खबर लहरिया Blog International Day Against Drug Abuse: 26 जून को अंतर्राष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस, जानिए जमीनी सच्चाई

International Day Against Drug Abuse: 26 जून को अंतर्राष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस, जानिए जमीनी सच्चाई

गांव की महिलाएं रोज़ दिनभर शराबियों के झुंड से जूझ रही हैं। उनके डर से कोई लड़की छत पर नहीं जा सकती, कोई महिला हैंडपंप पर खुलेआम नहा नहीं सकती, लड़कियां स्कूल नहीं जा सकती। अब लोग उम्मीद तक छोड़ चुके हैं कि यहां से शराब ठेका कब हटेगा?

International Day Against Drug Abuse

अंतर्राष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस

लेखन – सुचित्रा, रिपोर्ट – नाज़नी 

26 जून को पूरी दुनिया में “नशा उन्मूलन दिवस” या कहें “अंतर्राष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस” हर साल मनाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों को नशे से छुटकारा दिलाना और जागरूक करना है। सरकार द्वारा नशे के खिलाफ जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाते हैं, लेकिन ज़मीनी सच्चाई इससे कोसों दूर है। उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले का भैसौंधा गांव इसका एक उदाहरण है, जहां महिलाएं सालों से शराब के ठेकों के खिलाफ आवाज़ उठा रही हैं लेकिन नतीजा यह हुआ कि एक ठेका हटाना तो दूर, अब गांव में तीन-तीन शराब के ठेके खुल चुके हैं।

बढ़ते शराब ठेकों की वजह महिलाओं से छेड़छाड़

गांव की महिलाएं रोज़ दिनभर शराबियों के झुंड से जूझ रही हैं। उनके डर से कोई लड़की छत पर नहीं जा सकती, कोई महिला हैंडपंप पर खुलेआम नहा नहीं सकती, लड़कियां स्कूल नहीं जा सकती। अब लोग उम्मीद तक छोड़ चुके हैं कि यहां से शराब ठेका कब हटेगा? लोग बेटियों की सुरक्षा के लिए परेशान हैं। वहीं सरकारी आंकड़ों में इसे कानून वैध बिक्री बता कर ठेके के लिए लाइसेंस जारी होता जा रहा है।

खबर लहिरया की 3 अप्रैल 2025 की रिपोर्ट में सामने आया कि महोबा के दलित बस्ती में ब्रजमोहन द्विवेदी ने शराब ठेका खोला जिसको लेकर महिलाओं ने हटाने की मांग की थी। सुगीरा गांव की रहने वाली चंदा ने कहा कि “ 50-60 लोग डीएम के पास गए थे कोई सुनवाई नहीं। पुलिस भी आई थी उनसे कहा तो वो हमें ही बोलने लगे कि ज्यादा करोगे तो आप पर और बच्चों पर मुकदमा दर्ज कर देंगे।”

शराब ठेके को हटाने की मांग

चित्रकूट जिले के भैसौंधा गांव के लोगों ने मार्च 2025 में गांव में देशी शराब के ठेके को हटाने की मांग की थी और इसके विरोध में प्रदर्शन किया, लेकिन इसके बावजूद नहीं ठेके नहीं हटाये गए नतीजा ये हुआ कि दो और ठेके खोल दिए गए बियर और अंग्रेजी मिलाकर कम्पोजिट ठेका खुला गया।

इटखरी गांव के बेनी माधव विश्वकर्मा ने कहा “शराब के नशे से पूरा समाज पीड़ित होता है। खास कर महिलाओं पर इसका असर ज्यादा होता है। इसकी वजह से वे मारपीट और घरेलू हिंसा का शिकार होती है।

भैसौंधा निवासी वंदना ने बताया अब तो पास में दारू का ठेका है, पहले तो हम एक ही को हटाने की ही मांग कर रहे थे लेकिन अब तीन-तीन शराब के ठेके हो गए हैं। पूरे दिन बाहर शराबियों का झुंड लगा रहता है। नशे में धुत शराबी गालियां बकते हैं।

नशे की वजह से बच्चों और युवाओं का भविष्य खतरे में

आराधना सिंह ने बताया कि शराब के नशे की वजह से आने वाले युवा लोगों का भविष्य खराब हो रहा है। गांव में दूसरों को शराब पीता देख वे भी इसको अपनाने लगते हैं और इसकी लत से बुरी तरह प्रभावित होते हैं। घर बाहर लोगों को गाली देते देख वह भी गाली देना सीख जाते हैं। शराब लेने भी उन्हें भेजा जाता है तो वे भी पीने लगते हैं।

महिलाओं की आवजाही पर रोक

शराबियों की वजह से लड़कियों को बाहर जाने की भी अनुमति नहीं दी जाती। छत पर भी शाम होते ही उनके मम्मी पापा जाने से मना कर देते हैं, क्योंकि शराबियों की नजरे छत पर ही टिक जाती है और कमेंट करना शुरू कर देते हैं। इसकी वजह से लड़ाई झगड़ा ना हो इसलिए छत पर नहीं जाते।

बुजुर्ग महिला शकुंतला बताती हैं अब जैसे किसी को शराब पीने की लत है वह घर में आएगा, मारपीट करेगा, पैसे मांगेगा, महिलाओं को परेशान करेगा और यदि घर पैसे नहीं है तो वह घर का अनाज बेच कर शराब पी लेगा जिससे घर में और भी लड़ाइयां बढ़ती हैं।

भसौंधा गांव के कंपोजिट ठेके के मैनेजर अश्वनी कुमार बताते हैं कि “18 साल से कम आयु वालों को शराब नहीं देते हैं। अभी कम्पोजिट दुकान है देसी शराब के लिए एक व्यक्ति पर पांच बोतल दे सकते हैं। अंग्रेजी का अभी हमें पहली बार ठेका मिला था जिसमें 1140 पेटी का कोटा था, हमें 1140 पेटी बेचनी होती है। हमें ठेका मिला है तो काम कर रहें हैं हम कर्मचारी हैं।”

ठेका मैनेजर ने बताया तो कि 18 साल से उपर वाले उम्र के बच्चों को ही शराब बेचते हैं लेकिन देखें तो शराब की दुकान पर छोटे-छोटे बच्चे शराब खरीद रहे होते हैं।

कहने को हर साल “नशा उन्मूलन दिवस” या कहें “अंतर्राष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस” मनाया जाता है लेकिन क्या सच में इस पर काम हो रहा है या फिर बस जागरूकता के नाम पर ये सिर्फ दिवस बन के रह गया है। आप ने देखा होगा सबसे ज्यादा भीड़ शराब के ठेकों पर मिलती है और शराब के लिए मारा मारी होती नज़र आती है। सरकार शराब के ठेके बंद नहीं करवाना चाहती क्योंकि सबसे ज्यादा सरकार को शराब की दुकान खुलने से है। शराब चुनाव में भी उतर आती है जब प्रचार करना हो तो लोगों से वोट लेने के लिए शराब का लालच ही दिया जाता है।

 

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