दुनियाभर में आज अंतरराष्ट्रीय प्रवासी दिवस मनाया जा रहा है। आज के ही दिन यानि 18 दिसंबर 1990 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इससे संबंधित प्रस्ताव एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में इसे स्वीकार किया था। यह सम्मेलन प्रवासी कामगारों और उनके परिवार के सदस्यों के अधिकार और सुरक्षा के लिए आयोजित किया गया था। आज भी गांवों से शहरों की ओर पलायन का सिलसिला कोई नया मसला नहीं है। गांवों में कृषि भूमि के लगातार कम होते जाने, आबादी बढ़ने और प्राकृतिक आपदाओं के चलते रोजी-रोटी की तलाश में ग्रामीणों को शहरों-कस्बों की ओर रुख करना पड़ा।
गांवों में बुनियादी सुविधाओं की कमी भी पलायन का एक दूसरा बड़ा कारण है। गांवों में रोजगार और शिक्षा के साथ-साथ बिजली, आवास, सड़क, संचार, स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाएं शहरों की तुलना में बेहद कम है। इन बुनियादी कमियों के साथ-साथ गांवों में भेदभावपूर्ण सामाजिक व्यवस्था के चलते शोषण और उत्पीड़न से तंग आकर भी बहुत से लोग शहरों का रुख कर लेते हैं। हमने खबर लहरिया में ऐसी कई स्टोरियाँ पब्लिश की है जो लोग बाहर पलायन करते हैं। पूरा-पूरा गाँव खाली हो जाता है। मतदान देने के लिए उत्साहित प्रवासी भारतीय ने सोशल मीडिया पर दिखाया हवाई यात्रा का टिकट, लेकिन टिकट हुआ रद्द
अंतरराष्ट्रीय प्रवासी दिवस में हमारी रिपोर्टर ने लोगों से बात की तो उन्होंने बताया ललितपुर जिले के गाँव मदनपुर के गोविन्द का कहना है कि हमारे गाँव में न मजदूरी है न बच्चों को पढ़ने के लिए अच्छी शिक्षा, जिससे हम अपने बच्चो को लेकर बाहर जाते हैं मज़बूरी में बाहर काम करने जाते हैं। बबलू का कहना है की हम इंदौर काम के लिए गये थे वहां ईट पाथने का काम करते हैं दो ढ़ाई सौ रूपये मिल जाते हैं तो खर्च चल जाता है। अजबरानी ने बताया कि बेटी ई शादी करनी है लेकिन दिक्कत खड़ी हो गई। आदमी है न ही पैसा है पैसे मांग-मांगकर बेटी की शादी कर हैं।
राजकिशोर जो चित्रकूट जिले के चंदई गाँव के निवासी हैं उनका कहना है कि न घर है न ही खेती इसलिए पलायन करते हैं। पलायन करते 8 साल हो गये मनरेगा में काम मिलता नहीं है जब मिलता है तो खंती खोदने का जो हो नहीं पाता। चंदई गाँव के ही रहने वाले शायमलाल का ने बताया कि यहाँ कोई काम नहीं है इसलिए बच्चों को पालने के लिए जाना पड़ता है मेरे तीन बेटे बहुओं बच्चों के साथ भट्टे में काम करते हैं। साल दो साल पर आते हैं।
ललितपुर जिले के कुम्हेडी गाँव की विनीता ने बताया 2011 में जॉब कार्ड बना लेकिन काम न के बराबर मिलता है इसलिए पिछले कई सालों से पलायन करते हैं।जोब्कार्दी दिखाते हुए सुखवती बताती हैं की घर में तीन बच्चे पढने वाले हैं लेकिन मनरेगा में मजदूरी नहीं मिलती।क्या करें बाहर जाना हमारी मजबूरी है।
ग्रामीणों का शहरों की ओर पलायन रोकने और उन्हें गांव में ही रोजगार मुहैया कराने के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकार की ओर से विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं। लेकिन काफी हद तक सफल नहीं हैं।