पन्ना जिले के जंगल में कई प्रकार की पेड़ों की प्रजातियां पाई जाती हैं। उसी में से एक पेड़ है महुआ का। महुआ के पेड़ से उत्पन्न हुआ महुआ बाद में गुलेंदा और गूली का रूप ले लेता है। महुआ मार्च महीन के आखिरी दिनों में पेड़ों से गिरना शुरू हो जाते हैं। महुआ का लोग ढुभरी और गुलगुले बनाकर स्वाद से खाते हैं।
जो गुलेंदा होता है वह दिखने में अमरुद की तरह होता है। जब यह पक जाते हैं तो खाने में बहुत मीठे लगते हैं। खाने में इनके अंदर से गुली निकलती है। गुली को लोग जंगल से बीनकर लाते हैं। फिर उसे फोड़कर धूप में सुखाते हैं। जब यह पूरी तरह से सूख जाते हैं तो इनका तेल निकाला जाता है। इस तेल से फिर कई प्रकार के पकवान बनाये जाते हैं।
गांव वालों ने बताया कि पहले बहुत घने जंगल रहते थे। बहुत मात्रा में गुली आसानी से मिल जाया करती थीं। लेकिन अब गुली आसानी से नहीं मिल पाती तो उन लोगों को सुबह 4:00 बजे उठकर जाना पड़ता है। उन्हें कभी 4 से 5 घंटे तो कभी-कभी पूरा दिन लग जाता है तब जाकर उन्हें गुली मिलती है।
कुछ लोगों ने यह भी बताया कि जिस प्रकार से अभी खाने का तेल ₹200 किलो हो गया है। इसलिए वह लोग तेल नहीं खरीद पाते हैं। इसी वजह से वह जंगल से गुली बीनकर लाते हैं ताकि वह इसके तेल का इस्तेमाल खाना बनाने में कर सकें। और 30 रुपये किलो भी बेचते है जिससे उन्हें आमंदनी हो जाती है l
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