अक्सर देखते हैं पुरूष महिलाओं पर हाथ उठाते हैं। छोटी-छोटी बातों पर उन्हें मारते हैं। दाल में नमक कम ज़्यादा हो गया तो मार दिया, गाली बक दी।सब्ज़ी में तेल ज़्यादा है तो ‘हराम का आ रहा है मेहनत करनी पड़े तो पता चले’ जैसी बातें कही जाती है। कम हो जाए तो धोवन जैसी सब्ज़ी बनाई है। कुछ सिखाया नहीं मां-बाप ने। उसके साथ-साथ मां-बाप को भी ताने मारने से बाज़ नहीं आते। तरह-तरह की बाते सुना देते हैं।
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बच्चे ने कुछ गलती की होमवर्क नहीं किया तब भी पत्नी की ही गलती कही जाती है। हमारा समाज ऐसे कहता है कि पति ही तो है क्या हुआ।
मर्द की मर्दानगी औरतों के लिए नहीं है बल्कि ये दूसरे मर्दो के लिए है। लेकिन जब मर्द दूसरे मर्दो से हार जाते हैं तो सारी मर्दानगी दिखाने के लिए औरत और बच्चे ही मिलते है।
औरत पर हाथ उठाने पर कोई मर्दानगी नहीं है। जो ऐसा करते हैं वह मर्द नहीं नामर्द होते हैं।असली मर्द को मर्दानगी की नहीं सभ्य होने की ज़रुरत है। नहीं तो मर्द में और जानवरों में कोई अंतर नही रहेगा।
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