आज 26 जनवरी 2021 को भारतीय संविधान को बने हुए 72 साल हो गए। जिसे गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह वह दिन है जिस दिन स्वतंत्र भारत ने अपना खुद का संविधान पाया था। वह दिन जब यह सुनिश्चित किया गया था कि हर एक व्यक्ति के मौलिक अधिकारों की रक्षा संविधान द्वारा की जाएगी। यह वह दिन था जब आज़ाद भारत के हर एक व्यक्ति को अपने अधिकारों को मांगने, लड़ने और सुरक्षित रखने का अधिकार मिला था।
लेकिन आपको संविधान की बधाई देते हुए मेरे सामने कई सवाल आकर खड़े हो गए। साल 2020 एक ऐसा दौर रहा, जिस समय सबसे ज़्यादा मौलिक अधिकारों का हनन हुआ। इसमें तख़्ती पर बैठे नेता से लेकर सत्ता में बैठी सरकार द्वारा लोगों के अधिकारों को उनके अनुसार तोड़ा–मरोड़ा गया। प्रेस को उनके कार्य करने से रोका गया। झूठे इल्ज़ामों में लोगों की आवाज़ को जेल की चार दीवारी के पीछे दबा दिया गया। इन सबके बाद बधाई कहने का मन नहीं करता। बल्कि संविधान और उसके मौलिक अधिकारों पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो जाता है। हम संविधान, मौलिक अधिकार और उसके इतिहास के बारे में जानें। उससे पहले यह जानना ज़रूरी है कि आखिर संविधान होता क्या है?
भारतीय संविधान क्या है?
भारतीय संविधान प्रशासनिक प्रावधानों का एक दस्तावेज़ है। इस दस्तावेज़ में लिखा हर एक शब्द सरकार की मूल संरचना को निर्धारित करता है। हर सरकार संविधान के अनुसार काम करती है। सरकार के अधिकार, उसकी गतिविधि, कार्यशैली, बनावट, उसे क्या करना है, क्या नहीं करना, यह सब कुछ संविधान में परिभाषित किया गया है।
संक्षेप में कहा जाए तो भारतीय संविधान एक नियमों से भरी किताब है। ये नियम सरकार के मुख्य अंग – विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की बनावट और कार्यप्रणाली को निर्धारित करते हैं।
भारत में संवैधानिक विकास का इतिहास
भारत में संवैधानिक विकास की शुरुआत 1600 ईसवीं में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना के साथ हुई थी। ईस्ट इंडिया कंपनी अंग्रेज़ व्यापारियों का समूह था। ब्रिटिश सरकार ने भारत के साथ व्यापार का ढोंग करके देश पर अपना एकाधिकार जमा लिया। यूरोपीय कंपनियों ने व्यापार की सुरक्षा करने के नाम पर भारत में किलेबंदी करना और सेना रखना शुरू कर दिया। धीरे–धीरे ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने सैनिक ताकत के दम पर भारतीय रियासतों के राजनीतिक और आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने लगी।
1754 की प्लासी की लड़ाई के बाद वह भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक शक्ति बन गई। 1764 की बक्सर की लड़ाई और 1765 की इलाहाबाद की संधि के बाद कंपनी ने बंगाल, बिहार और ओडिशा में भी अपना अधिकार जमा लिया। भारत अब अंदर से कमज़ोर हो चुका था। जिसका फायदा उठाते हुए ब्रिटिशों ने 1947 तक भारत पर राज़ किया। लेकिन उनके शासन काल के दौरान भारत में कई लोगों में आज़ादी की चिंगारी जल रही थी, जिसकी ज्वाला ने अंग्रेज़ी सरकार को हरा दिया। जिसके बाद 15 अगस्त 1947 को भारत को पूर्ण रूप से आज़ादी मिली। कुछ ही सालों बाद, 26 जनवरी 1950 को भारतीय गणतंत्र के संविधान का भी निर्माण हो गया।
भारतीय संविधान के छः चरण
भारतीय संविधान के विकास को छः चरणों मे विभाजित किया गया है।
▪️ पहला चरण : 1773 से 1857 तक
▪️ दूसरा चरण : 1858 से 1990 तक
▪️ तीसरा चरण : 1910 से 1939 तक
▪️ चैथा चरण : 1940 से 1947 तक
▪️ पांचवा चरण: 1947 से 1950 तक
▪️ छठा चरण : 1950 से आज तक
भारतीय संविधान का इतिहास
रेगुलेटिंग एक्ट– 1773
▪️अंग्रेज़ भारत में रेगुलेटिंग एक्ट लेकर आए। इसका अर्थ है कंपनी की गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए नियम बनाकर हस्तक्षेप करना। इसके जरिए ही भारत के संविधान की नींव रखी गयी।
▪️ इसके अंतर्गत बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के लिए एक परिषद की स्थापना की गयी। परिषद में चार सदस्य और एक गवर्नर जनरल था।
▪️वारेन हेस्टिंग्स को सबसे पहला गवर्नर जनरल बनाया गया। जिसके पास बंगाल के फोर्ट विलियम के सैनिक और असैनिक प्रशासन के अधिकार थे।
▪️1774 में कलकत्ता में सुप्रीम कोर्ट के स्थापना की गयी। सर अज़ीला को इसमें पहले मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। इसका कार्य क्षेत्र बंगाल, बिहार और ओडिशा तक था।
▪️कंपनी के कर्मचारी निजी व्यापार नहीं कर सकते थे।
▪️वे उपहार भी नहीं ले सकते थे।
▪️कोर्ट ऑफ डायरेक्टर का कार्यकाल 1 साल से बढ़ाकर 4 साल तक कर दिया गया था।
संशोधित अधिनियम – 1781
▪️संशोधन अधिनियम में अधिकारियों के शासकीय कार्यों के मामलों को सर्वोच्च अदालत के क्षेत्र से बाहर कर दिया गया।
▪️साथ ही सर्वोच्च अदालत के कार्य क्षेत्र को भी साफ़ कर दिया गया।
▪️जबकि रेगुलेटिंग एक्ट के अनुसार यह तय किया गया था कि कंपनी के अधिकारी के शासकीय कार्यों के मामले नए–नए बने सर्वोच्च न्यायालय में जाएंगे।
पिट इंडिया एक्ट – 1784
▪️ यह अधिनियम ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विलियम पिट जूनियर द्वारा लाया गया था।
▪️रेगुलेटिंग एक्ट की कमियों को दूर करने के लिए इसे पारित किया गया।
▪️ ईस्ट इंडिया कंपनी अपनी स्वतंत्रता नहीं छोड़ना चाहती थी। इसलिए उसने पिट एक्ट के द्वारा कंपनी के मामलों पर ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण को बढ़ाया।
▪️ एक चांसलर, राज्य सचिव व चार अन्य सदस्य प्रतिनिधि को जानबूझकर ब्रिटिश सरकार में डाला गया।
▪️ गुप्त समिति बनायी गयी। साथ ही मद्रास और बम्बई प्रेसिडेंसियों को भी गवर्नर जनरल और उसके परिषद के अधीन कर दिया गया।
1786 का अधिनियम एक्ट
▪️ विलियम पिट जूनियर ने लार्ड कॉर्नवॉलिस को गवर्नर जनरल नियुक्त किया था।
▪️ लार्ड कॉर्नवॉलिस ने ज़िद्द की कि वह गवर्नर जनरल का पद तभी संभालेगा, जब उसे मुख्य सेनापति भी बनाया जाएगा।
▪️ 1786 के अधिनियम के तहत यह प्रावधान जोड़ा गया कि लार्ड कॉर्नवॉलिस विशेष परिस्थितियों में अपनी कॉउन्सिल को रद्द कर सकता है।
चार्टर एक्ट 1793
▪️ भारत के साथ व्यापार के कंपनी के अधिकार को 20 सालों के लिए बढ़ा दिया गया।
▪️ मद्रास और बंबई प्रेसीडेंसी के गवर्नर को अपने परिषदों के निर्णय को खत्म करने का अधिकार दिया गया।
चार्टर एक्ट – 1813
▪️इस एक्ट के द्वारा कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार को खत्म कर दिया गया।
▪️चीन के साथ चाय के व्यापार का एकाधिकार अब भी कम्पनी के पास था।
▪️ईसाई धर्म के प्रचारकों को भारतीय क्षेत्र में बसने की इज़ाज़त दी गयी।
▪️कम्पनी का भारतीय प्रदेशों और राजस्व पर 20 वर्षों तक का नियंत्रण स्वीकार किया गया।
चार्टर एक्ट -1833
▪️दोबारा से 20 साल के लिए कम्पनी का भारतीय प्रदेशों और राजस्व पर नियंत्रण स्वीकार किया गया।
▪️ कम्पनी के चीन के साथ चाय व्यापार के एकाधिकार को खत्म कर दिया गया।
▪️बंगाल के गवर्नर जनरल को पूरे भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया।
▪️अब तक गवर्नल जनरल के कार्यकारिणी में तीन सदस्य होते थे। अब चौथे सदस्य के रूप में लॉर्ड मकौले को शामिल कर लिया गया।
▪️दास प्रथा को ख़त्म करने का प्रावधान इसी चार्टर एक्ट में किया गया।
चार्टर एक्ट – 1853
▪️इस एक्ट के द्वारा शासकीय सेवा के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं का प्रावधान किया गया।
भारतीय शासन अधिनियम – 1858
▪️ इस अधिनियम के द्वारा कंपनी का शासन समाप्त कर दिया गया और ‘भारत को शासन सम्राट के नाम से किया जाने लगा।‘
▪️ भारत के गर्वनर जनरल को अब वायसराय कहा जाने लगा। वायसराय का अर्थ है जो सम्राट के प्रतिनिधि के रूप में भारत का शासन चलाता था।
▪️ लार्ड कैनिंग को पहला वायसराय बनाया गया।
▪️15 सदस्यों का एक भारत परिषद बनाया गया। यह परिषद भारत सचिव को उसके कार्य में मदद करती थी।
▪️ नियंत्रण बोर्ड और निदेशक मंडल को खत्म कर दिया गया और इन दोनों का काम भारत सचिव को दे दिया गया। भारत सचिव ब्रिटिश मंत्रिमंडल का एक सदस्य होता था।
भारतीय परिषद अधिनियम – 1861
▪️ इस अधिनियम के ज़रिए गवर्नर जनरल को अपनी परिषद में भारतीय सदस्यों को चयनित करने का अधिकार दिया गया।
▪️ लेकिन यह सदस्य ना तो बजट पर बहस कर सकते थे और ना ही सवाल कर सकते थे।
▪️लेकिन अधिनियम के ज़रिए ब्रिटिश सरकार भारत सचिव का साथ या राय लेकर किसी भी एक्ट को रद्द कर सकती थी।
भारतीय परिषद् अधिनियम – 1892
▪️इस अधिनियम के जरिये पहली बार निर्वाचन प्रणाली को लाया गया।
▪️अब राज्यों के विधान मंडल के सदस्य केन्द्रीय विधान मंडल के 5 सदस्यों का निर्वाचन कर सकते थे।
▪️राज्यों के विधान मंडल के सदस्य केन्द्रीय बजट पर बहस भी कर सकते थे। हांलाकि अब भी उनके पास बजट पर मत देने का अधिकार नहीं था।
भारतीय परिषद् अधिनियम – 1909
▪️इस अधिनियम को मार्ले–मिन्टो सुधार भी कहते हैं।
▪️भारत सचिव मार्ले और वायसराय मिन्टो के नाम से ही यह अधिनियम जाना गया।
▪️ इस अधिनियम के ज़रिए केन्द्रीय विधान मंडल के सदस्यों की संख्या 16 से 60 तक बढ़ाई गयी।
▪️पहली बार केन्द्रीय विधान परिषद में निर्वाचित सदस्यों के निर्वाचन के लिए साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का रूप आया।
▪️ विधान परिषद् के सदस्यों को बहुत सारे हक मिले — अब वे बजट पर नया प्रस्ताव रख सकते थे, पूरक प्रश्न पूछ सकते थे।
▪️एस.पी. सिन्हा पहले भारतीय सदस्य थे जिनको कार्यकारिणी परिषद में जगह मिली थी।
▪️ साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली 1909 को भारतीय परिषद अधिनियम की सबसे बुरी बात कहा जाता है। इस अधिनियम के द्वारा मुस्लिमों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों की व्यवस्था की गई।
भारत सरकार अधिनियम – 1919
▪️इस अधिनियम को मौन्टेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार के नाम से भी जाना जाता है।
▪️इसी अधिनियम के माध्यम से केंद्र में द्विसदनात्मक व्यवस्था का निर्माण हुआ। जो आज लोक सभा और राज्य सभा के रूप में है।
▪️उस समय लोक सभा को केन्द्रीय विधान सभा और राज्य सभा को राज्य परिषद करके संबोधित किया जाता था।
▪️केन्द्रीय विधान सभा में 140 सदस्य थे जिसमें 57 निर्वाचित सदस्य थे।
▪️राज्य परिषद् में 60 सदस्य थे जिसमें 33 निर्वाचित थे।
▪️ प्रांतीय बजट को केन्द्रीय बजट से अलग इसी अधिनियम के ज़रिए किया गया।
भारत सरकार अधिनियम – 1935
▪️तीन गोलमेज़ सम्मेलनों के बाद आए इस अधिनियम में 321 अनुच्छेद थे। यह अधिनियम सबसे अधिक विस्तृत था।
▪️इसके द्वारा भारत परिषद को समाप्त कर दिया गया। ▪️प्रांतीय और केंद्रीय विधानमंडलों में सदस्यों की संख्या में बढ़ोतरी की गयी।
▪️मताधिकार का विस्तार किया गया।
▪️बर्मा राज्य को भारत से अलग कर दिया गया।
▪️सिंध प्रांत को बम्बई जिसे आज मुंबई कहा जाता है, उससे अलग कर दिया गया।
▪️भारत परिषद को खत्म किया गया।
▪️एक संघीय व्यवस्था और रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना की गई।
संविधान सभा – 1946
कैबिनेट मिशन योजना 1946 के अंतर्गत एक संविधान निर्मात्री सभा के गठन का प्रावधान था। जिसके बाद संविधान सभा का गठन किया गया। संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों के सदनों के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने जाने वाले थे और यह चुनाव 9 जुलाई, 1946 को हुआ।
संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई। पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ भीमराव अम्बेडकर, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे। संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए 13 समितियों की स्थापना की गयी थी, जिनका गठन संविधान पूरा होने के बाद किया गया था। बाद में यही संविधान सभा दो हिस्सों में बंट गयी, जब पाकिस्तान अलग राष्ट्र बन गया। भारतीय संविधान सभा और पाकिस्तान की संविधान सभा।
भारत में संविधान सभा के गठन और दिशानिर्देश के लिए ब्रिटेन ने 3 मंत्रियों को भारत भेजा। जिनके नाम स्टैफोर्ड क्रिप्स, पैथिक लौरेंस और ए.वी. एलेग्जेंडर है। इन्हीं मंत्रियों के दल को कैबिनेट मिशन के नाम से जाना जाता है।
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947
ब्रिटिश संसद में 4 जुलाई 1947 को एक विधेयक पेश किया गया। यह विधेयक भारतीय स्वतंत्रता अधिनयम के रूप में 18 जुलाई, 1947 को पारित हुआ। इसमें प्रमुख बातें शामिल थीं।
▪️15 अगस्त 1947 को भारत तथा पाकिस्तान की स्थापना की जाएगी।
▪️नया संविधान बनने तक 1935 अधिनियम के तहत ही सरकार अपना काम करेगी।
▪️ब्रिटिश क्राउन का भारतीय रियासितों पर प्रभुत्व (शासन) खत्म हो जाएगा।
▪️ भारत सचिव का पद ख़त्म कर दिया जायेगा।
15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्रता अधिनियम लागू होते ही भारत आजाद देश हो गया। वहीं दूसरी तरफ़, मुस्लिम लीग ने लियाकत अली को प्रधानमंत्री और जिन्ना को गवर्नर जनरल बनाया। इस तरफ, भारत में कांग्रेस ने जवाहरलाल नेहरु को प्रधानमंत्री और माउंटबेटन को गवर्नर जनरल बनाया।
– विधान सभा में 389 सदस्य थे, जिसमें शरुआती विवरण के अनुसार– प्रांत के 292 प्रतिनिधि, देशी रियासतों के 93 प्रतिनिधि, मुख्य आयुक्त क्षेत्रों के 3 प्रतिनिधि तथा बलूचिस्तान का 1 प्रतिनिधि शामिल था। बाद में मुस्लिम लीग की संख्या कम होने के कारण 299 प्रतिनिधि रह गए थे।
जनवरी 1948
▪️भारतीय संविधान का पहला प्रारूप विचार–विमर्श के लिए प्रस्तुत किया गया था।
▪️4 नवंबर 1948 : 32 दिनों तक बातचीत जारी रही। इसके दौरान, 7635 संशोधन प्रस्तावित किए गए थे और उनमें से 2473 पर विस्तार से चर्चा की गई थी। संविधान निर्माण की प्रक्रिया में कुल 2 वर्ष, 11 महीने और 18 दिन लगे थे।
▪️24 जनवरी 1950: संविधान सभा के 284 सदस्यों द्वारा भारत के संविधान पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिनमें 15 महिलाएं भी शामिल थीं। इसी दिन भारत का संविधान लागू हुआ था।
भारतीय संविधान में किया गया इन देशों के विचारों को शामिल
▪️अमेरिका का संविधान : संघात्मक शासन प्रणाली, मौलिक अधिकारों की सूची, न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और उपराष्ट्रपति का पद।
▪️आयरलैंड का संविधान: राज्य के नीति निर्देशक तत्व, राष्ट्रपति निर्वाचन की पद्धति और राज्य सभा में कुछ सदस्यों का चयन।
▪️ऑस्ट्रेलिया का संविधान: समवर्ती सूची तथा व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता।
▪️कनाडा का संविधान : एक अर्ध–संघात्मक सरकार का स्वरूप, अवशिष्ट शक्तियों का सिद्धांत।
▪️जर्मनी का संविधान : आपातकाल की अवधारणा और मूल अधिकारों का निलम्बन
▪️जापान का संविधान : क़ानून द्वारा स्थापित शब्दावली
▪️दक्षिण अफ्रीका का संविधान: संविधान संशोधन की प्रक्रिया।
▪️फ्रांस का संविधान: स्वतंत्रता, समानता तथा बंधुत्व का सिद्धांत और गणतंत्रात्मक शासन व्यवस्था।
▪️ब्रिटिश संविधान: सर्वाधिक मत के आधार पर चुनाव में जीत का फैसला, सरकार का संसदीय स्वरूप, क़ानून निर्माण की विधि, संसद की प्रक्रिया, विधायिका में अध्यक्ष का पद और उसकी भूमिका।
▪️सोवियत संघ का संविधान :मूल कर्तव्य, पंचवर्षीय योजनाओं की अवधारणा।
संघ या महासंघ: अम्बेडकर की अवधारणा
डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने साफ़ किया कि भारत एक संघ है और किसी भी राज्य को संघ से अलग होने का अधिकार नहीं है। संविधान के पहले अनुच्छेद के अनुसार, “भारत” “राज्यों का संघ है”। जब 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ था, तब एक तर्क प्रस्तुत हुआ था कि क्या भारत एक संघ है या एक महासंघ। डॉ भीमराव अंबेडकर ने प्रारूप तैयार करने के चरण में, भारत को मजबूत एकतावादी बनाने के लिए महासंघ कहा था। ‘सहयोगी संघवाद’ शब्द जल्द ही लोकप्रिय हो गया था, जिसमें राज्यों और केंद्रों की दोहरी राजनीति के बारे में बात की गई थी।
भारत के संविधान की प्रस्तावना है कि भारत एक सर्वश्रेष्ठ समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य है। “समाजवादी” शब्द संविधान के 42वें संशोधन अधिनियम 1976 के माध्यम से, 1976 के बाद शामिल किया गया था।
सबसे लंबा और विस्तृत संविधान
भारत के मूल संविधान को हिंदी और अंग्रेजी में प्रेम बिहारी नारायण रायजादा द्वारा लिखा गया था। संविधान के प्रत्येक पन्ने को मुश्किल लेखनी और इटैलिक धारा प्रवाह में लिखा गया था। पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन के कलाकारों ने हर पन्ने के प्रस्तुतीकरण पर काम किया था।
इसकी अंग्रेजी और हिंदी की मूल प्रतियाँ भारतीय संसद पुस्तकालय में, हीलियम से डिजाइन किए गए विशेष पात्र में सुरक्षित करके रखी गयी हैं।
भारत का संविधान दुनिया का सबसे लंबा और सबसे विस्तृत संविधान है। इसमें 25 भाग, 448 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियाँ हैं तथा मूल संविधान में 395 अनुच्छेद और 9 अनुसूचियाँ शामिल हैं।
भारत के संविधान को संस्कृति, धर्म और भूगोलिक के नज़रिए से सबसे अच्छा लिखित संविधान माना जाता है। जानकारी के अनुसार इसमें आज तक सिर्फ 101 संशोधन हुए हैं, जो संविधान सभा द्वारा लिखित अपने विचारों की खुली प्रकृति को दिखाते हैं।
संविधान सभा से जुड़े कुछ महत्त्वपूर्ण कालक्रम
माउंटबेटन योजना वेवेल के स्थान पर माउन्टबेटन भारत के नए वायसराय के रूप में चुने गए। मुस्लिम लीग अलग देश चाहता था। जिसके बाद माउन्टबेटन, गाँधी जी और अन्य लोगों की मीटिंग हुई। भारतीय समस्या को देखते हुए माउन्टबेटन ने 3 जून की योजना घोषित की। इस योजना में प्रावधान था कि भारत के दो टुकड़े होंगे।
पहला टुकड़ा भारत और दूसरा टुकड़ा पाकिस्तान होगा। पंजाब और बंगाल के विभाजन के लिए जनमत संग्रह कराया जायेगा और जो रियासत है वे अपने इच्छा के अनुसार भारत या पाकिस्तान में शामिल हो जाएँ। भारत और पाकिस्तान को राष्ट्रमंडल की सदस्यता के त्याग का अधिकार होगा। यह योजना कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने स्वीकार कर ली। फिर भारतीय स्वंत्रता अधिनियम पारित हुआ।
संविधान सभा के प्रमुख सदस्य
कांग्रेसी सदस्य : पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ राजेंद्र प्रसाद, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, आचार्य जे.बी. कृपलानी, पंडित गोविंद बल्लभ पंत, राजर्षि पुरोषोत्तम दास टण्डन, बालगोविंद खेर, के.एम. मुंशी, टी.टी. कृष्णामाचारी।
गैर कांग्रेसी सदस्य : डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी, एन. गोपालास्वामी आयंगर, पंडित हृदयनाथ कुंजरू, सर अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर, टेकचंद बख्शी, प्रो. के.टी. शाह, डॉ. भीमराव अंबेडकर और डॉ. जयकर।
महिला सदस्य : सरोजिनी नायडू और श्रीमती हंसा मेहता।
सदस्य अस्वीकार करने वाले व्यक्ति – जयप्रकाश नारायण और तेजबहादुर सप्रू।
संविधान सभा की प्रमुख समितियाँ
समिति अध्यक्ष
▪️सर्वोच्च न्यायालय समिति एस. वारदाचारियार
▪️सदन समिति पट्टाभि सीतारमैया
▪️संचालन समिति डॉ. राजेंद्र प्रसाद
▪️संघ संविधान समिति पं जवाहर लाल नेहरू
▪️संघ शक्ति समिति पं जवाहर लाल नेहरू
▪️राज्य समिति पं जवाहर लाल नेहरू
▪️मूल अधिकार उपसमिति जे. बी. कृपलानी
▪️प्रारूप समिति डॉ. भीमराव अम्बेडकर
▪️प्रांतीय संविधान समिति सरदार वल्लभ भाई पटेल
▪️परामर्श समिति सरदार वल्लभ भाई पटेल
▪️नियम समिति डॉ. राजेंद्र प्रसाद
▪️अल्पसंख्यक उपसमिति एच. सी. मुखर्जी
कालक्रम
▪️11 दिसम्बर, 1946 – डॉ. राजेन्द्र प्रसाद स्थायी अध्यक्ष निर्वाचित
▪️13 दिसम्बर, 1946 – जवाहर लाल नेहरु द्वारा उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत
▪️22 जनवरी, 1947 – संविधान सभा द्वारा उद्देश्य प्रस्ताव स्वीकृत
▪️22 जुलाई, 1947 – राष्ट्रीय ध्वज अपनाया गया
▪️24 जनवरी, 1950 – राष्ट्रगान को अपनाया गया
▪️26 नवम्बर, 1947 – संविधान सभा द्वारा संविधान को अंगीकृत किया गया।
▪️29 अगस्त, 1947 – प्रारूप समिति का गठन, डॉ.बी.आर.अम्बेडकर प्रारूप समिति के अध्यक्ष निर्वाचित
▪️9 दिसम्बर, 1946 – संविधान सभा की पहली बैठक, सच्चिदानंद सिन्हा को
भारतीय नागरिकों के मूल अधिकार
▪️समता या समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18)
▪️स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22)
▪️ शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24)
▪️धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28)
▪️संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30)
▪️संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद 32)
इस आर्टिकल के ज़रिए मैंने आपको संविधान बनने की सोच और संविधान के बनने तक के इतिहास के बारे में रूबरू करवाया है। संविधान को हर साल मनाने के साथ–साथ उसे गहराई से जानना, उसकी महत्वता को समझने के लिए बेहद ज़रूरी है। आशा है, आपके लिए यह आर्टिकल जानकारी से भरपूर रहा होगा।