खबर लहरिया Blog कोरोना काल में डगमगाई व्यवस्था के कारण यूरिया न मिलने से पिस रहा किसान

कोरोना काल में डगमगाई व्यवस्था के कारण यूरिया न मिलने से पिस रहा किसान

कोरोना वायरस महामारी के बीच देश में चल रही  अर्थव्यवस्था के बीच  किसानों को भी एक से बढ कर एक नई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है| एक तरफ चित्रकूटधाम मंडल में सूखे की मार से किसानों की कमर टूट रही थी और बारिश ना होने से किसानों ने जो खरीफ की फसल  की बोआई की थी वह सूख रही थी और धान की नर्सरी तैयार करने के बाद भी किसान धान की रोपाई नहीं कर पा रहा था |
अब अगर बारिश हुई है,तो  किसानों के सामने यूरिया खाद  का संकट आ गया|  खरीफ और धान इन फसलों के बेहतर  उत्पादन के लिए  अब यूरिया खाद की जरूरत है| बाजारों में यूरिया की कालाबाजारी को देखते हुए किसान कृषि विभाग के कार्यालय से लेकर गांव और  बाजारों के दुकानों तक खरीदने के लिए चक्कर काटने को मजबूर हैं,लेकिन किसानों की मांग के हिसाब से यूरिया खाद की खेप ना  आने पर किसान अपनी फसलों में खाद डालने के लिए बाजारों से महंगे दामों में खरीद रहा है| जिससे बाजारों में खाद की कालाबाजारी जोरों पर चल रही है और विभाग का दावा कोरा कागज साबित हो रहा है|

सोसाइटियों में यूरिया के लाले किसान परेशान

चित्रकूटधाम मंडल के चारो जिलों मे इस साल 9208 मीट्रिक टन यूरिया खाद आनी थी,लेकिन अभी तक में उसे आधी ही आ पाई है| जबकि इस समय खरीफ के सीजन में खाद की बहुत जरुरत पड़ती है,क्योंकि इसे ही किसान धान और मक्का सहित खरीफ की अन्य फसलों में इस्तेमाल करते हैं और सबसे ज्यादा धान की रोपाई के बाद  यूरिया खाद की जरुरत पड़ती है| ताकि फसल पीली न पड़े और खाद के पोषक तत्व मिलने से वह हरी-भरी बनी रहे,लेकिन अब ऐन मौके पर जब यूरिया खाद की जरुरत है,तो खाद ना मिलने से किसानों को भारी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है|

मंडल के कौन से जिले में आनी थी कितनी यूरिया खाद

बांदा जिले के किसान बलराम तिवारी और नरैनी के किसान रशिक बिहारी खरे बताते हैं कि यहाँ पर खरीफ की अन्य फसलों के अपेक्षा धान की पैदावार ज्यादा होती है इसलिए इस मौसम में यहां के किसानों को यूरिया खाद की बहुत ही जरूरत पड़ती है,लेकिन इस साल  महामारी के चलते खाद की भी कमी हो गई है और केंद्रों में खाद के लिए किसानों की लाइन लगी रहती है दिन -दिन भर  किसानी और घर का काम छोडे़ लाइन लगाने के बाद भी किसान निराश होकर लौट जाते हैं इससे उनकी खरीफ की फसल बर्बाद हो रही है,साथ ही उनका पैसा और समय भी खराब हो रहा है| इस लिए मजबूरी में किसान  350 रुपये की बोरी मिलने वाली यूरिया खाद 450 रुपये में खरीद रहा है ताकि उसकी फसल बच सके,क्योंकि बांदा जिले में इस साल 5037 मीट्रिक टन खाद की खपत थी लेकिन उसके अपेक्षा 2038,चित्रकूट में 2459 मीट्रिक टन खपत के अपेक्षा 831एमटी, महोबा में 255 एमटी के अपेक्षा 1815 एमटी और हमीरपुर मे 1457 एमटी के अपेक्षा 829मीट्रिक टन खाद पीसीएफ ने मंगाई है और यह खपत से आधी खाद है|

जरुरत से आधी मिल रही खाद,किसानों में मचा हडकंप

चित्रकूट जिले के छेछरिया गांव के किसान चुन्ना प्रसाद और ब्यूर के श्यामलाल बताते हैं कि खाद न मिलने से उनकी फसल बर्बाद हो रही है वह चार दिन से बराबर  खाद के लिए मंडी के चक्कर काट रहे हैं,सुबह 8 बजे से लाइन लगा दी जाती हैं पर शाम को निराश होकर लौटना पडता है और अब तो उनके पास किराया भी नहीं बचा साथ ही भीड़ लगने से पुलिस भी खदेडती है,पर क्या करें हम किसानों को तो अपनी उपज के लिए सब कुछ सहना पड़ता है| किसी तरह कर्ज लेकर जोताई बोआई की थी और बीज खरीद कर डाला था की अच्छी पैदा बार होगी तो कर्ज भर देगें ,लेकिन अब खाद नहीं मिल रही अगर यही खाद एक हप्ते पहले सयय से मिल जाती तो फसल अच्छी होती पर क्या करें खाद ना मिलने से परेशान हैं और जितना लेट होगा उतना ही हम किसानों का नुकसान है|

क्या इसी तरह खाद के लिए चक्कर काटते रहेंगे किसान

कृषि  विभाग के मुताबिक अगर 9208 मीट्रिक टन खाद आनी थी तो क्यों नहीं आई  ये अपने आप में एक सवाल उठता है कि जिस तरह अच्छी फसल का दावा किया जा रहा था तो क्या इसी तरह की स्थिति में किसान अच्छा उत्पादन कर पाएगा या समय रहते उनको खाद मिल पाएगी या फिर विभाग और सरकार का किसानों के प्रति अच्छा बताने वाला दावा कोरा कागज बन के रह जाएगा |