इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड के चाईबासा में एक आदिवासी महिला का पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने के बाद कथित गर्भपात हुआ। आदिवासी समूहों ने आरोप लगाया कि विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई पुलिस कार्रवाई और जेल में तनाव के कारण यह घटना हुई।
लेखन – हिंदुजा
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक झारखण्ड में एक महिला पुलिस के द्वारा डिटेन यानी हिरासत में लिए जाने के बाद गर्भपात का शिकार हुई।
रिपोर्ट में बताया गया की आदिवासी समूहों ने ये आरोप लगाया है कि कुछ महीने पहले चाईबासा में एक विरोध प्रदर्शन के दौरान महिला को हिरासत में लिया गया था और इस हफ्ते की शुरुआत में पश्चिमी सिंहभूम जिले की जेल में गर्भपात हो गया.
इसपर चाईबासा जेल अधीक्षक सुनील कुमार ने गर्भावस्था या गर्भपात की किसी भी तरह की खबर को नकार दिया है
सुनील कुमार ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “जेल प्रोटोकॉल के अनुसार, जिस दिन महिला जेल में लाई गई उनका गर्भावस्था की जांच की गई थी और सभी की रिपोर्ट नेगेटिव आई थी।”
उन्होंने आगे कहा कि, ‘फिलहाल, चाईबासा जेल में कोई गर्भवती महिला नहीं है और जेल को ऐसी किसी घटना के संबंध में कोई मेडिकल रिपोर्ट या शिकायत नहीं मिली है।’
हलाकि चाईबासा जेल के अधिकारीयों ने इन आरोपों से इंकार कर दिया है मगर संजोक की बात है की स्थानीय आंगनवाड़ी रजिस्टर में महिला का गर्भवती होने का रिकॉर्ड दर्ज था और आंगनवाड़ी ने इसकी पुष्टि भी की है।
महिला का नाम तुलसी पुरती बताया गया है जो 27 अक्टूबर को गांव में खनन और अन्य भारी वाहनों के लिए ‘नो-एंट्री’ नियम लागू करने की मांग को लेकर हुए एक विरोध प्रदर्शन में शामिल हुई थी। जागरण के अनुसार, ये प्रदर्शन बीते दो साल में सड़क हादसों में लोगों की मौत से सम्बंथित था। ग्रामीणों का कहना है कि लगातार बढ़ते हादसे प्रशासन की लापरवाही का नतीजा है, इसलिए शहर की सुरक्षा के लिए भारी वाहनों का प्रवेश पूरी तरह बंद किया जाए।
इसी से जुड़े प्रदर्शन में तुलसी के अलावा छह महिलाओं और 10 पुरुषों को भी हिरासत में लिया गया था। इन लोगों को हिरासत में इसलिए लिया गया क्यूंकि इन्होने कथित तौर पर विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस पर पथराव किया था जिसके बाद सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
ज़िले के एक अधिकारी के अनुसार, 27 अक्टूबर को प्रदर्शनकारियों द्वारा परिवहन मंत्री दीपक बिरुआ के आवास को घेरने की कोशिश के बाद हुए विरोध प्रदर्शन के बाद मुफ़स्सिल पुलिस स्टेशन में 74 नामज़द और लगभग 500 अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की गई थी। प्रदर्शनकारियों ने कथित तौर पर परिवहन मंत्री दीपक बिरुआ के आवास को घेरने की कोशिश की थी, जिसके बाद झड़प हुई।
इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टर शुभम तिग्गा ने गांव की आंगनवाड़ी रजिस्टर को देखा और उसमे तुसली का नाम रजिस्टर में पाया। आंगनवाड़ी की एक सहायिका ने रिपोर्टर को नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘हमने एक डायरी रखी है जिसमें हम गांव की नई गर्भवती महिलाओं का विवरण दर्ज करते हैं. हालांकि मुझे नहीं पता कि उन्हें किन परिस्थितियों में हिरासत में लिया गया था, लेकिन वह उस समय तुलसी गर्भवती थीं।’
अब इसी के चलते चाईबासा के आदिवासी समूहों ने आरोप झारखण्ड पुलिस पर आरोप लगाया है कि पुलिस हिंसा के कारण ही तुलसी पुरती का गर्भपात हुआ है। उन्होंने घटना की निष्पक्ष जांच और ज़िम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
रिपोर्ट के अनुसार, ज़िला परिषद सदस्य माधव चंद्र कुंकल भी विरोध प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार किए गए थे और बाद में ज़मानत पर रिहा हुए। उन्होंने भी कहा कि हालांकि मामले में अभी कोई स्पष्ठता नहीं हैं। लेकिन मामला गंभीर है और इसकी जांच ज़रूरी है। उन्होंने अखबार से कहा की अगर किसी गर्भवती महिला को जेल में रखा गया है और मानसिक तनाव या किसी भी तरह के दुर्व्यवहार के कारण उसका गर्भपात हुआ है तो इसकी जांच होनी चाहिए। जेल के अंदर मानसिक दबाव के कारण भी ऐसी घटना हो सकती है। उन्होंने ज़िला प्रशासन से मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है।
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