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न्याय के घर में अन्याय

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यौन उत्पीड़न के कई मामले देश में सामने आते रहते हैं, जिनमें कई बार बड़े नाम भी उजागर हुए हैं , लेकिन हाल के दिनों में देश के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई का नाम उत्पीड़न में आया है। हालांकि उन्हें क्लीन चिट मिल चुकी है। इस क्लीन चिट पर  लेकिन जिस तेजी और जिस प्रक्रिया से उन्हें यह क्लीन चिट दी गई, वह जल्दबाजी में की गई है।

इस फैसले का विरोध हो रहा है। आपको बता दे कि ये मामला एक महिला के 22 जजों के घर एक पत्र आया। इस पत्र एक ऐसी महिला ने लिखा था जो साल 2014 से सुप्रीम कोर्ट में बतौर जूनियर कोर्ट असिस्टेंट करती थी. अक्टूबर 2016 से यह महिला न्यायधीश रंजन गोगोई की कोर्ट में कार्यरत थी लेकिन अक्टूबर 2018 में इन्हें जस्टिस गोगोई के निवास पर बने कार्यालय में काम करने को कहा गया। इस पत्र में शिकायतकर्ता ने बताया कि 10 और 11 अक्टूबर 2018 को उनका यौन उत्पीड़न हुआ। उनके विरोध करने पर मुख्य न्यायधीश गोगोई ने उनका कैरियर खबरा कर दिया। उनके बाद 19 अप्रैल को ये मामला सार्वजनिक हुआ और उसके साथ इसकी जांच प्रक्रिया भी।  इस मामले की सुनवाई के लिए एक विशेष पीठ का गठन हुआ, जिसमें आरोप होने के बावजूद भी न्यायधीश गोगोई पीठ का हिस्सा बन गए। यहीं से ये न्यायिक प्रक्रिया शंक में आ गई।

शिकायतकर्ता के अनुसार सुनवाई के दौरान उसकी कई मांगों को समिति ने यह कहते हुए मना किया कि यह कोई औपचारिक समिति नहीं है लेकिन जब समिति ने अपनी रिपोर्ट बनाई तो उसे यह कहते हुए सार्वजनिक नहीं होने दिया  कि आंतरिक समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जा सकती। साथ ही उन्हें उनके वकील को साथ लाने दिया और न सुनवाइयों की रिकॉडिंग ही की गई।

हालांकि अब इस केस में न्यायधीश रंजन गोगोई को क्लीन चिट मिल गई है। पर कई संगठन इस मामले में अपनाई गई प्रक्रिया का विरोध कर रहे हैं। जिसके चलते कई लोगों को जेल में बन्द भी किया।