एक तरफ राजनेताओं ने सरकारी धन की तिजोड़ी खोल दी है तो दूसरी तरफ स्वास्थ्य विभाग कोरोना महामारी से बचने के लिए कितना तैयार है। आज इस पर ही चर्चा करने वाली हूं। 2 साथियों कैसे हैं आप सब लोग। सम्पूर्ण देश इस समय कोरोना महामारी के कहर से बहुत ही हैरान परेशान और दहशत में है। पर हम सबको मिलकर 14 अप्रैल तक लॉकडाउन का पालन करते हुए कोरोना को हराना है। साथ ही इस महामारी से अपने को सुरक्षित रखना है। अगर हम कोरोना संक्रमित हुए तो अपने आस पास पड़ोस के लोगों की भी जिंदगी खतरे में डाल देंगे। 3 सरकार हम सब से ये उम्मीद करती है कि लॉकडाउन को हम मिलकर सफल बनायें। इसके लिए हम सब तैयार हैं पर सरकार से सवाल पूँछेंगे जरूर। सवाल ये है कि शासन प्रशासन स्तर पर स्वास्थ्य विभाग कितना तैयार है। उसकी खुद के कितने इंतज़ाम हैं। मैंने इस पर रिपार्टिंग की। सबसे पहले मैं बात करूंगी चित्रकूट धाम मंडल के मेडिकल कालेज बांदा की। यहां पर ही अगर देखा जाए तो गंभीर मरीज को बेहोश करने के लिए विशेषज्ञ एनेस्थीसिया चिकित्सक तक नहीं है। प्रिंसिपल के मुताबिक आईसीयू और वेंटीलेटर चालू करने के लिए फौरी तौर पर 4 असिस्टेंट प्रोफेसर, 4 एसोसियेट प्रोफेसर, 4 डाक्टर, ट्रेंड स्टाफ नर्स, एनेस्थीसिया एक्सपर्ट की कमी है। अगर ये स्थिति मेडिकल कालेज की है तो chc, phc और उपकेन्द्र की बात करना ही बेकार है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लुकतरा में तो डॉ ही नहीं है पर इसमें अगर सीएमओ की बात करें तो वह कम स्टॉप के साथ ही इस जंग को जीतना चाहते हैं। डीएम ने अपनी एक प्रेस वार्ता में ये जिम्मेदारी मीडिया पर थोप दी। 4 सुविधाएं जरूर नहीं हैं पर इस समय सांसद और विधायकों ने सरकारी खजाने को खर्चने की सोची और अपनी अपनी निधियों से दे दिए बांदा के लिए एक करोड़ रुपये से ज्यादा का मनमाना धन। खैर जो भी हो ये भी कारगर पहल है पर ये पहल तभी सराहनीय होगी जब इसका सदपयोग हो। अच्छा होता अगर इस बजट में से कोई उन गरीब, मजदूर और किसानों को सालभर खाने, दवाई के लिए सामाग्री या पैसे देते जिनका रोजगार छिन गया है। आप ये भी कह सकते हैं कि सरकार घर घर लोगों को जरूरत की सामाग्री पहुंचाएगी पर लोग इसमें भरोसा इतना जल्दी कैसे कर ले। क्योकि सरकार घोषणाएं करती भर है। घोषणाएं धोषणा बनकर रह जाती हैं। 5 हमारा देश इटली, अमेरिका जैसे देशों से मेडिकल फैसलिटी से बहुत बहुत पीछे है लेकिन उन्होंने भी इस बीमारी से निपटने में हाथ खड़े कर दिए। क्या हमारा देश और हमारा शासन प्रशासन इससे निपटने के पूरी तरह से तैयार है? नहीं न, क्योंकि ये किसी से छिपा नहीं कि हमारे यहां की स्वास्थ्य सेवाएं खुद बीमार हैं और क्या बीमार व्यवस्था इलाज़ कर पायेगी?? यहां के लोग, स्वास्थ्य विभाग यहां तक कि जिला प्रशासन भी ये समस्या जानते हुए भी ये मानने के लिए तैयार नहीं कि उनके यहां स्वास्थ्य व्यवस्था बीमार है। सीएमओ इस व्यवस्था में पर्दा डालते हुए कहते हैं कि सारे इंतज़ाम कर लिए गए हैं। जबकि अपनी रिपोर्टिंग के दौरान हमने पाया कि कई सरकारी अस्पताल में ताले पड़ गए हैं। अस्पतालों में डॉक्टर नहीं हैं। 6 तो साथियों अपना देश शायद इसीलिए और पीछे होता जा रहा है कि सरकारी धन का बंदरबांट इतिहास बन चुका है। अपनी कमियों में पर्दा डालना और उसको छुपाना क्या देश के विकास में रोड़ा नहीं? क्या तरह में कार्यवाही नहीं होना चाहिए? काफी हद तक ये कारण गैरजिम्मेदार हैं कोरोना जैसी महामारी से निपटने के लिए। साथियों इन्ही विचारों और सवालों के साथ मैं लेती हूं विदा। अगली बार में फिर आउंगी एक नए मुद्दे के साथ, तब तक के लिए नमस्कार! और हां खुद सुरक्षित और सावधान रहें, जागरूक बने और जागरूकता फैलाएं क्योकि हम सबको मिलकर कोरोना को हराना है।