ट्रंप ने नए H‑1B वीज़ा आवेदकों पर $100,000 (88 लाख) शुल्क लागू किया। नए नियम से कंपनियां ऑफशोर (कर्मचारी देश के बाहर रहते हुए काम करते हैं) काम बढ़ा सकती हैं और ऑनशोर (कर्मचारी देश के अंदर (जहाँ प्रोजेक्ट है) काम करते हैं।) स्टाफ घटा सकती हैं। विपक्ष ने सरकार पर कड़ा रुख न अपनाने और भारतीय हितों की सुरक्षा में चूक का आरोप लगाया।
लेखन – हिंदुजा
ट्रम्प ने H- 1B वीज़ा को लेकर क्या घोषणा की?
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की 19 सितंबर को की गई H-1B वीज़ा संबंधी घोषणा ने बड़ा असर डाला है, खासकर अमेरिका में काम कर रहे भारतीय लोगों पर। इस आदेश से टेक उद्योग में हलचल मच गई थी और लाखों H-1B धारक अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितता महसूस करने लगे थे। हालाँकि अमेरिकी सरकार ने अब को साफ किया है नए नियम मौजूदा वीज़ा धारकों पर लागू नहीं होंगे। यह बदलाव केवल नए आवेदकों के लिए है।
राष्ट्रपति ट्रंप ने घोषणा की कि अब नए H-1B वीज़ा के लिए एकमुश्त 100,000 डॉलर का शुल्क देना होगा।
अब क्या स्पष्टीकरण दिया है?
To be clear:
1.) This is NOT an annual fee. It’s a one-time fee that applies only to the petition.
2.) Those who already hold H-1B visas and are currently outside of the country right now will NOT be charged $100,000 to re-enter.
H-1B visa holders can leave and re-enter the…
— Karoline Leavitt (@PressSec) September 20, 2025
इस नीति पर बढ़ते सवालों के बीच व्हाइट हाउस ने शनिवार, 20 सितंबर को स्पष्ट किया कि यह शुल्क केवल नए आवेदनकर्ताओं से लिया होगा और पहले से दिए गए आवेदन प्रभावित नहीं होंगे। आदेश रविवार, 21 सितंबर की मध्यरात्रि से प्रभावी हो गया।
इस फैसले ने अमेरिकी तकनीकी क्षेत्र को झकझोर दिया है और खासतौर से भारतीय आईटी पेशेवरों पर इसका सीधा असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है। व्हाइट हाउस ने जबतक ये बात साफ़ नहीं की थी तबतक बड़ी अफरा तफरी मची थी। जो भारतीय छुट्टियां मानाने या कुछ दिनों के लिए भारत आये थे या अमेरिका से बाहर थे उन्हें उनकी कंपनियों ने 24 घंटे में वापस आने का आदेश दे दिया था।
ये इसलिए किया गया क्यूंकि नए नियम 21 तारीख से लागु होते तो 100,000 डॉलर देने से बचने के लिए कपनियां सबको वापस बुला रही थी। अमेरिकी कानून के मुताबिक़, H‑1B वीज़ा आवेदन और प्रोसेसिंग फीस का भुगतान नियोक्ता (employer) को करना पड़ता है।
क्या है H- 1B वीज़ा?
H‑1B वीज़ा एक अमेरिकी वीज़ा प्रोग्राम है जो विदेशी पेशेवरों को अमेरिका में काम करने की अनुमति देता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ विशेषज्ञता और तकनीकी कौशल की जरूरत होती है।
कौन ले सकता है: आम तौर पर कॉलेज या यूनिवर्सिटी की डिग्री रखने वाले पेशेवर, जैसे आईटी, इंजीनियरिंग, साइंस, मेडिकल, या बिज़नेस क्षेत्रों में विशेषज्ञ।
किसके लिए: यह वीज़ा नियोक्ता (employer) द्वारा स्पोंसर किया जाता है। यानी कंपनी अमेरिका में विदेशी कर्मचारी को नौकरी देने के लिए H‑1B आवेदन करती है।
अवधि: शुरुआत में यह वीज़ा तीन साल के लिए दिया जाता है, और बाद में इसे छह साल तक बढ़ाया जा सकता है।
ट्रम्प का ये करने के पीछा का कारण?
अमेरिका के श्रम विभाग ने इस प्रोजेक्ट को फायरवॉल का नाम दिया है। ये $100,000 H-1B वीज़ा शुल्क वृद्धि के साथ लॉन्च किया गया। फायरवॉल जैसे कंप्यूटर में हानिकारक गतिविधियों को रोकता है। इसी तरह, यह प्रोजेक्ट भी वीज़ा सिस्टम में किसी भी तरह के छल या अवैध तरीके को रोकने के लिए लाया गया है।
ट्रम्प के मुताबिक, ये अभियान ये सुनिश्चित करता है कि अमेरिकी नौकरी बाजार में प्राथमिकता अमेरिकी कर्मचारियों को मिले, और H-1B वीज़ा का इस्तेमाल केवल योग्य और वैध आवेदकों के लिए हो। नाम से ही संकेत मिलता है कि अब कंपनियों और आवेदकों पर कड़ी निगरानी होगी और नियमों का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
राजनीतिक उद्देश्य स्पष्ट है, प्रशासन के “अमेरिका प्रथम” रुख को बढ़ावा देना, इसके लिए विदेशी श्रमिकों पर निर्भर रहना कठिन और महंगा बनाना, जब तक कि वे वास्तव में अनिवार्य या अमेरिका के लिए उपयोगी न हों।ये एक नए तरीका का नैरेटिव है क्यूंकि इससे पहले अमेरिका की आईटी सेक्टर में जो भारतीय काम करते थे उन्हें ज़रूरी और प्रतिभाशाली या कुशल माना जाता है। इस फैसले के बाद ट्रम्प ये भी बताना चाहते हैं कि अमेरिका को भारत या भारतीय लोगों की ज़रूरत नहीं बल्कि भारत को अमेरिका की ज़रूरत है।
इससे भारत और अमेरिका पर क्या असर पड़ेगा?
अमेरिका के इस प्रोग्राम का लाभ भारतीयों को सबसे ज़्यादा रहा है। पिछले कुछ सालों से H-1B वीज़ा सबसे ज़्यादा भारतीयों को की मिला है- इस वीज़ा के लगभग 70 प्रतिशत धारक भारतीय ही होते हैं। भारत से पढाई के लिए बाहर जाने वाले बच्चे सबसे ज़्यादा अमेरिका देश को ही चुनते हैं बल्कि हमारे यहाँ अमेरिका जाने का या वहां काम करने का, रह पाने का सपना होता है। ये नए नियम उस पर असर डालेंगे क्यूंकि नया शुल्क आईटी सेक्टर में भारतीयों को मिलने वाली सैलरी का डबल है। कंपनियां अब H‑1B के लिए नए कर्मचारियों को कम हायर कर सकती हैं क्यूंकि ये उनके लिए मेहेंगा पड़ेगा। बड़ी आशंका है कि अब भारतीय लोग पेशे की तलाश में अमेरिका नहीं जा पाएंगे उनके लिए भारत में क्या है? उनको उस बराबरी की नौकरी कौन देगा?
वहीँ दूसरी ओर H-1B प्रोग्राम में भारतीयों का दबदबा है, हाल के वर्षों में 70% से ज़्यादा लाभार्थी भारतीय ही रहे हैं। (चीन दूसरा सबसे बड़ा स्रोत था, जहाँ लगभग 12% लाभार्थी भारतीय ही थे।)
प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उनकी उपस्थिति और भी अधिक स्पष्ट है- 2015 में सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम के तहत किए गए अनुरोध से पता चला कि 80% से अधिक “कम्प्यूटर” नौकरियां भारतीयों के पास चली गईं चिकित्सा क्षेत्र में भी दांव पर लगा है। 2023 में, सामान्य चिकित्सा और शल्य चिकित्सा अस्पतालों में काम करने के लिए 8,200 से ज़्यादा H-1B को मंज़ूरी दी गई।
भारत अंतरराष्ट्रीय चिकित्सा स्नातकों (जो आमतौर पर H -1B वीज़ा पर अमेरिका में रहते हैं) का सबसे बड़ा एकल स्रोत है और सभी अंतरराष्ट्रीय डॉक्टरों का लगभग 22% हिस्सा यहीं से आता है। अमेरिकी चिकित्सकों में अंतरराष्ट्रीय डॉक्टरों की संख्या एक-चौथाई तक है, ऐसे में भारतीय एच-1बी वीज़ा धारकों की संख्या कुल संख्या का लगभग 5-6% होने की संभावना है।
कंपनियां भी अपने कर्मचारी काम करने के तरीके पर फिर से सोच सकती हैं- जैसे:
– काम को भारत या किसी और देश से करना (ऑफशोर)
– अमेरिका में काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या कम करना (ऑनशोर रोल्स घटाना)
– H‑1B वीज़ा देने में अधिक सोच-समझकर निर्णय लेना
अमेरिका पर इसका व्यापक असर हो सकता है- अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी, विश्वविद्यालयों में STEM छात्रों की भर्ती में कठिनाई, और गूगल या अमेज़न जैसी कंपनियों के बिना स्टार्ट‑अप्स सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।
विपक्ष का हमला
भाजपा राज में विदेश नीति का आपातकाल आ गया है:
– भाजपा सरकार न मनचाहे टैरिफ़ से बचा पा रही है
– न मनमानी वीज़ा फ़ीस से,
– न पड़ोसी देशों से संबंधों को,
– न गुटनिरपेक्षता की ऐतिहासिक नीति को,
– न प्रवासी भारतीयों को हथकड़ी, जंजीर से और न ही सरेआम अपमान से,
– न विदेश में…— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) September 20, 2025
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा सरकार पर हमला बोलते एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि,“भाजपा शासन के तहत विदेश नीति में आपातकाल लग गया है। भाजपा सरकार भारत को मनमाने टैरिफ और मनमाने वीजा शुल्क से बचाने में असमर्थ है।”
उन्होंने आगे कहा कि सरकार पड़ोसी देशों के साथ संबंध बनाए रखने, देश की ऐतिहासिक गुटनिरपेक्ष नीति का पालन करने, प्रवासी भारतीयों को हथकड़ी, जंजीरों, सार्वजनिक अपमान और हिंसक हमलों से बचाने तथा आतंकवाद के मामले में किसी भी देश को साथ लाने में असमर्थ है।
CPI (M) ने भी इसका खण्डन करते हुए कहा है कि अमेरिका की, “ दबावकारी रणनीति पर भारत को कड़ा रुख अपनाना चाहिए।”
विपक्षी दलों ने रविवार 21 सितंबर, को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अमेरिका की “सख्त रणनीति” के खिलाफ कड़ा रुख न अपनाने और इसके बजाय आत्मनिर्भरता की आवश्यकता के बारे में “अस्पष्ट उपदेश” देकर “पलायनवादी दृष्टिकोण” अपनाने का आरोप लगाया।
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