सदियों से महिलाओं को बहुत से नियम कानून और मर्यादा के नाम पर उन्हें रूढीवादी जंजीरों की सोंच के साथ बांध कर रखा जाता। उनसे जबर्दस्ती मर्यादा के नाम पर वो हर काम हर रिवाज कराए जाते हैं। जिसे न चाहते हुए भी उन्हें करना पड़ता है।कुछ महिलाएं उसे अपनी जिम्मेदारी समझकर करने लगती है। कुछ समाज परिवार के डर से करती हैं। कभी जेवर की जंजीर तो कभी रस्मो रिवाज के नाम पर उनसे उनकी मर्जी से जीने का अधिकार छीनते जाते हैं। मुस्लिम महिलाएं अपना फर्ज समझ पर्दे मे यानी बुर्के में रहती हैं। उनको शरियत की दुहाई देकर उन्हें पर्दे मे रहना जायज़ बताकर हमेशा से एक समान की तरह घर मे रहने की सलाह दी जाती है।
अगर निकलने की इजाज़त दी भी तो बिना बुर्का ओढे बाहर नहीं जाने दिया जाता। ना महरम की नजर नही पड़नी चेहरे पर नहीं बहुत बड़ा गुनाह होगा। इस तरह से शरियत की दुहाई देकर और गुनाह जैसा डर औरतों के दिल मे बैठा कर उन्हें एक समान की तरह रखा जाता है। इसी तरह हिन्दू धर्म मे होता है महिलाओं को मर्यादा के नाम पर उनसे अपने मन से जीने नहीं दिया जाता है।हिन्दू समुदाय की महिलाओं को के उपर तो बहुत सी ऐसी रुढिवादी प्रथाएं हैं। जो महिलाओं के उपर थोप दी गई हैं।
जैसे करवा चौथ तीज का व्रत और भी बहुत सी ऐसी प्रथाएं हैं। उसी मे उनके यहां भी पर्दा है जो घुघट के रूप मे महिलाओं को पर्दे मे रखा जाता है। चाहे उनका मन हो या न हो लेकिन घूँघट करना ही है नहीं तो मर्यादा का उल्लेख होगा। ग्रामीण स्तर में आज भी महिलाएं लम्बा घुंघट डालना पडता है। सुबह शाम महिलाएं हांथ मे लोटा लेकर सोच के लिए बाहर जा सकती हैं सड़क किनारे खेत मे सौच के लिए बैठ सकती हैं लेकिन घुंघट होना चाहिए।
ये सब किसने नियम कानून बनाए, कहाँ से लागू हुई ये सब प्रथाएं? क्यों सिर्फ सारी मर्यादा महिलाओं से है अगर महिला ये सब न करे तो मर्यादा चली जाएगी, गुनाहगार हो जाएगी। जब सारी मर्यादा महिलाओं के हाथ है तो क्यों आज भी समाज महिलाओं पर इतनी हिंसा करता है।