उत्तर प्रदेश के कानपुर से शुरू हुए ‘आई लव मोहम्मद’ विवाद ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, तेलंगाना और महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में मुस्लिम समुदाय के विरोध प्रदर्शनों और जुलूसों को जन्म दिया है।
इन दिनों “आई लव मोहम्मद” की खबर सोशल मीडिया और मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर तेजी से वायरल हो रही है। इस “आई लव मोहम्मद” को कई लोग समझ नहीं पा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के कानपुर से शुरू हुए ‘आई लव मोहम्मद’ विवाद ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, तेलंगाना और महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में मुस्लिम समुदाय के विरोध प्रदर्शनों और जुलूसों को जन्म दिया है। उन्नाव, बरेली, कौशांबी, लखनऊ, महाराजगंज, काशीपुर और हैदराबाद जैसे शहरों में रैलियाँ और सड़कों पर प्रदर्शन हुए हैं, जिनमें से कुछ जगहों पर पुलिस के साथ झड़प का मामला भी सामने आया है।
यह विवाद कैसे और कहां से हुआ शुरू?
यह विवाद 4 सितंबर 2025 को बारावफात के जुलूस से शुरू हुआ था, जब कानपुर के रावतपुर में बिना अनुमति के एक जुलूस निकाला गया। इसी दौरान सड़क किनारे ‘आई लव मोहम्मद’ लिखा एक पोस्टर लगाया गया। दूसरे समुदाय के लोगों ने इसे ‘नई परंपरा’ बताकर विरोध किया। पुलिस ने अनुमति न होने के कारण पोस्टर हटवा दिए, जिसके बाद मुस्लिम युवकों ने कुछ पोस्टर फाड़ दिए। पुलिस ने इस पर कार्रवाई करते हुए मुकदमा दर्ज कर लिया। शुरुआत में मामला शांत था लेकिन राजनेताओं के बयानों ने इसे हवा दे दी, जिससे लोगों में गुस्सा भड़क उठा।
बीबीसी के रिपोर्टिंग अनुसार, कानपुर के डीसीपी वेस्ट दिनेश त्रिपाठी ने एक बयान में कहा, “थानाक्षेत्र रावतपुर में बारावफ़ात का परंपरागत जुलूस निकलना था। मोहल्ले के लोगों ने परंपरागत स्थान से अलग एक टेंट और आई लव मोहम्मद का बैनर लगा दिया। एक पक्ष ने इसका विरोध किया। बाद में दोनों पक्षों में आपसी सहमति से बैनर को परंपरागत स्थान पर लगवा दिया गया था।” कानपुर के रावतपुर थाने में दर्ज एफ़आईआर के अनुसार मुस्लिम समुदाय ने जुलूस के दौरान ‘आई लव मोहम्मद’ का पोस्टर लगाकर नई परंपरा शुरू करने की कोशिश की जिसका दूसरे समुदाय ने विरोध किया। एफ़आईआर में यह भी दावा किया गया है कि इस दौरान विरोधी समुदाय के धार्मिक पोस्टर फाड़ दिए गए। कानपुर के रावतपुर थाने में भारतीय न्याय संहिता की धारा 196 और 299 के तहत की गई इस एफ़आईआर में दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने और नफ़रत फैलाने के आरोप लगाए गए हैं। जुलूस के आयोजकों समेत कई लोगों को एफआईआर में नामजद किया गया है। हलांकि कानपुर पुलिस के मुताबिक अब तक किसी की गिरफ़्तारी नहीं हुई है। स्थानीय पत्रकार अभिषेक शर्मा के अनुसार बैनर लगाने को लेकर विवाद चार सितंबर को शुरू हुआ था। इसके अगले दिन बारावफात के मौके पर जुलूस निकाला गया, जबकि एफआईआर दस सितंबर के शाम में की गई।
महिलाओं का नेतृतव
बीबीसी के खबर अनुसार लखनऊ में कई महिलाओं ने हाथ में ‘आई लव मोहम्मद’ का बैनर लेकर विधानसभा के गेट नंबर चार के सामने प्रदर्शन किया। इन महिलाओं का नेतृत्व सपा नेता और दिवंगत शायर मुनव्वर राणा की बेटी सुमैया राणा कर रही थीं। बीबीसी से बातचीत के दौरान सुमैया राणा ने कहा कि कई युवा भी इस प्रदर्शन में शामिल होना चाह रहे थे लेकिन पुलिस ने उन्हें रास्ते में ही रोक दिया। सुमैया ने बीबीसी से कहा, “हम महिलाएं कार में सवार होकर विधानसभा तक पहुंची और अपना विरोध दर्ज कराया। पुलिस ने हमें भी वहां से हटा दिया।” सुमैया कहती हैं, “पैगंबर मोहम्मद ने पूरी दुनिया को शांति का संदेश दिया। आज उनसे मोहब्बत के इज़हार को जुर्म ठहराया जा रहा है। लोग अपने नाम के साथ कट्टर हिंदू लिखते हैं, तब कोई कार्रवाई नहीं होती लेकिन अगर मुसलमान अपने पैगंबर का नाम भी लिखते हैं तो पुलिस दमन (बलपूर्वक शांत करना) करती है। मुसलमानों को उनके धर्म की वजह से निशाना बनाया जा रहा है और हम इसके ही ख़िलाफ़ हैं।”
विरोध प्रदर्शन और हिंसा
कानपुर के बाद, उन्नाव, उत्तराखंड और महाराष्ट्र में भी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। उन्नाव में प्रदर्शनकारियों ने पत्थरबाजी की और पुलिस हिरासत से दो युवकों को छुड़ाने की कोशिश की, जिसके बाद पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा.महाराष्ट्र के लातूर में मुस्लिम समुदाय ने एक विशाल मार्च निकाला, जिसमें लाखों लोग सड़कों पर उतरे। प्रदर्शनकारियों ने ‘आई लव मोहम्मद’ लिखी तख्तियां पकड़ी हुई थीं। इस मार्च में प्रदर्शनकारियों ने प्रशासन से यह मांग की कि युवकों पर दर्ज मुकदमे वापस लिए जाएं, अपमानजनक बयान देने वालों पर सख्त कार्रवाई हो और धार्मिक भावनाओं के संरक्षण के लिए कानून लागू किया जाए। उन्होंने अपनी मांग को लेकर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी सौंपा।
यूपी के अन्य जिलों में भी ये विवाद फैला
उन्नाव – कानपुर कि घटना के बाद उन्नाव में भी युवाओं ने ‘आई लव मोहम्मद’ के बैनर लेकर और धार्मिक नारे लगाते हुए जुलूस निकाला। इस दौरान झड़पें हुई जिनमें पुलिसकर्मियों पर पथराव भी शामिल बताया जा रहा है। नतीजतन 8 एफआईआर दर्ज हुए और 5 लोगों को गिरफ़्तार किया गया। स्थानीय लोगों का कहना है कि कानपुर की पहली एफआईआर असल में पोस्टर फाड़ने को लेकर की गई न कि नारे लगाने को लेकर।
महाराजगंज – महाराजगंज में पुलिस ने एक नियोजित जुलूस को रोक दिया। 64 लोगों (4 नामजद, 60 अज्ञात) के खिलाफ आईपीसी की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया। विवाद को बढ़ने से रोकने के लिए कई वाहन भी ज़ब्त किए गए।
कौशाम्बी – कौशांबी में एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें युवक ‘सर तन से जुदा’ जैसे आपत्तिजनक नारे लगाते दिखे। इससे हिंदू संगठनों में नाराजगी फैल गई। पुलिस ने कार्रवाई करते हुए नाबालिगों समेत दर्जनों लोगों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया। अधिकारियों का कहना है कि यह वीडियो कानपुर की एफआईआर के जवाब में बनाए गए नारे का है न कि मूल बैनर का।
लखनऊ – लखनऊ में मुस्लिम महिलाओं ने विधान भवन के गेट नंबर 4 पर शांतिपूर्वक प्रदर्शन किया और पैगंबर मुहम्मद के समर्थन में नारे लगाए। सामाजिक कार्यकर्ता सुमैया राणा ने एफआईआर की आलोचना करते हुए कहा कि यह लोगों को उनकी संवैधानिक स्वतंत्रता से डराने का प्रयास है।
पुलिस का हस्तक्षेप
इंडिया टुडे के अनुसार, डीसीपी दिनेश त्रिपाठी ने स्पष्ट किया कि सरकारी नियमों के मुताबिक धार्मिक जुलूसों में नए रीति-रिवाजों को शामिल करने की अनुमति नहीं है। कुछ लोगों ने पारंपरिक तंबू हटाकर बैनर के साथ नया तंबू लगा दिया था, लेकिन पुलिस ने तंबू और साइनेज को पारंपरिक स्थान पर ही बहाल कर दिया। त्रिपाठी ने स्पष्ट किया कि बैनर के लिए कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई थी। हालांकि, हिंदू और मुस्लिम दोनों समूहों ने घटना के दौरान एक-दूसरे पर पोस्टर फाड़ने का आरोप लगाया, जिससे पुलिस की मध्यस्थता के बावजूद भ्रम की स्थिति पैदा हो गई।
राजनेताओं और धार्मिक नेताओं की प्रतिक्रियाएं
– समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रवक्ताओं का तर्क है कि पुलिस की विफलता के कारण विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ और वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का बचाव करते हैं, चाहे वह “आई लव राम” हो या “आई लव मुहम्मद।”
– भाजपा प्रवक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि पुलिस को निशाना बनाने या कानून का उल्लंघन करने के किसी भी प्रयास पर तत्काल कार्रवाई की जाएगी।
– मौलाना सूफियान निजामी, जमात रजा-ए-मुस्तफा और विश्व सूफी फोरम सहित धार्मिक नेताओं ने हिंसा की निंदा की है, शांति का आह्वान किया है और सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखते हुए संवैधानिक अधिकारों का सम्मान करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है।
– ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने इस मुद्दे को धार्मिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति का मामला बताया। उन्होंने कानपुर पुलिस को टैग करते हुए लिखा, “‘आई लव मुहम्मद’ कहना कोई अपराध नहीं है। अगर ऐसा है, तो मुझे कोई भी सज़ा मंज़ूर है। लेकिन मुसलमानों को पैगंबर के प्रति प्रेम और सम्मान व्यक्त करने के लिए दंडित नहीं किया जाना चाहिए।”
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