10 दिसंबर का दिन हर साल पूरे विश्व में मानव अधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है। 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इस दिन को मनाने की घोषणा की गयी थी। संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में मानव अधिकार दिवस को आधिकारिक तौर पर 1950 में 4 दिसंबर को स्थापित किया गया था।
मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा ( यूडीएचआर) मानव अधिकारों के लिए मील के पत्थर की तरह काम करती है। वह कहती है कि हर किसी को मानव कहलाने का अधिकार है। चाहें वह किसी भी जाति, रंग,रूप,लिंग,भाषा, धर्म,संपत्ति, जन्म, आय, राष्ट्र या किसी भी सामाजिक मूल से हो। मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा वाले दस्तावेज़ में 500 से अधिक भाषाएं अनुवादित हैं। यह दुनिया का सबसे अधिक अनुवादित दस्तावेज़ है।
2020 का विषय
इस बार मानव अधिकार दिवस का विषय “रिकवर बेटर : स्टैंड अप फ़ॉर ह्यूमन राइट्स” यानी बेहतर तरह से वापस आना: मानव अधिकारों के लिए खड़े होना रखा गया है।
इस बार का विषय कोविड-19 महामारी से संबंधित रखा गया है ताकि कोरोना महामारी के दौरान मानव अधिकारों की तरफ़ ध्यान केंद्रित करते हुए लोगों के अधिकारों की रक्षा की जा सके। महामारी के दौरान लोगों के बीच काफ़ी असमानता देखने को मिली थी, जिसकी वजह से इस बार का विषय कोरोना महामारी से जोड़ते हुए रखा गया है।
जानिए मानव अधिकारों के बारे में
मानव अधिकारों का अर्थ हमारे मूल अधिकारों से जुड़ा हुआ है, जो हर एक व्यक्ति को समान रूप से जीने, समान व्यवहार, प्रतिष्ठा और स्वंत्रता का अधिकार देता है। यह अधिकार कैदियों से लेकर सामान्य नागरिकों के लिए बनाए गए हैं। जिनमें ये सारे अधिकार आते हैं :
????बोलने की आजादी
????आजादी और सुरक्षा का अधिकार
????आर्थिक शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाने का अधिकार
????रंग, नस्ल, भाषा, धर्म के आधार पर समानता का अधिकार
????कानून के सामने समानता का अधिकार
????कानून के सामने अपना पक्ष रखने का अधिकार
????अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार
यह है मनाने का उद्देश्य
यह दिन दुनिया भर में मानव के वास्तविक अधिकारों की प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। दुनिया भर में लोगों के शारीरिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक में सुधार लाना, इसे मनाने की वजह है। जैसे:
????दुनिया भर के लोगों के बीच में मानव अधिकारों के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना।
????समग्र मानव अधिकारों की स्थिति में प्रगति के लिये संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रयासों पर ज़ोर देना।
????एक साथ मानव अधिकारों के विशिष्ट मुद्दों को उजागर करने के लिए सहयोग और चर्चा करना।
????इस कार्यक्रम में अल्पसंख्यक समूहों जैसे: महिलाओं, नाबालिगों, युवाओं, गरीबों, विकलांग व्यक्तियों और आदि अन्य को राजनीतिक निर्णय लेने में भाग लेने और मनाने के लिये प्रोत्साहित करना।
मानव अधिकार और सतत विकास
सतत विकास यानी निरंतर चलने वाले विकास के लिए मानव अधिकारों का पूर्ण होना ज़रूरी है। इसके बिना हम सतत विकास की कल्पना भी नहीं कर सकते। इस बार संयुक्त राष्ट्र ने मानव अधिकारों को केंद्र में रखने की कोशिश की है।
कोरोना महामारी ने दुनिया भर में गरीबी, असामनता, और मानव अधिकारों के बीच एक गहरी खाई खड़ी कर दी है। जिसकी वजह से लोग अपने मूलभूत अधिकारों से वंचित रह गए। मानव अधिकारों में बड़ी दूरी को खत्म करने के लिए, जैसा हमारा इस बार का विषय रखा गया है “बेहतर रूप से वापस आना” पर काम करने की ज़रूरत है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार –
???? हर तरह के भेदभाव को खत्म करना
???? असमानताओं के बारे में बताना जो लोगों द्वारा कोरोना महामारी के दौरान झेलनी पड़ी थी ताकि उसे ठीक किया का सके।
???? भागीदारी और एकजुटता को प्रोत्साहित करना
???? सतत विकास को बढ़ावा देना
मानव अधिकार हैशटैग चल रहा है ट्रेंड पर
ट्विटर पर मानव अधिकार हैशटैग सबसे ज़्यादा चल रहा है। नेताओं से लेकर संयुक्त राष्ट्र एजेंसियां मानव अधिकारों को लेकर ट्वीट कर रही हैं। ‘ईच अदर‘ नाम की ट्विटर प्रोफाइल ने मानव अधिकार से संबंधित फ़िल्म की कुछ झलकियां भी पोस्ट की है।
Here's the trailer for our upcoming film Excluded, out 10 Dec 2020 – Human Rights Day.
The film amplifies young people's views on the complex topic of school exclusions.
In the run up to launch, we're diving deeper into this issue through a series of stories on our website. pic.twitter.com/6c6Cf6SCNm
— EachOther (@EachOtherUK) November 30, 2020
कोरोना के दौरान मानव अधिकार उल्लंघन के तहत शिकायतें
टाइम्स ऑफ इंडिया की अक्टूबर 12, 2020 की रिपोर्ट में द नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन ने बताया कि अप्रैल 2020 से सितंबर 2020 तक मानव अधिकारों के उल्लंघन को लेकर 32,876 शिकायत दर्ज करवाई गई थीं। वहीं अक्टूबर 1, 2019 से सितंबर 30, 2020 तक मानव अधिकारों के उल्लंघन के कुल मामले 73,729 हैं।
कोरोना के दौरान मानव अधिकारों के उल्लंघन के मामले
कोरोना महामारी के दौरान मानव अधिकारों के उल्लंघन में सबसे ज़्यादा बढ़ोतरी देखी गयी। जैसे : दिहाड़ी मज़दूरो का पलायन और उससे होने वाली मौतें, पत्रकारों को रिपोर्टिंग करने में रुकावट, उन्हें गिरफ़्तार करना आदि।
24 मार्च 2020 को जब देश के प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पूरे भारत में लॉकडाउन की घोषणा की गयी तो हमने बड़ी मात्रा में दिहाड़ी मज़दूरों को अपने गांवो की तरफ़ पलायन करते हुए देखा। वजह सिर्फ खाने, रहने और मूलभूत आवश्यकतओं के पूरे ना होने का डर था। लंबे सफर और घर पहुँचने की चाह में कई लोगों की रास्ते मे ही मौत हो गयी। लेकिन सरकार की तरफ से उन्हें कोई मदद नहीं दी गयी। यहां तक की मज़दूर और रोज़गार मंत्री संतोष गंगवार द्वारा यह कह दिया गया कि उनके पास मृत दिहाड़ी मज़दूरों का ना तो कोई डाटा है और ना ही कोई जानकारी।
मई 30, 2020 को हिंदुस्तान टाइम्स ने रेल सुरक्षा बल की रिपोर्ट बताते हुए कहा कि रिपोर्ट में 80 दिहाड़ी मज़दूरों की मौत को बताया गया है। बाद में मंत्रालय द्वारा संसद को बताया गया कि लगभग 1.4 करोड़ दिहाड़ी मज़दूरों ने लॉकडाउन के समय पलायन किया था, जिसमें सबसे ज़्यादा मज़दूर उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान से थे। हालांकि, अभी भी मंत्रालय द्वारा पूर्ण रूप से दिहाड़ी मज़दूरों की मौत का ब्यूरो नहीं दिया गया है।
कोरोना की रिपोर्टिंग करने पर पत्रकारों पर साधा गया था निशाना
जून 15, 2020 की द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार 55 पत्रकार ऐसे थे जिन्हें कोरोना महामारी के दैरान पत्रकारिता करने की वजह से निशाना बनाया गया था क्योंकि उन्होंने कम पीपीई किट, खाने और भ्रष्टाचार से संबंधित चीजों की रिपोर्टिंग की थी। यह रिपोर्ट राइट्स एंड रिस्कस एनालिसिस ग्रुप द्वारा सांझा की गयी थी।
इस दौरान काफ़ी पत्रकारों पर एफआईआर दर्ज़ की गयी, उन्हें गिरफ्तार किया गया, उनके साथ शारीरिक उत्पीड़न किया गया, पत्रकारिता करने की वजह से उन्हें धमकी दी गयी, यहां तक कि उनके अभिव्यक्ति के अधिकारों का भी हनन किया गया।
पत्रकारों द्वारा मानवीय संकट, प्रशासनिक विफ़लता, लापरवाही और सरकार द्वारा उचित प्रबंधन की रिपोर्ट करने पर 22 पत्रकारों पर भारतीय दंड संहिता, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, आपदा प्रबंधन अधिनियम, मोटर्स वाहन अधिनियम, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम, गैरकानूनी गतिविधियां (यूपीए) के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज़ की गई थी।
यूपी में 11 पत्रकारों पर हमला किया गया। वहीं छह मामले जम्मू और कश्मीर, 5 हिमाचल प्रदेश, 4 तमिल नाडु, पश्चिम बंगाल,ओडिशा और महाराष्ट्र के, 2 पंजाब, दिल्ली,मध्यप्रदेश और केरला के और एक–एक मामले अंडामान और निकोबार द्वीप,अरूणाचल प्रदेश,असाम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात,कर्नाटका, नागालैंड और तेलेंगना के थे।
कोरोना महामारी ने पूरे देश को दिखा दिया कि देश में मानव अधिकारों की क्या स्थिति है। जहां सरकार कोरोना महामारी के दौरान लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाई। जिसकी वजह से मज़दूरों की जान चली गयी। पत्रकारों को सिर्फ इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि वह पत्रकारिता कर रहे थे, सरकार की नाकामयाबी को दिखा रहे थे। क्या सरकार इसी को मानव अधिकार की रक्षा करना कहती है ? जहां अभिव्यक्ति के अधिकार का इस्तेमाल करने को गैर–कानूनी करार कर दिया जाता है। क्या सरकार हमे इन सब चीजों के बाद हमारे मानव अधिकारों को सुरक्षित रखने का वादा कर सकती है ? जिसने खुद ही मानव अधिकारों का उल्लंघन किया है।