खबर लहरिया Blog Jharkhand News: झारखंड में संक्रमित खून चढ़ाने से 5 बच्चे हुए HIV पॉजिटिव 

Jharkhand News: झारखंड में संक्रमित खून चढ़ाने से 5 बच्चे हुए HIV पॉजिटिव 

झारखंड के चाईबासा के सदर अस्पताल में स्वास्थ्य विभाग में लापरवाही का मामला सामने आया है। थैलेसीमिया पीड़ित 5 बच्चे HIV पॉजिटिव पाए गए हैं। 

Hemant Soren, and the hospital photo

हेमंत सोरेन, और अस्पताल की तस्वीर (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

झारखंड के चाईबासा सदर अस्पताल से आई खबर ने पूरे राज्य को झकझोर कर रख दिया है। यहां थैलेसीमिया से पीड़ित सात मासूम बच्चों को एचआईवी संक्रमित रक्त चढ़ा दिया गया। घटना सामने आने के बाद सरकार और स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने तुरंत कार्रवाई करते हुए संबंधित अधिकारियों को निलंबित कर दिया और पूरे मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं। 

दरअसल थैलेसीमिया से जूझ रहे 7 बच्चों को रक्त चढ़ाने के बाद HIV पॉजिटिव आने की घटना ने झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

7 साल के बच्चे की एचआईवी पॉजिटिव रिपोर्ट आई

मामला तब उजागर हुआ जब एक 7 साल के थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे के परिजनों ने अस्पताल के ब्लड बैंक पर आरोप लगाया। बच्चे को 13 सितंबर 2025 को रक्त चढ़ाया गया था लेकिन 18 अक्टूबर को फॉलो-अप जांच में एचआईवी पॉजिटिव रिपोर्ट आई। परिजनों ने ब्लड बैंक तकनीशियन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई। वहीं शनिवार को रांची से आई 5 सदस्यीय मेडिकल टीम ने जांच पड़ताल की जिसमें 6 और थैलेसीमिया बच्चों के रिजल्ट HIV पॉजिटिव पाए गए। इन बच्चों को हर 15-30 दिनों में रक्त चढ़ाना पड़ता था। डिप्टी कमिश्नर चंदन कुमार ने बताया कि बच्चों के अलग-अलग ब्लड ग्रुप होने से संक्रमण एक ही दानकर्ता से नहीं बल्कि विभिन्न स्रोतों से फैला हुआ लगता है।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने निलंबित करने का दिया आदेश 

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस गंभीर मामले पर सख्त रुख अपनाया है। उन्होंने चाईबासा सदर अस्पताल के सिविल सर्जन एचआईवी यूनिट के प्रभारी डॉक्टर और संबंधित तकनीशियनों को तुरंत निलंबित करने का आदेश दिया है।

सरकार ने यह भी तय किया है कि पीड़ित बच्चों का इलाज पूरी तरह राज्य सरकार के खर्च पर किया जाएगा। साथ ही, प्रत्येक प्रभावित परिवार को 2-2 लाख रुपये की सहायता राशि दी जाएगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों का एचआईवी संक्रमित होना बेहद दर्दनाक और चिंताजनक है। उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी को भी सख्त निर्देश दिए हैं कि राज्य में खराब स्वास्थ्य व्यवस्था अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी। 

रविवार को स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी ने बताया कि सरकार ने इस मामले को बेहद गंभीरता से लिया है और उच्च स्तरीय जांच के आदेश जारी किए गए हैं। जांच के दौरान एक थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे में एचआईवी संक्रमण की पुष्टि हुई है। इसके बाद सिविल सर्जन, एचआईवी यूनिट प्रभारी और संबंधित तकनीशियनों को तत्काल निलंबित कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि मैंने एक उच्च स्तरीय जांच समिति का गठन किया है और उसे एक सप्ताह के भीतर पूरी जांच रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए हैं। साथ ही यह स्पष्ट रूप से कहा है कि जांच में यह सुनिश्चित किया जाए कि रक्त आपूर्ति रक्त अधिकोष से हुई थी या बाहर से।

हाई कोर्ट ने लगाई फटकार 

जानकारी के अनुसार झारखंड हाईकोर्ट ने 26 अक्टूबर 2025 को इस मामले का स्वतः संज्ञान लिया है। अदालत ने स्वास्थ्य विभाग से पूरी रिपोर्ट मांगी है और चाईबासा के सिविल सर्जन डॉ. सुशांतो माजी तथा राज्य के स्वास्थ्य सचिव को नोटिस जारी किया है। इसी बीच राज्य सरकार ने तीन सदस्यीय स्थानीय जांच समिति बना दी है जो जल्द ही अपनी जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी।

यह पूरी घटना दिखाती है कि थैलेसीमिया जैसे रोगों में बार-बार रक्त चढ़ाने की प्रक्रिया में कितनी सावधानी जरूरी होती है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ब्लड स्क्रीनिंग (रक्त जांच) की प्रक्रिया को और सख्त बनाना जरूरी है।

चाईबासा जिले में फिलहाल 515 HIV संक्रमित मरीज हैं 

दैनिक भास्कर के रिपोर्ट अनुसार स्वास्थ्य सेवाओं के निदेशक डॉ. दिनेश कुमार ने बताया कि फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि बच्चों में संक्रमण कैसे फैला। जांच की जा रही है कि क्या उन्हें संक्रमित खून चढ़ाया गया या किसी अन्य माध्यम से यह संक्रमण पहुंचा। उन्होंने बताया कि चाईबासा जिले में फिलहाल 515 HIV संक्रमित मरीज हैं जबकि 56 बच्चे थैलेसीमिया से पीड़ित हैं। टीम ने ब्लड बैंक, पीकू वार्ड और लैबोरेटरी का निरीक्षण किया। संबंधित कर्मियों से पूछताछ की। सभी कर्मचारियों और डॉक्टरों को जांच के दायरे में लाने का निर्देश दिया गया है।

थैलेसीमिया क्या है? 

थैलेसीमिया एक वंशानुगत (आनुवंशिक) बीमारी है जो रक्त (खून) से जुड़ी होती है। इसमें शरीर हीमोग्लोबिन (खून) नामक प्रोटीन को ठीक से नहीं बना पाता। हीमोग्लोबिन का काम हमारे शरीर के अलग-अलग हिस्सों तक ऑक्सीजन पहुंचाना होता है। जब यह कम बनता है तो खून में ऑक्सीजन कम पहुंचती है।

HIV (एचआईवी) क्या है? 

एचआईवी (ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस) एक वायरस है जो मानव प्रतिरक्षा प्रणाली पर हमला करता है और उसे कमज़ोर कर देता है जिससे शरीर संक्रमण और बीमारियों से ठीक से नहीं लड़ पाता है। यह यौन संबंध, संक्रमित सुई या रक्त के माध्यम से फैलता है लेकिन हाथ मिलाने या साथ खाने जैसी सामान्य परिस्थितियों में नहीं फैलता। उचित उपचार के बिना एचआईवी एड्स (एक्वायर्ड इम्यूनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम) का कारण बन सकता है जो इस वायरस के कारण होने वाली गंभीर बीमारियों का एक समूह है। हालांकि इसका कोई इलाज नहीं है पर प्रभावी दवाओं से एचआईवी से संक्रमित लोग लंबा और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। 

इस तरह की स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही पहली खबर नहीं है। आज से ठीक एक सप्ताह पहले 22 अक्टूबर 2025 को एक खबर है जिसमें त्तर प्रदेश के आगरा के फतेहाबाद सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में महिला को डिलीवरी (प्रसव) के तीन घंटे बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। इसके बाद घर पहुंच कर महिला को काफी ज़्यादा ब्लीडिंग होने लगी (शरीर से ज़्यादा खून बहने लगा) जिस से कारण उस महिला की मौत हो गई। 

Woman Dies in Hospital: महिला को डिलीवरी के तीन घंटे बाद अस्पताल से दे दी छुट्टी, अधिक खून बहने से महिला की मौत 

 

इसी तरह खबर पटना के मुजफ्फरपुर से भी आई थी। घटना 26 मई 2025 की है जहां मुजफ्फरपुर स्थित कुढ़नी थाना क्षेत्र के गांव में एक 10 वर्षीय नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार का मामला सामने आया था और उसे शनिवार को गंभीर हालत में पटना मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (पीएमसीएच) लाया गया था। कथित तौर पर सामने आया कि अस्पताल में इलाज के लिए इंतजार करते हुए छः दिन तक मौत से जूझने के बाद 31 मई रविवार को नाबालिग लड़की की मौत हो गई।

Patna: नाबालिग दलित लड़की के साथ बलात्कार और फिर इलाज में देरी होने से हुई अस्पताल में मौत

 

चाहे आगरा की प्रसूता महिला की मौत हो या पटना की नाबालिग लड़की की इलाज के इंतजार में हुई मृत्यु, हर घटना बताती है कि हमारे सरकारी अस्पतालों में संवेदनशीलता की जगह सुस्ती और जिम्मेदारी की जगह उदासीनता ने ले ली है। यह वही प्रणाली है जिस पर आम लोग अपने जीवन की आखिरी उम्मीद रखकर भरोसा करते हैं लेकिन जब वही व्यवस्था लापरवाही तकनीकी चूक और जवाबदेही की कमी से बच्चों को जीवन नहीं बल्कि संक्रमण दे दे तो सवाल सिर्फ अस्पताल पर नहीं पूरे स्वास्थ्य तंत्र पर खड़े होते हैं। यह स्वास्थ्य व्यवस्था की गहरी विफलता का उदाहरण है।

 

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