्वालियर कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग से ग्वालियर के लिए दिल्ली, भोपाल, इंदौर तथा मुंबई से नियमित उड़ाने मौजूद हैं। और यह रेल मार्ग से भी देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।
किले तक कैसे पहुंचें
इस किले तक पहुंचने के लिये दो रास्ते हैं। एक ग्वालियर गेट कहलाता है जिसपर केवल पैदल ही जाया जा सकता है। जबकि दूसरे रास्ते ऊरवाई गेट पर आप गाड़ी से भी जा सकते हैं। यह किला 350 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। किले का मुख्य प्रवेश द्वार हाथी पुल के नाम से जाना जाता है जो सीधा मान मंदिर महल की ओर ले जाता है।
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