खबर लहरिया Blog रजनी ताई के सफल जीवन की प्रेरक कहानी

रजनी ताई के सफल जीवन की प्रेरक कहानी

इस दुनिया में हर एक व्यक्ति अच्छा जीवन जीने की चाह रखता है और उसके लिए कड़ी मेहनत भी करता है। सफल होने के अलग-अलग तरीके भी ढूढ़ता है। यह नहीं देखता कि वह काम वह कर पायेगा की नहीं, और जुट जाता है पूरी लगन और मेहनत के साथ। ताकि उसका व उसके परिवार का पेट भर सके। ऐसी ही एक कहानी इस लेख के माध्यम से आप सबके बीच साझा करेंगे जिसमें एक महिला ने अपनी कड़ी मेहनत से अपार सफलता पाई है।

                                                Photo by – Midjourney

महाराष्ट्र जिला वर्धा एक छोटा सा शहर है। जहां पर रजनी नाम की एक 35 वर्षीय महिला अपने दो छोटे बच्चों के साथ रहती है। जिन्हें लोग प्यार से “रजनी ताई” कहते हैं। रजनी के पति का देहांत 12 बरस पहले हो गया था। रजनी के सामने अब यह समस्या आ पड़ी है कि वह अपना परिवार कैसे चलाएगी? यूँ तो रजनी का मायका काफी धनवान है उनके पास किसी चीज़ की कमी नहीं है लेकिन, रजनी ने यह ठाना है कि वह अपने मायके से कोई मदद नहीं लेगी और वह अपनी परिस्थिति से खुद लड़ना चाहती हैं।

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आँखों में ठहर गई उम्मीद की आस

कहते हैं न कि जब कोई काम सच्चे मन से ठान लिया जाये तो रास्ता खुद ब खुद निकल जाता है। ऐसे ही हुआ रजनी के साथ भी। एक दिन रजनी के पड़ोसी ने रजनी से बताया कि पास में एक नालंदा एकेडमी नाम का कोचिंग सेंटर हैं जहाँ पर लगभग 200 स्टूडेंट पढ़ाई करते हैं। यह सारे बच्चे बाहर ही खाना खाते हैं ऐसे में रजनी वहां खाना बनाकर कमाई कर सकती है। फिर क्या था बिना देर किये रजनी ताई ने अपना काम झटपट शुरू कर दिया।

खाना बनाने में आई मुश्किलें

रजनी ताई का कहना है कि ” जब उन्होंने खाना बनाने की शुरूवात की तो बहुत मुश्किल हुआ क्योंकि उनके दो छोटे-छोटे बच्चे थे। जिन बच्चों ने टिफिन लगवाई थी उनको रूम पर खाना पहुंचाने भी जाना होता था। रजनी ताई के पास इतना समय नहीं होता था कि वह रूम-रूम जाकर टिफिन पहुंचाएं। आखिर में उन्होंने बच्चों से बात की। क्या वह खाना खाने उनके घर आ सकते हैं? बच्चों ने हाँ कर दी। शुरुआत में रजनी ताई लगभग 10 बच्चों का खाना बनाती थी और महीने भर का 1500 रूपये लेती हैं। धीरे-धीरे रजनी ताई का रोजगार बढ़ा और कुछ सालों बाद बच्चे भी बड़े हो गए और रजनी ताई का काम में हाथ बंटाने लगे। बेटा घर-घर टिफिन पहुँचाने जाने लगा और रजनी ताई का रोजगार बढ़ता चला गया। और फिर बदल गई रजनी ताई की जिंदगी।

वर्धा और उसके आस-पास का माहौल

वर्धा एक छोटा सा शहर जहाँ बाबासाहब अंबेडकर को मानने वाले लोग हैं और वहां का शिक्षा का स्तर भी काफी अच्छा है। वर्धा एक छोटा सा शहर तो है ही लेकिन यहां का माहौल बहुत ही शांत वातावरण का है इसलिए इसे शिक्षा का गढ़ भी कहा जाता है। वर्धा में अंबेडकर कॉलेज है, गरीब बच्चों के लिए हॉस्टल है वर्धा की जानी मानी वर्धा एकेडमी जहाँ गरीबों के बच्चों को मुफ्त में शिक्षा दी जाती है। रजनी ताई की तरह और कई महिलायें भी थी जो इन बच्चों के लिए खाना बनाती थी।

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रजनी ताई के साकार होते सपने और उनकी बदलती सोच

रजनी ताई चाहती हैं कि हर साल नालंदा में नए-नए बच्चे आए और अपने सपनों को पूरा करें। बच्चों के सपने और बच्चों से रजनी ताई को बहुत लगाव है। रजनी ताई चाहती हैं कि उनके बच्चे भी 12वीं के बाद नालंदा एकेडमी में पढ़ाई करें और वह यह सपना साकार करने के लिए कड़ी मेहनत करेंगी। रजनी ताई जैसी कई महिलायें जो अपने बच्चों का सपना साकार करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं। और आगे भी करती रहेंगी।

अगर आपके पास भी है महिलाओं से जुड़ी कड़ी मेहनत और सफलता की कहानी तो हमारे साथ जरूर साझा करें। हम उसे अपने प्लेटफॉर्म पर जगह देकर आपका उत्साहवर्धन करेंगे।

इस खबर की रिपोर्टिंग छत्तीसगढ़ से सोमा द्वारा की गयी है। 

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