26 अगस्त को अदालत ने कोविड-19 महामारी को देखते हुए, सरकार के आदेश को न मानने और लापरवाही बरतने की वजह से तबलीगी जमात में शामिल हुए 36 विदेशियों के खिलाफ मुकदमे का आदेश दिया। दिल्ली की साकेत अदालत ने पुलिस की चार्जशीट को स्वीकारते हुए, इस बात पर सहमति जताई की जमातियों पर लगे सारे आरोप सही है। अदालत ने बताया कि पुलिस ने 1300 लोगो के ऊपर चार्जशीट ज़ारी की थी। साथ ही विदेश से आए सभी तबलीगी जमात के लोगों का परीक्षण राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम के धराओ के तहत किया जाएगा।
तबलीगी जमात की तरफ से वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन की दलील
तबलीगी जमात की तरफ से केस लड़ रही वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन कहती है कि अदालत को अब इन पर लगायी हुई चार्जशीट को खत्म कर देना चाहिए। वहीं पुलिस की तरफ से अतुल श्रीवास्तव मुद्दे को आगे बढ़ाने के लिए अदालत से सिफ़ारिश करते है। दोनों तरफ की बातें सुनने के बाद अदालत जमातियों को ही कसूरवार ठहराती है और कहती है की जमात के लोगो ने जान–बूझकर सरकार की आज्ञा को नकारा है। साथ ही अदालत का कहना है कि मरकज़ में शामिल हुए लोगो ने किसी भी प्रकार की दूरी बनाकर नहीं रखी थी। न ही उन्होंने मास्क लगा रखे थे ना ही उनके पास सैनिटाइज़र था। इससे यह साबित होता है कि कोरोना को बढ़ाने में इन लोगो का बहुत बड़ा हाथ था , अदालत ने ऐसा कहा।
दिल्ली के साकेत अदालत ने किया 8 बेगुनाह जमातियों को रिहा
वहीं 25 अगस्त को अदालत ने तबलीगी जमात के आठ लोगो को रिहा कर दिया। अदालत के अनुसार उन आठ लोगों के खिलाफ “कोई प्राथमिक सबूत नहीं ” थे। साथ में मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट गुरमोहन कौर कहती हैं कि ” पूरे दस्तावेज़ में इन आठ लोगों का मरकज़ में शामिल होने के कोई सबूत नहीं है। साथ में अदालत ने विदेशी अधिनियम और आईपीसी की धारा 14 के तहत 36 लोगों को भी बरी कर दिया। लेकिन इन लोगो पर महामारी अधिनियम, आपदा प्रबंधन अधिनियम और अन्य आईपीसी धाराओं के तहत मुकदमा चलता रहेगा।
अदालत द्वारा जमातियों को छोड़ने पर पुलिस का विरोध
वहीं दिल्ली पुलिस अदालत द्वारा रिहा किये गए लोगो का विरोध करती है। पुलिस का कहना है उनके पास कार्यवाही करने के लिए उचित दस्तावेज़ और सबूत थे। वह कहती है कि उन्होंने इसके लिए गृह मंत्रालय को पत्र भी लिखा था और सबूत पेश किए थे कि आरोपी टूरिस्ट वीज़ा पर भारत आए थे लेकिन वीज़ा मैनुअल का उल्लंघन करते हुए “तबलीग़ी काम में शामिल थे“।
जानिए यूला को, जो भारत मरकज़ में शामिल होने आयी थी
किर्गिस्तान की 45 वर्षीय नूरबेक डोसमुंकबेट उलु बताती है कि अदालत ने उन्हें रिहा कर दिया है। यह देखते हुए की वह जमात में शामिल नहीं थी। वह 8 दिसंबर, 2019 को वह भारत आयीं थी और दिल्ली जाने से पहले पटना में लगभग 25 दिन बिताए थे। वह कहती है कि “मैंने कोविड से बचने के लिए बहुत पहले ही मरकज़ इमारत को छोड़ दिया था और दिल्ली के किसी और मस्जिद में रहने चली गयी थी। उन्होंने बताया कि फिर उन्होंने मस्जिद से द्वारका के एक कोविड सेन्टर में लेकर जाया गया। जहां उनका चार बार टेस्ट हुआ और चारों ही बार रिपोर्ट नकारात्मक आयी”।
अपने परिवार में एकमात्र कमानेवाले उलु ने कहा कि उनकी पत्नी और चार बच्चे उनका घर वापस आने का इंतजार कर रहे हैं। “मुझे खुशी है कि सच्चाई सामने आ गयी है। मैंने कोई कानून नहीं तोड़ा। इतनी झूठी खबरों और प्रचार के बाद भी, कम से कम ऐसे न्यायाधीश हैं जो सच्चाई की तलाश करते हैं, ”उन्होंने कहा।
जमातियों को ठहराया गया कोरोना के बढ़ने का जिम्मेदार
जब मुश्किलें बढ़ने लगती है तो चाहें वह कोई साधारण व्यक्ति हो या फिर सरकार, दोनों ही उन मुश्किलों का कारण किसी और पर थोपने की कोशिश करते हैं। मार्च 2020 में बड़ी संख्या में विदेश से तबलीगी जमात के लोग निजामुद्दीन मरकज़ का हिस्सा बनने आए थे। उस वक़्त देश में कोविड-19 के मामले धीरे–धीरे बढ़ना शुरू हो गए थे। कुछ वक़्त के बाद यह मामला सामने आया कि जिन लोगों ने 12 मार्च से 22 मार्च के बीच मरकज़ में हिस्सा लिया था, वह कोरोना टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए है। फिर यह भी कहा जाने लगा कि मरकज़ से निकलने के बाद तबलीगी जमात के लोगो ने दूसरो को भी खुद से संक्रमित किया है। निज़ामुद्दीन मरकज़ का मुद्दा मार्च महीने में बहुत उछाला गया था , क्यूंकि मरकज़ में शामिल होने के बाद निज़ामुद्दीन कोरोना संक्रमितों का हॉटस्पॉट बन गया था।
इस वक़्त सरकार की अवहेलना करने की वजह से 2,765 विदेशी जमातियों को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया है। वहीं 1095 लोगो को छोड़ दिया गया है।
सरकार व कुछ मीडिया चैनेलो द्वारा मरकज़ में शामिल हुए सारे लोगो को पहले ही गुनहगार साबित कर दिया गया। उनकी ऐसी छवि देश भर में फैली दी गई हैं कि लोगों के मन में उन लोगों के लिए कड़वाहट आ गयी। आखिर में तो यही साबित हुआ कि कुछ लोगो को तो महामारी का पता भी नहीं था कि वह देश में लोगो के एक–दूसरे के छूने से फ़ैल रही है। पूरी जांच पड़ताल किए बिना सभी मरकज़ के लोगो के खिलाफ चार्जशीट बना दी गयी और महीनो तक के लिए उनके वीज़ा भी ज़ब्त कर लिए गए।
पुलिस द्वारा की गयी जल्दबाज़ी और लापरवाही के कारण,बेक़सूर लोगो को कई मुश्किलें उठानी पड़ी। सरकार या अदालत ने पुलिस द्वारा की गयी लापरवाही पर सवाल क्यों नहीं उठाए। क्या सरकार यहां इसलिए चुप थी की कहीं धार्मिक मामलों में ज़्यादा बोलने से बात उन पर ही ना आ जाए। क्या ये सरकार का कर्तव्य नहीं बनता था कि वह लोगो में फ़ैल रही नफरत को कम करे और जो सच है वही जनता के सामने लाए। ऐसा लगता है कि मानो यह सब सोच समझ कर किया गया हो। किसी एक समुदाय पर आरोप लगाना यहां सबके लिए बहुत आसान था। क्या इस भारत को और सरकार को धर्मनिरपेक्ष कहा जा सकता है।