उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के अंतर्गत आने वाले ऐतिहासिक कालिंजर दुर्ग के जंगल में 21 मार्च को आचनक लगी आग पर 2 अप्रैल को किसी तरह काबू पाया गया। इस आग की चपेट में किले के जंगल का बड़ा हिस्सा आने से सैकड़ों पेड़ जल गए हैं। इसके साथ ही झाड़ियों और तेज़ हवा के कारण आग तेज होती गई।
बता दें कि यह आग मध्य प्रदेश के निचले हिस्से में मौजूद जंगल में लगी थी, जो दक्षिण दिशा से किले की ओर तेजी से बढ़ती गई। जब 5 घंटे बाद दमकल कर्मी वहां पहुंचे, तब तक आग डाक बंगले के पीछे तक पहुंच गई थी। इस आग के चलते जंगल को तो नुक्सान हुआ ही लेकिन इसके अलावा डाक बंगले के बगल में बनी टाल और कटरा गाँव में मौजूद कालिंजर किले के नीचे बने घर भी जल कर राख हो गए हैं।
इन परिवारों का अपना इतना नुक्सान देख बुरा हाल है। इसकी सूचना आसपास में रह रहे लोगों ने वन विभाग को भी दी लेकिन लोगों का कहना है कि वन विभाग के अधिकारी व कर्मचारी मौके पर नहीं पहुंचे। डाक बंगले के बगल में बनी डाल के मालिक ने बताया कि उनका लगभग तीन लाख का नुकसान हुआ है उसी डाल के सहारे वह अपने परिवार का भरण पोषण करता थे, क्योंकि वह एक शटरिंग व्यापारी है और वहां पर बहुत अधिक मात्रा में लकड़ी पड़ी हुई थी, जिसके कारण बहुत तेज़ी से आग चारों ओर फ़ैल गई।
जब हमने बांदा के वन विभाग अधिकारी संजय अग्रवाल से इस बारे में बात की, तो उन्होंने बताया कि कालिंजर किले के आसपास लगी आग को दमकल कर्मियों द्वारा बुझा दिया गया है, लेकिन इससे पर्यावरण के साथ-साथ लोगों का काफी नुक्सान हो गया है। बार-बार लग रही इस आग का कारण बताते हुए संजय अग्रवाल ने बताया कि लोग महुआ बीनने जब जंगल जाते हैं, तो वहां आग लगा देते हैं जिसके कारण आग पूरे जंगल में तेज़ी से फ़ैल जाती है।