खबर लहरिया Blog अखबार बेच कर शुरू किया सफर, आज पत्रकारिता के ज़रिये दे रहीं समाज की सोच को चुनौती #MainBhiRiz

अखबार बेच कर शुरू किया सफर, आज पत्रकारिता के ज़रिये दे रहीं समाज की सोच को चुनौती #MainBhiRiz

जो महिला अपने बच्चों को दो वक़्त की रोटी खिलाने के लिए घर से बाहर निकली थीं, वो आज हज़ारों महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं और अपनी ख़बरों के माध्यम से कई औरतों को न्याय दिलवाया है।

एक मुस्लिम समुदाय की महिला जिसने अपने पति को शारीरिक हिंसा के कारण छोड़ दिया हो, उसे घर में पाँच-पाँच बच्चों का पेट पालना हो, उसके लिए एक-एक रूपए का महत्त्व क्या होगा यह हम सब जानते हैं। 14 ही साल की उम्र में शादी के बंधन में बंधी बांदा की रहने वाली नाज़नी रिज़वी, छोटी सी उम्र से ही घर में पति की शारीरिक एवं यौन हिंसा की शिकार हुईं।

लेकिन कुछ साल ससुराल वालों की प्रताड़ना झेलने के बाद नाज़नी ने ससुराल छोड़कर सिर्फ अपने बच्चों और माता- पिता के साथ एक नया जीवन शुरू करने की ठानी। पर नाज़नी का नया जीवन शुरू करने का रास्ता इतना भी सीधा नहीं था, उन्हें घरवालों की आर्थिक स्थिति सुधारने और परिवार का पेट पालन करने के लिए एक नौकरी चाहिए थी।

एक आठवीं पास महिला जिसके पास न ही कोई डिग्री है, न ही कोई कौशल, वो उस समय झाड़ू-पोंछा कर पैसे कमाने के लिए भी तैयार थीं। इसी बीच सन 2007 में किसी ने उन्हें खबर लहरिया के बांदा के दफ्तर के बारे में बताया और कहा कि यह संस्था महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए काम करती है और उन्हें एक बार वहां जाकर ज़रूर देखना चाहिए।

जून की तपती दोपहर में जब नाज़नी काम की तलाश में खबर लहरिया का दफ्तर तलाशने निकलीं तो उन्हें छाता लगाए दो महिलाएं ऑफिस के बाहर दिखीं। मुझे तो पता भी नहीं था कि यह दोनों महिलाएं खबर लहरिया की एडिटर कविता दीदी और ब्यूरो चीफ मीरा दीदी हैं। नाज़नी हँसते हुए बताती हैं। दफ्तर में कोई और काम न होने के चलते, नाज़नी को शुरुआत में अखबार बेचने का काम मिला। काम करने को तत्पर 39 वर्षीय नाज़नी ने बिना किसी झिझक के अखबार उठाया और बांदा में बेचना शुरू कर दिया। लेकिन नाज़नी के जीवन की राह में आए रोड़े अभी भी कम नहीं हुए थे।

समाज की सोच को नहीं आने दिया अपने काम के आड़े-

एक मुस्लिम महिला का बिना बुर्के के घर के बाहर जाकर अखबार बेचना उनके कई रिश्तेदारों और आस-पड़ोसियों को खटकने लगा। लेकिन नाज़नी ने समाज की बातों को अनदेखा कर अपना काम पूरी शिद्दत से जारी रखा। समाज उनपर छींटाकशी करता रहा और वो डट कर उसका सामना करती रहीं। अखबार बेचने बांदा की दुकानों पर पहुँचने पर नाज़नी का मज़ाक उड़ना, उनको ताने मिलना मानो एक आम सी बात हो गई थी। लेकिन उस समय नाज़नी का ध्यान सिर्फ अपने परिवार के लिए पैसे जोड़ने पर था, वो अपनी बच्चियों को एक बेहतर भविष्य देना चाहती थीं, वो अपने लिए कुछ करना चाहती थीं। अपने मासिक वेतन में से घर खर्च निकाल कर वो बाकी के पैसे लिफ़ाफ़े में डालकर दफ्तर में छोड़ दिया करती थीं ताकि ज़रुरत पड़ने पर उन्हें किसी से मदद न लेनी पड़े।

अखबार बेचने के साथ-साथ शुरू किया रिपोर्टिंग करना-

नाज़नी का यही दृणसंकल्प और लगन देख कर संपादक कविता ने नाज़नी को अखबार बेचने के साथ-साथ रिपोर्टिंग करने का प्रस्ताव दिया। अब उन्हें जहाँ कोई खबर दिखती, नाज़नी तुरंत उसकी जानकारी ले लेती थीं। दफ्तर में उस खबर की चित्रकारी कर पूरी रिपोर्ट तैयार करी जाती थी, जिसके लिए नाज़नी को अतिरिक्त कमीशन भी दिया जाने लगा। कुछ ही महीनों में खबर लहरिया की टीम ने नाज़नी को चित्रकूट पत्रकारिता की ट्रेनिंग लेने भेज दिया। ट्रेनिंग के बाद इंटरव्यू और भर्ती का अनुभव बताते हुए नाज़नी ने बताया कि ट्रेनिंग में मौजूद आधे से ज़्यादा महिलाओं के पास स्कूली स्तर की शिक्षा थी, या उनके पास कोई हुनर था। ऐसे में नाज़नी का चयन होना बहुत बड़ी चुनौती था। लेकिन उनकी मेहनत और हिम्मत रंग लाई और उन्हें खबर लहरिया में रिपोर्टर के पद पर नियुक्त किया गया।

खबर लहरिया की टीम के साथ नाज़नी

घरवालों ने नहीं छोड़ा नाज़नी का साथ-

घर में दबाई जाने वाली नाज़नी के लिए बाहर जाकर लोगों से बात करना, रिपोर्टिंग करना, लेख लिखना शुरुआत में थोड़ा मुश्किल था। पर उन्होंने अपनी सीखने की चाह को हमेशा जीवित रखा और दूसरे रिपोर्टरों को देखकर और उनसे सीख कर रिपोर्टिंग करने में महारत हासिल की।

खबर लहरिया के बांदा दफ्तर में न्यूज़ प्रोडक्शन में भाग लेतीं नाज़नी

नाज़नी के हौसले को बरक़रार रखने का श्रेय उनके घरवालों को भी जाता है जिन्होंने हर मोड़ पर उनका साथ दिया। नाज़नी बताती हैं कि बेटी के रिपोर्टर बनने की ख़ुशी उनके पिता के चेहरे पर हमेशा देखने को मिली। न्यूज़ प्रोडक्शन के काम के लिए जब नाज़नी रात-रात भर दफ्तर में रुकीं तो जहाँ उनके घरवालों ने उनकी सुरक्षा को लेकर चिंता जताई लेकिन जब रिश्तेदारों ने रात भर घर से बाहर रहने के लिए नाज़नी पर सवाल उठाए, तो परिवार ने नाज़नी के साथ खड़े रहकर उन रिश्तेदारों का मुंह भी बंद करवाया।

काम के साथ-साथ माँ होने का फ़र्ज़ भी बखूबी निभाया-

नाज़नी ने अपने काम के साथ-साथ एक माँ होने का फ़र्ज़ भी बराबर निभाया। सुबह जल्दी उठकर घर के काम करके दफ्तर जाना, दोपहर में बच्चों को देखने घर वापस लौटना और फिर काम पर निकल जाना, यह नाज़नी की दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बन गया था। लेकिन अपने घर की ज़िम्मेदारियों को कभी भी नाज़नी ने अपने काम के बीच नहीं आने दिया। चाहे वो बढ़-चढ़ कर ख़बर करने के लिए कठिन परिस्थितियों का सामना करना हो या अपनी रिपोर्टिंग के ज़रिये लोगों को नारीवादी नजरिया दिखाने के लिए जागरूक करना हो, नाज़नी हमेशा ही पत्रकारिता को लेकर के जोश से भरी हुई दिखीं।

रिपोर्टिंग के माध्यम से सोच में बदलाव लाने की करती हैं कोशिश-

2014 में खबर लहरिया ने उन्हें चित्रकूट से रिपोर्टिंग करने का ज़िम्मा दिया, जिसको नाज़नी ने अबतक बखूबी निभाया है। अब जो रिपोर्टिंग चित्रकूट ज़िले के पुरुष पत्रकार करने में सक्षम नहीं हैं, नाज़नी ने पूरे साहस और बेबाकी के साथ उन मुद्दों को न ही सिर्फ दुनिया के सामने पेश किया है बल्कि लोगों की सोच में बदलाव लाने का कार्य भी किया है।  अपना एक ऐसा ही अनुभव बताते हुए वो कहती हैं कि चम्बल की महशूर साधना डाकू जिसे बैंडिट क्वीन के नाम से भी लोग जानते हैं, उसकी कवरेज करने के लिए वो उसके गाँव पहुंची। उस समय ज़्यादातर पत्रकार साधना के बारे में सुनी सुनाई बातों पर ही न्यूज़ छापने में व्यस्त थे, वहीँ नाज़नी ने खबर लहरिया की टीम की मदद से साधना डाकू के जीवन का वो नजरिया दुनिया के सामने रखा जिससे कई लोग वंचित थे। उन्होंने एक महिला होने के कारण साधना के संघर्ष और उसके साथ हुई हिंसा की कहानी बखूबी अपनी रिपोर्टिंग में दर्शायी।

डाकुओं के क्षेत्र मे रिपोटिंग के दौरान

नाज़नी को कई दर्शक उनके शो “बोलेंगे बुलवाएंगे, हंस कर सब कह जाएंगे” के माध्यम से भी जानते हैं, जिसमें वो बिना किसी की भावनाओं के ठेस पहुंचाए ऐसे नारीवादी मुद्दों को लेकर सवाल खड़े करती हैं जिसको देख कर दर्शक भी उस बारे में सोचने को मजबूर हो जाते हैं। अपने शो और रिपोर्टिंग के माध्यम से वो न ही सिर्फ महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव पर प्रकाश डालती हैं बल्कि लोगों की मानसिकता को बदलने के लिए भी तत्पर रहती हैं।

महिला स्वास्थ्य के मुद्दों पर रिपोर्टिंग कर लाना चाहती हैं बदलाव-

अंतरजातीय शादी पर दलित महिला का इंटरव्यू लेते हुए

घर की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए शुरू हुए नाज़नी के इस सफर की रेखा ने रोज़ नए मोड़ लिए हैं। जो महिला अपने बच्चों को दो वक़्त की रोटी खिलाने के लिए घर से बाहर निकली थीं, वो आज हज़ारों महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं। उन्होंने अपनी ख़बरों के माध्यम से कई औरतों को न्याय दिलवाया है और उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने का हौसला दिया है। नाज़नी ने जीवन में खुद जो भी झेला है वो नहीं चाहती कि कोई और महिला वो दिन देखे, वो ग्रामीण महिलाओं के हित के लिए बराबर रिपोर्टिंग करती नज़र आती हैं। इसके साथ ही वो महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सेवाओं और काउन्सलिंग की सुविधा उपलब्ध करवाने की भी पूरी कोशिश कर रही हैं।

पत्रकारिता के उद्देश्यों का करती हैं हमेशा पालन-

पत्रकारिता के अपने इस सफर में उन्होंने बड़ी से बड़ी चुनौतियों का बिना डरे सामना किया है, वो सही खबर को अपने दर्शकों तक पहुंचाने के लिए न ही कभी डरीं और न ही किसी अधिकारी या प्रधान की धमकियों पर गंभीरता दिखाई।

गुलाबी गैंग की कमांडर सम्पत पाल और आदिवासी लोगों की समस्या सुनती हुई नाज़नी

प्रेस आज़ादी दिवस पर बात करते हुए उनका कहना है कि जहाँ आज ज़्यादातर मीडिया चैनल लोभ में आकर एक तरफ़ा बातें करते हैं, ऐसे में वो न ही सिर्फ लोगों तक गलत खबरें पहुँचा रहे होते हैं बल्कि एक पत्रकार होने के उसूलों को भी तोड़ रहे हैं। लेकिन नाज़नी ने एक पत्रकार होने के महत्त्व को समझने के साथ-साथ उसके उद्देश्यों का पालन भी हमेशा किया है। उनका कहना है कि भले ही खबर जाने में देर हो जाए लेकिन वो यह ज़रूर सुनिश्चित करती हैं कि हर पक्ष की बात उन्होंने लोगों के सामने रखी हो जिससे खबर एक तरफ़ा न लगे। इसके साथ ही वो यह भी कोशिश करती हैं कि वो अपनी ख़बरों के माध्यम से सकारात्मक सोच को बढ़ावा दे सकें और अपनी पत्रकारिता की सहायता से वो नफरतों को कम कर पाएं और आजकल की परिस्थितियों से उभर कर हर जाति-धर्म के लोग एक साथ मिल- जुल कर रहना सीख सकें ।

नाज़नी की कहानी हर महिला के लिए है एक प्रेरणा-

नाज़नी ने समाज की कई परंपराओं के विरूद्ध खड़े होकर दुनिया के लिए एक मिसाल कायम करी है कि मुश्किल परिस्थितियों से निकल कर भी हम अपने पैरों पर खड़े हो सकते हैं और अपने जीवन की एक नयी शुरुआत कर सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि एक महिला तभी अपने बच्चों को पाल सकती है जब उसके साथ पुरुष का साथ हो। नाज़नी ने अकेले दम पर और खुद दिन-रात मेहनत कर न ही सिर्फ अपने बच्चों को पाला बल्कि अपने लिए इज़्ज़त भी कमाई।

महिलाओं से समस्याओं की बात करती हुईं नाज़नी

पत्रकारिता के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाह रहीं महिलाओं और युवतियों से वो कहना चाहती हैं कि ज़रूरी नहीं कि आप शहर में रहती हैं या गाँव में, आपके पास कोई डिग्री है या नहीं। आपके अंदर बस सीखने की लगन और घर की चार दीवारी से बाहर निकलने का हौसला होना चाहिए, फिर आपको अपने सपनों को जीने के हज़ारों अवसर मिल जाएंगे। उनका कहना है कि सिर्फ पत्रकार के ही रूप में नहीं बल्कि महिलाओं को जिस क्षेत्र में भी रूचि है उन्हें पूरी कोशिश करनी चाहिए कि वो उस क्षेत्र में समाज की बेड़ियों को तोड़ कर आगे बढ़ सकें।

नाज़नी आज हर उस ग्रामीण स्तर से उभरी महिला पत्रकार का प्रतिनिधित्व करती हैं जो पत्रकारिता के क्षेत्र में आज अपने परिवार का नाम रौशन कर रही हैं और ग्रामीण भारत की पहचान को विश्व भर में प्रसिद्ध करने में योगदान दे रही हैं।

खबर लहरिया के इस ख़ास #मैं भी रिज़ सीरीज़ के माध्यम से हम आशा करते हैं कि आप भी अपने सपनों की उड़ान भरने के लिए प्रेरित हुई हों और कह रही हों #MainbhiRiz!

( नोट – यह आर्टिकल प्रेस फ्रीडम डे के एक सप्ताह की सीरीज़ का हिस्सा है। जो खबर लहरिया की रिपोर्टर रह चुकीं रिज़वाना तबस्सुम की याद में मनाया जा रहा है। यह 3 मई से 8 मई तक मनाया जाएगा। इस बीच हम आप लोगों के साथ ग्रामीण महिला पत्रकारों की कहानियां शेयर करते रहेंगे।)

इस सीरीज के अन्य भाग नीचे दिए गए लिंक पर देखें:

भाग 1: पत्रकारिता के लिए ली समाज से लड़ाई – ग्रामीण महिला पत्रकार शिवदेवी
भाग 2: एक ऐसी महिला पत्रकार जिसने हमले के बाद भी नहीं छोड़ी पत्रकारिता
भाग 3: समाज की सोच को पीछे छोड़, अपनी रिपोर्टिंग के ज़रिए लोगों का दिल जीत रहीं रूपा
भाग 4: “खबर बनाना ही नहीं, न्याय दिलाना भी मेरा काम है” – ग्रामीण युवा महिला पत्रकार सीता पाल
भाग 5: आन्दोलन ने दिखाई पत्रकारिता की राह – नवकिरण नट
भाग 6: अखबार बेच कर शुरू किया सफर, आज पत्रकारिता के ज़रिये दे रहीं समाज की सोच को चुनौती