खबर लहरिया जिला क्या मानव ही है प्रकृति के दोहन का दुष्परिणाम? द कविता शो

क्या मानव ही है प्रकृति के दोहन का दुष्परिणाम? द कविता शो

दोस्तों बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने किसानों को दुःख में डाल दिया है। 18 मार्च से बारिश और ओला पड़ने से किसानों की फसलें बर्बाद होकर मिट्टी में मिल गई है। फसल की इतनी दुर्दशा देख कर लगता कि अब आने वाले समय में क्या होगा? लोग क्या खाएंगे?

इस साल चारो तरफ बहुत अच्छी फसल थी। एक दिन मैं बांदा के पैलानी क्षेत्र गयी थी और हम लगभग 4 किलोमीटर पैदल चले, खेतों की पगडंडियों से। जिधर नज़र जा रही थी, चारों तरफ खेतों में लहलहाती फसल दिख रही थी। चना, सरसो, गेहूं, मटर और मसूर की फसल इतनी अच्छी थी कि देख कर दिल खुश हो गया था। मैं सोच रही थी इतनी अच्छी फसल है तो इस साल किसान साल भर पेट भर खायेगा और बाकियों की थाली में भी रौनक आयेगी, लेकिन बेमौसम बारिश और ओला ने सब कुछ नष्ट कर दिया। जो बची-कुची फसल है उसको समेटने में किसान लगे हैं, लेकिन हर दिन की बूंदा-बांदी और मौसम का बदलता मिजाज देख कर किसान बहुत डरा हुआ है।

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कहते हैं प्रकृति से बढ़कर कुछ नहीं है। प्रकृति है तो जिंदगी है इसलिए इसका ध्यान देना बहुत ज़रूरी है लेकिन प्रकृति के साथ इतना खिलवाड़ हो रहा है, इतना अन्याय किया जा रहा है जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा किसानों को भुगतना पड़ रहा है। चारों तरफ पेड़ों की कटाई होती है। जंगलो और पहाड़ों को काट कर खोखला कर दिया गया। जबसे सड़कों का चौड़ीकरण हो रहा है और एक्सप्रेसवे सड़कें बन रही हैं तबसे सड़क किनारे छायादार पेड़ों को सरकार ने खुद कटवा दिया है। मेरे देखते-देखते नरैनी के पहाड़, भरतकूप के पहाड़, महोबा के पहाड़ों को खोद कर उसके महंगे पत्थरों को निकाल कर खाई में तब्दील कर दिया गया है। अब आप ही बताइये, जब पहाड़ नहीं रहेंगे, पेड़ नहीं रहेगें तो बारिशों में असर तो पड़ेगा ही।

ललनटॉप की वेबसाइट में छपी खबर के मुताबिक़ भारत सरकार ने पेड़ों की कटाई को लेकर संसद में एक आंकड़ा पेश किया है, जो कि काफी चौंकाने वाला है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने लोकसभा में बताया है कि सिर्फ वर्ष 2020-21 में ही देश के विभिन्न हिस्सों में 30 लाख 97 हजार 721 पेड़ काटे गए थे। लगभग 31 लाख। मंत्रालय ने वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 के तहत इसकी मंजूरी दी थी।

सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में। तकरीबन 16.40 लाख पेड़ों को काटने की इजाजत दी गई। इसके बाद उत्तर प्रदेश का नंबर आता है, जहां 3.11 लाख पेड़ काटने की मंजूरी दी गई थी। तो सच्चाई यही है दोस्तों। सरकार पेड़ खुद कटवाती है और अगर आदिवासी जंगल से लकड़ी काट कर लाते हैं सिर्फ अपना चूल्हा जलाने के लिए तो उनको जेल भेज दिया जाता है। प्राकृतिक आपदा का बुलावा सरकार खुद भी देती है और खामियाजा किसानों को और आम जनता को भुगतना पड़ता है। आप क्या सोचते हैं अपनी राय ज़रूर से शामिल करें। अगर ये शो पसंद आया हो तो दोस्तों के साथ शेयर करें, अगले एपिसोड में फिर मिलूंगी, नमस्कार!!

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