खबर लहरिया Blog बांदा : गोबर गैस के चूल्हे पर गाँवों में आज भी बनती है रसोई

बांदा : गोबर गैस के चूल्हे पर गाँवों में आज भी बनती है रसोई

Kitchen is still made in villages on the gas stove

आधुनिकता के बावजूद भी ग्रामीण इलाकों में प्राकृतिक तौरतरीकों का इस्तेमाल आज भी किया जाता है। प्रकृति ने हमें उपयोग करने को अनेकों संसाधन दिए हैं। जिसका हम चाहें तो लम्बे समय तक आराम से इस्तेमाल कर सकते हैं। उत्तरप्रदेश के बांदा जिले में भी एक ऐसा परिवार है जो प्राकृतिक संसाधन  का इस्तेमाल खाना पकाने में करता है।

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बांदा जिले के नरैनी ब्लाक के अंतर्गत आने वाले पिपरहरी गांव के शुघर सिंह के परिवार में गोबर गैस के इस्तेमाल से खाना पकाया जाता है। उनके अनुसार वह तकरीबन 40 सालों से गोबर गैस का उपयोग खाना बनाने के लिए कर रहे हैं। वह बताते हैं कि गोबर गैस बनवाने के लिए उन्होंने लगभग 4 मीटर चौड़ा और 15 फ़ीट गहरा गड्ढा खुदवाया था। काफी पैसे खर्च करने के बाद गड्ढे को पक्का करवाया गया। वह कहते हैं कि गोबर गैस के लिए उन्होंने इधरउधर के गांवो और अपने घर से खूब सारा गोबर, गोबर गैस तैयार करने के लिए गड्ढे में डाला था। साथ ही गड्ढे से चूल्हे तक के लिए एक पाइपलाइन को जोड़ा गया था ताकि पाइप के ज़रिये गैस चूल्हे तक आसानी से पहुँच जाए। 

गोबर गैस के इस्तेमाल से खाना बनता है स्वादिष्ट 

Kitchen is still made in villages on the gas stove

लीला सिंह बताती है कि गोबर गैस में वह हर दिन एक डलिया गोबर डालती हैं ताकि गोबर गैस सुचारु रूप से काम करता रहे। वह कहती है कि वह इसी के ज़रिए पूरे घर का खाना बनाती हैं। उनके अनुसार यह भी गैस सिलिंडर की तरह ही काम करता है। इसमें बस इतना फ़र्क़ होता है कि सिलिंडर की गैस एलपीजी की होती है और गोबर गैस प्राकृतिक होती है। इस गैस से खाना बनाने से खाना बहुत स्वादिष्ट बनता है। बिल्कुल उसी तरह का स्वाद आता है जैसा चूल्हे पर बनाने में आता है। मिट्टी के चूल्हे से सबकी कोई ना कोई याद ज़रूर होगी। बचपन में हममे से कई लोगों ने मिट्टी के चूल्हे पर बना मज़ेदार खाना ज़रूर खाया होगा। 

उनका कहना है कि लगभग 40 साल पहले एक योजना चलाई गयी थी। जिस योजना का उनके नरैनी ब्लॉक में भी काफी प्रचारप्रसार किया गया था। जिसके  बाद गाँव के कुछ बुज़ुर्गों ने गोबर गैस बनवाने का सोचा। वह बताती हैं कि गोबर गैस बनवाने के लिए तीन परिवार राज़ी हुए थे। तीनों लोगों ने अपनेअपने घरों के पास बड़ेबड़े गड्ढे खुदवाए। सीमेंट के ज़रिये गड्ढे को पक्का किया गया और गड्ढे को एक टैंक की तरह बना लिया। लेकिन दो लोगों के गोबर गैस के गड्ढे कामयाब नहीं हो पाए। जिसके बाद उनके द्वारा गड्ढों को भर दिया गया। सिर्फ उनका ही बनाया हुआ गोबर गैस का गड्ढा कामयाब हो पाया।

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एक बार में बन जाता है पूरे परिवार का खाना 

जब गोबर गैस नयानया बना तो उसमें कम से कम पांच ट्राली भरकर गोबर डाला गया। फिर पानी से गोबर को घोर लिया गया। फिर उसके बाद गड्ढे को ढक करगड्ढे के अंदर से चूल्हे तक पाइप लगाया गया। वह कहती हैं कि जब शुरूशुरू में गोबर गैस बना था तब पूरे परिवार का खाना एक बार में बन जाता था। लेकिन समय के साथ उसका असर कम हो गया। लेकिन वह आज भी काम करता है। जब उनसे पूछा गया कि गैस सिलिंडर के ज़माने में वह गोबर गैस का इस्तेमाल क्यों करती है। तो वह कहती हैं कि आज के ज़माने में गोबर गैस बनवाना बेहद मुश्किल काम है।

 जिस समय उन्होंने बनवाया था तब तकरीबन 100 बोरी सीमेंट और 46 मज़दूर लगे थे। वहीं अगर इसे आज के ज़माने में बनाया जाए तो वह बहुत महंगा पड़ेगा। वह कहती हैं कि वैसे भी आज के ज़माने में नई पीढ़ी गोबर को हाथ लगाने में काफी घबराती है। जबकि अगर घर में पशु हो तो गोबर मुफ्त में ही मिल जाता। वह बताती है कि जब वह गैस का इस्तेमाल नहीं करती तो गड्ढे से गैस उबाल मारने लगती है। इसलिए गैस का इस्तेमाल करते रहना भी ज़रूरी हो जाता है। जिस योजना के तहत सालों पहले उनके घर में गोबर गैस बनवाया गया था, उन्हें उसकी जानकारी नहीं है। वह कहती हैं कि उस समय बुज़ुर्गों ने ही बनवाया था। वह कहती हैं कि गोबर गैस का फ़ायदा यह है कि इससे प्रदूषण नहीं होता। उनका कहना है कि जब तक हो सके वह गोबर गैस का इस्तेमाल करेंगी। 

गोबर गैस के इस्तेमाल से नहीं पड़ती सिलिंडर की ज़रुरत 

Kitchen is still made in villages on the gas stove

भगवती कहती हैं कि वह गोबर गैस से दोनों समय खाना बनाती हैं। वह कहती हैं कि गोबर गैस वाले चूल्हे में ज़्यादा मेहनत नहीं लगती, बस गड्ढे में गोबर भरना होता है। वह कहती हैं कि उनके द्वारा कभीकभी सिलिंडर भी भरवाया जाता है। जो तकरीबन छह महीने तक चल जाता है क्यूंकि ज़्यादा इस्तेमाल तो गोबर गैस चूल्हे का ही किया जाता है। वह कहती हैं कि उनके आसपास में किसी के भी पास गोबर गैस नहीं है। 

हमारे बुज़ुर्गों ने आज की पीढ़ी के लिए धरोहर के तौर पर संस्कृति के साथ बहुतसी सीख भी छोड़ी है। जिसका इस्तेमाल आज भी लोगों द्वारा किया जा रहा है। कुछ ऐसी चीज़ें जिससे किसी को कोई नुकसान नहीं पहुँचता। वरना आधुनिक युग में सुविधाएं तो है पर उसकी कीमत भी है। प्राकृतिक चीज़ें यानी प्रकृति के अनुरूप बनाई गयी चीज़ें। जिसका इस्तेमाल करने की इज़ाज़त प्रकृति ने खुद ही मानव को दी है। यह कुछ ऐसी चीज़ें है जिसे आज की पीढ़ी को जानना और उसे आगे लेकर जाना बेहद ज़रूरी है क्यूंकि जिस तरह से प्राकृतिक चीज़ें और धरोहर गायब होती जा रही है। ऐसे में चीज़ों को सुरक्षित करना बेहद ज़रूरी हो गया है।

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