अयोध्या के एक युवा ने कहा, “अबकी बार अयोध्या में भाजपा का हारना बहुत ज़रूरी था क्योंकि भाजपा हमेशा धर्म के मामले को लेकर आगे आती रहती है। इसी में देश के युवाओं को उलझा देती है। इस बार फैज़ाबाद के जितने भी युवा थे सबका मन एक तरफ था।”
(संतरी – भाजपा, लाल – सपा, आसमानी – आईएनसी)
रिपोर्ट – कुमकुम यादव व गीता देवी
यूपी में विकास के लिए बदलाव की शुरुआत हो चुकी है और इसकी शुरुआत की है यहां की जनता ने सत्ता की सरकार को बहुमत से हटाकर। इस बदलाव की हवा को यूपी के अलग-अलग लोकसभा क्षेत्रों से जुड़कर करीब से देखा जा सकता है।
4 जून 2024 को लोकसभा चुनाव के परिणामों में यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से सबसे ज़्यादा 37 सीटें समाजवादी पार्टी को मिलीं। वहीं 10 सालों से सत्ता में रही भाजपा की सरकार को सिर्फ 33 सीटें ही मिलीं। कांग्रेस यूपी में सिर्फ 6 सीटें ही सुरक्षित कर पाई।
भाजपा को इस बार भी उम्मीद थी कि यूपी में पूर्णतयः उनकी ही बहुमत रहेगी जिसकी एक वजह अयोध्या में राम मंदिर का बनना था। जब से राम मंदिर बनाने और फिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह की शुरुआत की गई, यही कहा गया कि यहां से पार्टी अपने लिए वोट सुरक्षित कर रही है। स्थानीय जनता में भी राम मंदिर और पार्टी को लेकर साथ नज़र आ रहा था। यहां से सपा प्रत्याशी अवधेश प्रसाद और भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह के बीच करीब की लड़ाई देखने को मिली लेकिन भाजपा राम की नगरी में राम मंदिर बनाकर भी हार गई। इस हार ने यह स्पष्ट किया कि लोगों को मंदिर का विकास नहीं उनका विकास चाहिए। जनता को आस्था से पहले रोज़गार और घर चाहिए।
फैज़ाबाद में लड़ाई विकास से ज़्यादा धर्म की रही जिसके बदौलत यह साफ़ कहा जा रहा था कि यहां भाजपा के अलावा और कोई पार्टी आ ही नहीं सकती। यहां की जनता ने इस भ्रम को भी तोड़ दिया। अयोध्या से सपा पार्टी की तरफ से लड़ रहे अवधेश प्रसाद को 554289 (+ 54567) विजयी वोट मिले। वहीं भाजपा के उम्मीदवार लल्लू सिंह बहुत पास से 499722 ( -54567) वोटों के साथ यहां हार गए।
सपा की जीत में और अपनी हार में भाजपा का अपना खुद का बहुत बड़ा सहयोग रहा।
फैज़ाबाद में भाजपा क्यों हारी?
ऐसा पहली बार हुआ कि यूपी में सपा जीती है और वह भी फैज़ाबाद से। इससे पहले यहां भाजपा व कांग्रेस की ही सत्ता रही है। सपा ने भाजपा को उसके गढ़ में कैसे हराया, और जनता ने क्यों इस बार अन्य पार्टी को चुना, इसकी वजह को भी विस्तृत तौर पर देखा जा सकता है।
-युवाओं ने शुरू की बदलाव की लहार
अयोध्या के 25 वर्षीय सुरेश इस समय फैज़ाबाद में रहकर टीचर बनने की तैयारी कर रहे हैं। कहते हैं, “अबकी बार अयोध्या में भाजपा का हारना बहुत ज़रूरी था क्योंकि भाजपा हमेशा धर्म के मामले को लेकर आगे आती रहती है। इसी में देश के युवाओं को उलझा देती है। इस बार फैज़ाबाद के जितने भी युवा थे सबका मन एक तरफ था।”
आगे कहा,”जब से बीजेपी सरकार आई है हम युवाओं के लिए कोई भी नौकरी की वेकैंसी नहीं निकली। अगर निकली भी है तो पेपर लीक करवा देते हैं या निरस्त हो जाती है। हम युवाओं के साथ जब से यह बीजेपी सरकार आई, खिलवाड़ ही करती रही है। इस बार हम सभी युवाओं ने बदलाव का सोचा था और अपने अयोध्या से यह करके दिखाया।”
पूजा कहती हैं,”अयोध्या में लल्लू सिंह (भाजपा प्रत्याशी) का हारना बहुत ज़रूरी था। लल्लू सिंह कभी भी अयोध्या सिटी से बाहर गाँव में नहीं आये। जब भी वोट मांगना होता तब उनके कार्यकर्ता आते थे। वह खुद कभी नहीं आये। उन्होंने कभी युवाओं के रोज़गार, महिलाओं के साथ उत्पीड़न की बात नहीं की। हम युवाओं ने जाति-धर्म को हराकर बदलाव का मूड किया है।”
– रामपथ के नाम पर लोगों के घर तोड़ना
अयोध्या में बीजेपी के हारने की अन्य वजह ‘रामपथ’ के चौड़ीकरण के नाम पर लोगों के घरों व दुकानों को तोड़ना रहा जिसका उन्हें मुआवज़ा तक नहीं दिया गया। लोगों का यह गुस्सा चुनाव के नतीजों में दिखा।
‘रामपथ’ के चौड़ीकरण के दौरान फैजाबाद के रामनगर, पहाड़गंज गुसियाना, कसाब बाड़ा इत्यादि जगहों की घरों व दुकानों को तोड़ा गया था। कसाब बाड़ा के उमर कहते हैं, “अभी तक हम लोगों के घर टूटे हुए हैं। हमें बनवाने के लिए मुआवज़ा नहीं मिला तो कैसे बनवाएं।”
लोगों ने कहा, “इस सरकार में हिन्दू-मुस्लिम को लेकर बंटवारा किया गया जिसका असर यह रहा कि यहां पर 12 प्रतिशत मुस्लिम वोटर है जो पूरे एक तरफ हो गए जो 2019 में भाजपा के साथ थे।”
– मन्दिर निर्माण के लिए गांवो को खाली कराना
खबर लहरिया की साल 2022 की रिपोर्टिंग के अनुसार,अयोध्या विधानसभा के गांव माझा बरेहटा में 251 मीटर की श्रीरामचंद्र की मूर्ति लगनी थी। इसके लिए 86 एकड़ जमीन के अधिग्रहण का नोटिफिकेशन ज़ारी किया गया जिसके अंदर धर्मों का पुरवा, नेउर का पुरवा और माझा बरेहठा गाँव भी आता है, लेकिन माझा बरेहटा गांव के लोग अपनी जमीन देने के लिए सहमत नहीं थे। उन्हें मज़बूरन इसकी वजह से पलायन करना पड़ा।
लोगों ने बताया कि, हमारे दादा, पर दादा सबका यहीं पर जन्म हुआ और उनसे कहा गया कि वे अपनी ज़मीन खाली करके चले जाएं। हमें ठीक से मुआवज़ा नहीं मिल रहा लेकिन हमारी ज़मीन ले रहे हैं। हम इतनी अच्छी उपज वाली ज़मीन कहां से खरीदेंगे। हमें इतने पैसे नहीं दे रहे।”
– संविधान बदलने का ब्यान
लल्लू सिंह अयोध्या में दो बार जीत चुके हैं। इस बार सोशल मीडिया पर उनका एक वीडियो भी वायरल हो रहा था जिसमें उन्होंने कहा था कि, “भाजपा को 400 पार इसलिए चाहिए क्योंकि उन्हें संविधान बदलना है।” इस बयान से लोग काफी भड़के हुए थे। उनका कहना था कि बाबा साहब का बनाया हुआ संविधान नहीं बदला जा सकता इसलिए इस बार संविधान को बदलने तो नहीं दिया लेकिन हां अपने सांसद को बदल दिया।
बाँदा-चित्रकूट सीट से सपा ने भाजपा को कैसे हराया?
बाँदा-चित्रकूट लोकसभा सीट की बात की जाए तो यहां से कई सालों बाद किसी महिला प्रत्याशी को जगह मिली है। इस बार लोकसभा 2024 के चुनाव में समाजवादी पार्टी की कृष्णा देवी शिवशंकर पटेल ने 406567 (+ 71210) वोटों से यह जीत हासिल की। यह कहा जा सकता है कि उन्होंने राजनीति में आगे कदम रखने वाली कई महिलाओं के लिए जगह बनाने की शुरुआत कर दी।
बता दें, कृष्णा, वर्तमान में जिला पंचायत सदस्य भी रही हैं। उन्होंने कई स्तर पर छोटे-छोटे चुनाव भी लड़े हैं।
यह सीट कई सालों से भाजपा के नामी चेहरे आरके सिंह पटेल के पास ही रही थी। इस बार वह सिर्फ 335357 ( -71210) वोट ही हासिल कर पाए और दूसरे पायदान पर रहें। वहीं बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी मयंक द्विवेदी 245745 ( -160822) वोटो के साथ तीसरे स्थान पर रहे।
लोगों के अनुसार यह सीट सपा इसलिए जीती…..
इंडिया गठबंधन से मिली सपा की जीत को लेकर लोगों ने कहा कि जीत का एक पहलु यह भी है कि यूपी का यूथ अखिलेश यादव को पसंद करता है। उन्होंने अपने कार्यकाल में युवाओं के लिए बहुत काम किया है।
बाँदा- चित्रकूट सीट से सिर्फ आरके सिंह पटेल का नाम और उनका ही प्रचार देखने को मिल रहा था। उनको लेकर हमेशा लोगों में यह बात रही कि जब से वह राजनीति में आये तो जीते ही है। चाहें वह किसी भी पार्टी में रहे हो।
इस बार उनके हारने की वजह का एक मुख्य कारण सवर्ण समुदाय से वोट न आने को बताया गया। खबर लहरिया को मिली जानकारी के अनुसार, चुनाव से कुछ समय पहले आरके सिंह पटेल के बेटे सुनील पटेल ने भरे चौराहे पर सवर्ण समाज के लोगों को अपशब्द कहे थे। इसका वीडियो भी काफी वायरल हुआ था जिसके बाद यह समाज भी काफी आक्रोश में था। लोगों ने यह ठान लिया था कि इस बार आरके सिंह पटेल को वोट नहीं देना है।
बसपा प्रत्याशी मयंक द्विवेदी को लेकर लोगों ने कहा कि वह पहली बार चुनाव लड़ रहे थे। बीच में यह चर्चा भी उठी कि बसपा सुप्रीमो ने इण्डिया गठबंधन के साथ हाथ नहीं मिलाया। ऐसे में जो गिने-चुने प्रत्याशी थे वह भी पीछे हो गए। अगर बसपा हाथ मिला लेती तो यहां शायद उनकी आगे निकलने की उम्मीद हो सकती थी।
अब यूपी में राजनीति का समीकरण बदल चुका है। बेशक पीएम मोदी ने वाराणसी की वीआईपी की सीट 612970 (+ 152513) वोट हासिल से तीसरी बार जीत गए हैं लेकिन इस जीत में विपक्षी कांग्रेस से लड़ रहे अजय राय ने बेहतरीन टक्कर दी। उन्हें जनता ने 460457 ( -152513) वोट दिए।
वहीं दूसरी तरफ अमेठी से स्टार चेहरे के रूप में चुनाव लड़ रही स्मृति ईरानी को इस सीट से बुरी तरह से हार मिली। अमेठी में कांग्रेस के किशोरी लाल को 539228 (+ 167196) वोट के साथ जीत मिली। वहीं केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी को 372032 ( -167196) वोटों के साथ हार का सामना करना पड़ा।
रायबरेली से चुनाव लड़ रहे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी को 687649 (+ 390030) वोट मिले और उन्होंने भाजपा के दिनेश प्रताप सिंह को वोटों के बड़े अंतराल से हराया। भाजपा प्रत्याशी को सिर्फ 297619 ( -390030) वोट ही मिले।
यूपी में जहां साल 2019 के लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद पूरी यूपी भाजपा के रंग में थी, आज यही राज्य 2024 के लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद रंग-बिरंगा दिख रहा है। यहां की जनता ने सत्ता की सरकार को मज़बूत लड़ाई पेश की है और बताया है कि उन्हें क्या चाहिए और वह क्या कर सकते हैं। यह हवा और बदलाव की आंधी की बस शुरुआत है क्योंकि यह लड़ाई यहां के युवाओं से शुरू हुई हैं और आगे तक लड़ी जायेगी सबके साथ मिलकर।
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