खबर लहरिया Blog बुंदेलखंड : पर्यावरण और मानव जीवन के लिए खतरा बना खनन

बुंदेलखंड : पर्यावरण और मानव जीवन के लिए खतरा बना खनन

बुंदेलखंड में बड़ी संख्या में खनिज खदाने हैं। यहां कानूनी प्रतिबंधों और एनजीटी के आदेशों को अनदेखा कर अवैध खनन का काम सालों से होता आ रहा है। ये बात किसी से छिपी नहीं है। हालंकि, स्वीकृत पट्टों से प्रदेश सरकार को बड़ा राजस्व पहुंचता है लेकिन अवैध खनन से नदी, पहाड़, फसल, पानी, पर्यावरण, वनस्पतियां और जीव-जंतु बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं। इसके चलते पहाड़ों और नदियों के आस-पास बसे गांव के ग्रामीणों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इन मुद्दों पर समय-समय पर आवाज़ भी उठती रहती है लेकिन इन आवाजों को सुनने वाले अधिकारियों के कान में जूं नहीं रेंगती। ग्रामीण खनन माफिया की हिंसा का शिकार होते रहते हैं।

Bundelkhand news, Mining poses threat to environment and human life

                                                                                                         खनन की जगह ( फोटो साभार – खबर लहरिया )

खनन की वजह से उसने वाली रेत और पहाड़ों में होने वाली ब्लास्टिंग की डस्ट ज़मीन के साथ- साथ शुद्ध जल और वायु को भी दूषित करती है। इसका प्रभाव मानव जीवन तथा पशु-पक्षियों पर पड़ता है। रेत और डस्ट के कण लोगों के फेफड़ों और आंखों में पहुंच जाने से लोगों के शरीर को तरह-तरह की बीमारियां घेर लेती हैं। पहाड़ों और नदियों की बलि दी जा रही है। कई वन्य जीवों की प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर हैं।

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ग्रामीणों की कहानी उनकी जुबानी

बांदा जिले के गिरवां थाना क्षेत्र के गांव जरर निवासी अभिषेक शुक्ला कहते हैं कि उनके क्षेत्र में कई ऐसे पहाड़ हैं जहां पर रातों-दिन ब्लास्टिंग होती रहती है। मशीनों से पहाड़ों की तोड़ाई होती है जिससे उनका जल,जीवन, फसल और आस्था के प्रतीक मंदिर सब अस्त-व्यस्त हो गया है। प्रदूषण के कारण उनको सांस लेना भी मुश्किल है। इस प्रदुषण से जरर, गिरवां और पतरहा गांव बुरी तरह प्रभावित हैं। इस मामले को लेकर कई बार उन्होंने आवाज उठाई लेकिन उनको कुछ हासिल नहीं हुआ। अब वह चुप नहीं बैठेंगे क्योंकि पहाड़ उनके जीवन की प्रकृति, संरक्षण और समृद्धि हैं। इसके लिए उन्हें लड़ाई लड़नी ही होगी। इसके लिए कमर कसनी होगी। उनकी आने वाली पीढ़ी जब उनसे सवाल करेगी तो वह क्या जवाब देंगे। अगर उन्हें पहाड़ों के लिए लड़ना है तो पत्थर बनना होगा। पहाड़ उनका आज है, और आने वाला कल भी है। ये मशीनें सब भाग जाएगी इसलिए इरादा बुलन्द करके लड़ना होगा।

खनन करने और बेचने वालों का अपना जाल है, लेकिन बचाने के लिए उन्हें संघर्ष करने का इरादा पक्का करना है। पहाड़, नदियों के पिता होते हैं और प्रकृति के सैनिक होते हैं लेकिन हमारी हवस ने सब कुछ निगल लिया। वह मदन दास गोपाल नामक पर्यावरण संरक्षण समिति चलाते हैं उसके जरिए पर्यावरण के लिए आन्दोलन भी करेंगे। खनन के धंधे वाले लोगों का नेटवर्क बहुत तगड़ा होता है। हो सकता है उनको न्यायालय जाना पड़े। पिछड़ा क्षेत्र है लेकिन इस लड़ाई के लिए इतने लोग काफी नहीं है।

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पतरहा गांव कि भूरी कहती हैं कि जब ब्लास्टिंग होती है तो बच्चे घायल हो जाते हैं। कई मौतें भी हो चुकी हैं। मारे डर के गर्मियों तक में लोग छत में नहीं लेटते। लोग यहां की समस्या को लेकर डीएम के यहां गए तो डीएम ने कहा कि गांव खाली कराना है। पिछले महीने उनके गांव में खनन को लेकर पन्द्रह दिन अनशन चला और गोष्ठी हुई लेकिन प्रशासन गूंगा बहरा बना रहा। पहाड़ जितने ऊंचे थे उतने ही गहरे होते जा रहे हैं।

क्या कहते हैं पर्यावरण संरक्षण समिति संचालक

समिति संचालक मदन गोपाल दास कहते हैं कि लोग खेती में भी अब ज़हर बो रहे हैं जिससे आने वाली पीढ़ी अल्प आयु में ही समाप्त हो जायेगी। आज कल शहर में पढ़ रहे बच्चे ग्रामीण बच्चों से तुलना नहीं कर सकते क्योंकि कागजी पढ़ाई प्रकृति प्रवेश नहीं दे सकती। गिरवां क्षेत्र के पहाड़ों में अवैध खनन और क्रेशर मशीनों से हजारों बीघा खेती बर्बाद हो रही है और कई प्राचीन शिव मंदिर भी खतरे में हैं इसलिए संतो के साथ चार गाँवो के लोगों को खनन व क्रेशर बंद करवाने की मांग जोरों से करनी होगी।

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बुंदेलखंड खनिज संपदा का क्षेत्र

जमवारा गांव के इरशाद हुसैन कहते हैं कि बुंदेलखंड में खनिज संपदा अधिक मात्रा में है। यहां की नदियां बालू से भरी हैं, और पहाड़ भी भारी मात्रा में है। उन पहाड़ों को तोड़कर गिट्टी बनाई जाती है। इस खनिज संपदा से प्रदेश सरकार को हर महीने करोड़ों रुपए का राजस्व मिलता होगा। खनन को लेकर एनजीटी और सरकार के नियम हैं जिसका पालन करते हुए खनन किया जाना चाहिए परन्तु यहां मानकों को ताक पर रखकर खनन का काम कई सालों से चल रहा है जिससे की जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। नरैनी क्षेत्र के लहुरेटा खदान से बालू भरे ओवरलोड ट्रकों से गरीब किसान परेशान हैं। इसके साथ ही नदियों का स्वरुप बिगड़ रहा है जो हमारी जीवनदायिनी है।

बांदा, चित्रकूट और महोबा खनन के मुख्य क्षेत्र हैं जो पर्यावरण के नज़र से काफी नुकसान देह है। यह मानव जीवन के लिए सही नहीं है क्योंकि जल, जंगल,ज़मीन, नदी और पहाड़ ही एक मनुष्य का मुख्य जीवन है जिससे शुद्ध पानी, हवा और शुद्ध खाद्य पदार्थ मिलते हैं लेकिन इस खनन के चलते यह सब चीजें प्रदूषित हो रही हैं और ग्रामीण कई तरह की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं।

खनन के कारण नदियों का बिगड़ता स्वरुप

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खनन की वजह से नदियों में बड़े-बड़े गड्ढे हो जाते हैं, जिससे नदियों का स्वरूप बदल रहा है। पहाड़ों में खनन के बाद हज़ारों फीट गहरी खाई हो गई हैं जिसको सुरक्षित करने के लिए ज़िम्मेदारों के पास कोई इंतजाम नहीं है। इस गंभीर मामले पर ज़िम्मेदार कुछ भी बोलने को जल्दी तैयार नहीं होते हैं और तो और अधिकारी भी कई बार अवैध खनन में शामिल पाए जाते हैं।

नदियों में बड़ी-बड़ी मशीनों से बीच धारा से रेत निकालने का काम किया जाता है। पहाड़ों में बारूद लगाकर हैवी ब्लास्टिंग कर इन्हें तोड़ने का काम भी यहां पर अवैध तरीके से किया जा रहा है जिससे यहां की भौगोलिक स्थिति बदलती जा रही है। पहाड़ों के आस-पास बसे गांव के लोगों के घरों को क्षति पहुंच रही है। खेती बंजर और पानी प्रदूषित हो रहा है।

बुन्देलखण्ड की सबसे बड़ी पत्थर मंडी

महोबा जिले के कबरई कस्बे के पत्थर मंडी की गिट्टी पूरे देश में जाती है। बांदा में केन, यमुना, बागेन और चंद्रावल नदी से रेत निकालने को लेकर पट्टे आवंटित किए जाते हैं। यहां पर मानकों को दरकिनार कर अवैध तरीके से खनन का काम किया जाता है। ये रेत भी देश के कोने-कोने तक जाती है जिसको लाल सोना के नाम से भी जाना जाता है।

खनन के कारण जीवन पर दुष्प्रभाव

खासकर गर्मियों के दिनों में लोगों को पानी की समस्या झेलनी पड़ती है। खनन होने से जलीय जीव-जंतु और वनस्पतियों को भी नुकसान पहुंच रहा है। इन क्षेत्रों के आस-पास किसानों की ज़मीन बंजर होती जा रही हैं। उन्हें फसलों का उत्पादन भी नहीं मिल रहा है। यहां तक कि खनन माफिया अपनी धौंस और ताकत के बल से किसानों के खेतों के बीच से ओवरलोडिंग के ट्रक निकालते हैं। नदी के किनारे जो भी किसानों के खेत हैं उनसे चोरी छुपे बालू निकालते हैं जिनमें बड़े-बड़े गड्ढे हो जाते हैं और किसान फिर उन खेतों में फसल का एक दाना भी नहीं तैयार कर पाते। अगर किसान इस मुद्दे को लेकर आवाज उठाते हैं और अपने खेतों से ट्रक निकलने से रोकते हैं तो उनके साथ अलग-अलग तरह से हिंसाएं होती हैं। स्थानीय लोग चिंतित हैं और दिन-रात बढ़ता खनन भविष्य के लिए खतरा बन गया है।

इस खबर की रिपोर्टिंग गीता देवी द्वारा व लेख को मीरा देवी द्वारा लिखा गया है। 

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