ग्रामीण इलाकों से आनेवाली रजनी, पिंकी जैसी लाखों लड़कियां हमारे गांव के समाज में आज भी शिक्षा से कोसों दूर हैं। यहां लड़कियों के ज्यादा पढ़ने-लिखने को बेमतलब कहा जाता है। माना जाता है कि लड़कियों को तो बस ब्याह हो जाने भर तक की ही पढ़ाई करानी चाहिए।
यूपी के अवध के हरिहरपुर गांव की पूजा की पढ़ाई बारहवीं के बाद छूट गई। वह बताती हैं, “मैं इंटर तक ही पढ़ाई कर पाई। मां की मौत के बाद रोज़ स्कूल जाना नहीं हो पाता था। घर पर मेरे दो छोटे भाई और बहन थे। घर-परिवार में उनकी देख-रेख करने वाला कोई नहीं था और और मैं बड़ी भी थी। इसलिए मां के जाने के बाद उनकी सारी ज़िम्मेदारी मुझ पर आ गई। मेरे पिता भी कमाई के सिलसिले में बाहर रहते थे। घर पर सिर्फ मैं और मेरी अम्मा (दादी) थीं। दादी ज्यादातर बाहर के काम करतीं। जैसे गाय को चारा देना, खेत-खलिहान देखना। मैं घर के सारे काम और छोटे भाई-बहन को देखती थी। घर की इतनी ज़िम्मेदारियों के बीच पढ़ाई करने में बहुत मुश्किल होती थी। प्राइवेट पढ़ाई हो भी रही थी तो आर्थिक तंगी के कारण घरवालों ने वह भी छुड़वा दी।”
पूजा कॉलेज जाना चाहती थी लेकिन आर्थिक तंगी और घर की मजबूरियों के बीच उसकी पढ़ाई छुड़वा दी गई। हमने अक्सर ग्रामीण इलाकों के बारे में यह सुना है कि यहां कि लड़कियां पढ़ाई ‘छोड़’ देती हैं। इन लड़कियों के पढ़ाई छोड़ने या छुड़वाने की तह तक कोई नहीं जाता। आज हम अपने इस लेख में उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों से आनेवाली कुछ ऐसी ही लड़कियों की बात कर रहे हैं।
हाल ही में आई वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट बताती है कि जब भारत आज़ाद हुआ था तब सिर्फ 9% महिलाएं साक्षर थीं। महिला साक्षरता का यह आंकड़ा आज बढ़कर 77% हो गया है जबकि पुरुषों में ये आंकड़ा 84.7% है। द लाइव मिंट की रिपोर्ट के मुताबिक नैशनल सैंपल सर्वे से पता चलता है कि शहरी इलाकों में महिला साक्षरता का दर 84.11% जबकि ग्रामीण इलाकों में यह दर केवल 67.77% है। लेकिन ग्रामीण इलाकों की सच्चाई इन आंकड़ों से कोसों दूर है।
📢📢#NEWS: हाल ही में वर्ल्ड बैंक द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार जब भारत आज़ाद हुआ था तब सिर्फ 9% महिलाएं साक्षर थीं। महिला साक्षरता का यह आंकड़ा आज बढ़कर 77% हो गया है जबकि पुरुषों में ये आंकड़ा 84.7% है। (1/n)#FIIDailyEdit #WorldBank #FemaleLiteracy #Education pic.twitter.com/nWFjJbf54u
— फेमिनिज़म इन इंडिया (@FIIHindi) March 16, 2023
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यौन उत्पीड़न की एक घटना कैसे पूरे गांव को करती है प्रभावित
आज भी बड़ी संख्या में लड़कियां शिक्षा से दूर हैं। इसके पीछे कई कारण हैं कि आज भी हमारे परिवार और समाज में लड़कियों की शिक्षा को ज्यादा अहमियत नहीं दी जाती है। अगर हम अपने गांव की बात करें तो आज भी यहां लड़कियों की शादी कम उम्र में कर दी जाती है जिनसे उनकी पढ़ाई बंद हो जाती है। दूसरी सबड़े बड़ी वजह हमारे इलाके में सुरक्षा है। स्कूल जाते वक्त कई लड़कियां रोज़ाना उत्पीड़न का सामना करती हैं। रास्ते में बाइक या साइकिल से जाते समय लोग लड़कियों को गलत तरीके से छूते हुए निकल जाते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि परिवारवाले लड़कियों का ही स्कूल जाना ही बंद कर देते हैं। किसी भी लड़की के साथ स्कूल जाते समय यौन हिंसा होने पर उस लड़की की पढ़ाई तो बंद कर ही दी जाती है। साथ ही उस घर की अन्य लड़कियों की शिक्षा भी प्रभावित हो जाती है। ऐसी घटनाओं की चपेट में सिर्फ वह घर नहीं बल्कि आस-पास के गांव भी आ जाते हैं।
रजनी बताती हैं, “शिक्षा लड़कियों के लिए बहुत जरूरी होती है पर घरवाले नही समझते। उन्हें बस घर के लड़कों की शिक्षा ही जरूरी लगती है। मेरा बड़ा भाई आज भी पढ़ रहा है। उसकी शादी भी नहीं हुई है और घरवालों को जल्दी भी नहीं है जबकि वह मुझसे चार साल बड़ा है।”
भीखमपुर गांव की घटना में कुछ ऐसा ही देखने को मिला। कॉलेज से घर आते समय एक लड़की के साथ यौन उत्पीड़न की घटना हुई। गांव में अक्सर कॉलेज गांव से बाहर या गांव से काफी दूरी पर होते हैं। इस घटना के बाद उस लड़की की पढ़ाई बीच में ही बंद करवा दी गई। इस घटना के कारण सिर्फ उस लड़की की पढ़ाई नही बल्कि उसकी छोटी बहन की भी पढ़ाई बंद करा दी गई। इसका असर सिर्फ उस लड़की के घर तक सीमित नहीं रहा बल्कि गांव की दूसरी लड़कियों की शिक्षा पर भी पड़ा। जिन लड़कियों को उस साल कॉलेज जाना था उन पर इसका प्रभाव पड़ने लगा। घरवाले उन्हें कॉलेज भेजने से मना करने लगे।
गांव में कुछ लड़कियों ने अपनी कॉलेज की पढ़ाई प्राइवेट से शुरू की जिसमें उन्हें सिर्फ परीक्षा देने जाना पड़ता था। इसलिए कई लड़कियां इस डर से कि उनकी पढ़ाई न छूट जाए ऐसी घटनाओं का ज़िक्र अपने घर में करती ही नहीं हैं। वे जानती हैं कि घर के लोगों खासकर पुरुषों को पता चलने पर उनकी पढ़ाई बंद करवा दी जाएगी। लेकिन कई बार लड़कियों के बिना बताए ही घर के लोगों को पड़ोसियों के जंरिए उनके साथ हुई घटना का पता चल जाता है। फिर घरवाले उसकी पढ़ाई बंद करके उसकी शादी करवा देते हैं।
अफ़वाह फैली और पढ़ाई बंद
फेमिनिज़म इन इंडिया से बात करते हुए रजनी बताती हैं कि उनकी पढ़ाई गांव में उनके बारे में फैली एक अफवाह के चलते छुड़वा दी गई। गांव में यह बात फैलाई गई की कि रजनी का किसी के साथ चक्कर चल रहा है। उनके ही गांव के किसी लड़के ने यह बात फैलाई थी। घरवालों तक यह बात पहुंचते ही उन्होंने उनका घर से बाहर निकलना ही बंद कर दिया। वह कहती हैं, जब घर से बाहर ही नही निकल सकती तो स्कूल कैसे जाती। तो ऐसे मेरी पढ़ाई ही छुट गई। किसी तरह मैंने आठवीं कक्षा पूरी करने की इजाज़त मांगी तो उन्होंने कहा स्कूल जाने की कोई ज़रूरत नहीं है। इस तरह मेरी पढ़ाई आठवीं कक्षा के बीच में ही छुड़वा दी गई। रजनी अपनी पढ़ाई आठवीं कक्षा तक ही पूरी कर सकी।
हाल ही में आई वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट बताती है कि जब भारत आज़ाद हुआ था तब सिर्फ 9% महिलाएं साक्षर थीं। महिला साक्षरता का यह आंकड़ा आज बढ़कर 77% हो गया है जबकि पुरुषों में ये आंकड़ा 84.7% है। द लाइव मिंट की रिपोर्ट के मुताबिक नैशनल सैंपल सर्वे से पता चलता है कि शहरी इलाकों में महिला साक्षरता का दर 84.11% जबकि ग्रामीण इलाकों में यह दर केवल 67.77% है। लेकिन ग्रामीण इलाकों की सच्चाई इन आंकड़ों से कोसों दूर है।
रजनी के ही गांव की पिंकी की हाल ही में शादी हुई है। उनसे उनकी पढ़ाई छोड़ने का कारण पूछने पर वह कहती हैं, “मैंने ग्रेजुएशन किया है। ग्रैजुएशन के बाद घरवालों ने आगे की पढ़ाई बंद कर दी और मेरी शादी करवा दी। मैं और आगे पढ़ना चाहती थी लेकिन घरवालों को मेरी शादी की इतनी जल्दी थी कि ग्रैजुएशन के दूसरे साल में ही मेरी शादी तय कर दी। मैं रेगुलर कॉलेज जाती थी। मैंने अपना लास्ट इयर का इग्जाम अपने ससुराल से दिया था। घरवालों ने कहा कि तुम्हारे ससुरालवाले आगे तुम्हे पढ़ाएंगे लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। गांव में तो ऐसा अक्सर लड़कियों के साथ होता रहा है और लगता है आगे भी होता रहेगा।” वह आगे कहती हैं, “शिक्षा लड़कियों के लिए बहुत जरूरी होती है पर घरवाले नही समझते। उन्हें बस घर के लड़कों की शिक्षा ही जरूरी लगती है। मेरा बड़ा भाई आज भी पढ़ रहा है। उसकी शादी भी नहीं हुई है और घरवालों को जल्दी भी नहीं है जबकि वह मुझसे चार साल बड़ा है।”
ग्रामीण इलाकों से आनेवाली रजनी, पिंकी जैसी लाखों लड़कियां हमारे गांव के समाज में आज भी शिक्षा से कोसों दूर हैं। यहां लड़कियों के ज्यादा पढ़ने-लिखने को बेमतलब कहा जाता है। माना जाता है कि लड़कियों को तो बस ब्याह हो जाने भर तक की ही पढ़ाई करानी चाहिए।
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