कोरोनावायरस के बढ़ते खतरे के मद्देनजर 24 मार्च रात 12 बजे के बाद पूरे भारत में पूरे भारत में लॉकडाउन है। इस स्थिति में कुछ मुख्य कामों को छोड़कर सभी काम बंद कर दिए गए हैं। दूसरे राज्यों में काम के लिए मजदूरों को छुट्टी दे दी गई है, उन्हें उनके घर वापस जाने के लिए कह दिया गया है। ऐसे में सैंकड़ों मजदूरों के सामने संकट खड़ा हो गया। कमाई तो गई ही, अब घर कैसे पहुंचे क्योंकि देश लॉकडाउन है।
रास्ते बंद हैं, ट्रेन, बस बंद है, आवगमन का कोई भी साधन नहीं है। ऐसे में मजदूरों के सामने केवल एक ही रास्ता बचा है, पैदल चलने का रास्ता। मजबूरी मजदूरों ने अपना बोरिया-बिस्तर बांधा और पैदल ही निकल पड़े। ये हालत है गुजरात की। बताया जा रहा है कि अधिकतर मालिकों ने अपने यहां काम करने वाले मजदूरों को मुआवजे के रूप में 500 रुपये दिए हैं। सूत्रों से मिल रही खबर के मुताबिक, गुजरात की राजधानी अहमदाबाद से ऐसे मजदूर पैदल ही राजस्थान स्थित अपने गांव की ओर चल दिए हैं।
हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा पर निकले इन मजदूरों के पास ना तो खाने का कोई सामान है ना रुकने का कोई ठिकाना। 25 मार्च यानि बुधवार को साबरकांठा जिले में नेशनल हाईवे पर अपने बच्चों और सामान के साथ पैदल जाते हुए मजदूरों को पुलिस ने देखा तो रोक लिया। रोजी-रोटी जाने और पैदल चलने के कारण इनके चेहरे पर थकान साफ झलक रही थी।
पुलिस ने इन मजदूरों से बात की तो एक मजदूर ने पुलिस को बताया, मैं अहमदाबाद के रानीप इलाके में काम कर रहा था और मेरे मालिक ने मुझे काम बंद करके वापस जाने को कह दिया। उन्होंने मुझे बस किराया दिया, लेकिन कोई गाड़ी चल नहीं रही, हम पैदल अपने गांव वापस जाने को मजबूर हैं।
मजदूरों की ऐसी हालत को देखकर साबरकांठा पुलिस ने उनकी मदद की और उन्हें खाना खिलाया। मामले में साबरकांठा एसपी चैतन्य मांडलिक ने कहा, मजदूरों को राजस्थान के सिरोही, उदयपुर या डूंगरपुर स्थित उनके गांवों तक पहुंचने के लिए परिवहन की कुछ न कुछ व्यवस्था की जाएगी, फिलहाल उन्हें भोजन, बिस्किट और पानी उपलब्ध कराया है।
कुछ ऐसी ही खबर लखनऊ-बाराबंकी से आ रही है, जहां पर 20 साल के अवधेश कुमार और उनके साथ करीब 20 बुजुर्ग और नौजवान लखनऊ से बाराबंकी पैदल अपने घर की ओर निकल पड़े। अवधेश ने 24 मार्च यानि मंगलवार रात को ही उन्नाव स्थित अपनी फैक्टरी से 80 किलोमीटर की दूरी पर बसे बाराबंकी में अपने गांव की तरफ चलना शुरू कर दिया था, और वह गुरुवार सुबह ही घर पहुंच पाएगा, बशर्ते उसे रास्ते में पुलिस ने नहीं रोक लिया। अवधेश कहते हैं कि लगभग 36 घंटे के इस सफर में वो कहीं भी रुक नहीं पाएंगे, शायद एक दो बार कहीं आराम करने के लिए रुक जाएँ।
मीडिया द्वारा पुछे गए सवाल पर अवधेश ने कहा मैं उन्नाव की एक स्टील फैब्रिकेसन कंपनी में काम करता हूं। मैं वहीं रुका हुआ था, जहां उन्होंने रखा था। बीती रात प्रबंधन ने हमें खाली करने के लिए कह दिया। उन्होंने हमसे कहा कि हम यहां नहीं रह सकते। ऐसे में हमारे पास घर जाने के अलावा क्या विकल्प है। परिवहन की सुविधा नहीं है। इसलिए हम कुछ एक ही गांव के रहने वाले हैं, जिन्होंने तय किया कि हम पैदल ही गांव चलेंगे। ऐसी ही कुछ खबर यूपी के बुंदेलखंड और बिहार से भी आ रही है जहां के माजूदर दिल्ली जैसे शहर से पैदल अपने घर आने को मजबूर हो गए हैं।