खबर लहरिया Blog House Collapses in Rain, No Government Female: बरसात ने छीन लिया छत, सरकारी मदद अब तक अधूरी, बांदा के ग्रामीणों की पीड़ा

House Collapses in Rain, No Government Female: बरसात ने छीन लिया छत, सरकारी मदद अब तक अधूरी, बांदा के ग्रामीणों की पीड़ा

बांदा ज़िले के सोनरही गांव में हाल ही में हुई भारी बरसात ने कई परिवारों का आशियाना उजाड़ दिया है। कई घर गिर गए लोग खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं। माया देवी, कैलाश, शिकुवारी और राधा जैसी कई ग्रामीण महिलाएं सरकार और प्रशासन से लगातार गुहार लगा रही हैं, लेकिन अब तक उन्हें राहत नहीं मिली है। 

House destroyed in the rain

बारिश में टूटा घर (फोटो साभार: शिवदेवी)

मकान गिरा, अब खुले आसमान के नीचे हूं, माया देवी की आपबीती

सोनरही गांव की माया देवी बताती हैं “अभी जो बरसात हुई है उसी में मेरा पूरा मकान गिर गया। अब मैं बेघर हो गई हूं और खुले आसमान के नीचे रहने के लिए मजबूर हूं। इस समय खेत में धान की कटाई चल रही है हमें समय भी नहीं मिलता।” माया देवी कहती हैं कि उन्होंने कई बार लेखपाल को सूचना दी लेकिन वह बस टालता रहता है। “कभी कहता है आज आएंगे कभी कहता है कल आएंगे।”

माया देवी (फोटो साभार: शिवदेवी)

वह बताती हैं “लेखपाल गांव में सर्वे करने नहीं आता। कभी बांदा बुलाता है कभी ब्लॉक बुलाता है। हमको दौड़ा-दौड़ा कर थका दिया है। जब कभी मिला तो मैंने कहा कि चलिए घर का सर्वे कीजिए लेकिन उसने ब्लॉक में बैठकर फॉर्म भर दिया और मेरा नुकसान सिर्फ ₹20,000 लिखा।”

माया देवी का दावा है कि उनका एक लाख रुपये का नुकसान हुआ है लेकिन सही सर्वे न होने के कारण उन्हें उचित मुआवजा नहीं मिल पा रहा है। उनकी अपील है कि लेखपाल या कोई भी अधिकारी जब तक खुद मौके पर जाकर जांच नहीं करेगा, तब तक सच्चाई सामने नहीं आएगी।

तीन घर गिरे, ठंड आ रही है, कैलाश की चिंता

कैलाश नाम के ग्रामीण बताते हैं कि हाल की बारिश से गांव में तीन घर गिर चुके हैं लेकिन अब तक कोई सर्वे करने नहीं आया। वह कहते हैं “हम लोग अब खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर हैं। अगर सर्वे हो जाता तो सरकार से मुआवजा मिल जाता और हम छप्पर डालकर किसी तरह गुजर-बसर कर सकते थे।” कैलाश का कहना है कि ठंड नजदीक है और छोटे बच्चे खुले में सो रहे हैं जिससे वे बीमार हो रहे हैं। “कम से कम पन्नी देकर छानी-छप्पर बना लें यही मदद चाहिए।”             

The condition of Kailash's mud house

कैलाश के कच्चे मकान की दशा (फोटो साभार: शिवदेवी)

फटी धोती की झोपड़ी, हर वक्त डर, शिवकुवारी की तकलीफ

शिवकुवारी बताती हैं कि उन्होंने फटी-पुरानी धोती से चारों ओर लपेटकर झोपड़ी बनाई है जिसमें उनका परिवार रह रहा है। वह कहती हैं “हम जब खाना बनाते हैं तो कुत्ते-बिल्लियों का डर रहता है। दिनभर धान की कटाई में खेतों में रहते हैं तो चोरी का डर बना रहता है।”

शिवकुवारी ने बताया कि प्रधान ने हर घर से 500 जमा कराए थे और कहा था कि ऑनलाइन फॉर्म कराया जा रहा है। चार महीने हो गए लेकिन अब तक आवास नहीं मिला। “अगर सरकार से आवास मिल जाता तो हम भी पक्का मकान बनाकर सुरक्षित रह सकते थे।”    

condition of dilapidated house

जर्जर मकान की हालत (फोटो साभार: शिवदेवी)

“दांत घिस गए, लेकिन अब तक आवास नहीं मिला” 

राधा देवी करीब 70 साल की बुज़ुर्ग महिला हैं। वे कहती हैं “कितनी बार प्रधान से कहा कितनी बार मांग की दांत घिस गए मांगते-मांगते लेकिन आज तक आवास नहीं मिला।” राधा बताती हैं कि जब चुनाव का समय आया था तो प्रधान हाथ-पैर जोड़कर वोट मांगने आए थे और कहा था कि हर गरीब को आवास मिलेगा। “जब वो जीत गया और हमने कहा कि अब आवास दीजिए तो कहने लगा ‘हम क्या करें, सरकार जब भेजेगी तब मिलेगा।’ अब हमें समझ में आ गया है कि पहले देखना चाहिए कि किसको वोट दे रहे हैं।”

लेखपाल की सफाई, ₹20,000 का नुकसान दर्ज किया गया है

लेखपाल शैलेंद्र सिंह ने इस मामले पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा, “हमने प्रधान से फोटो मंगा लिया है और फॉर्म भरकर जमा कर दिया है। नुकसान का आंकलन ₹20,000 किया गया है।” उन्होंने भरोसा दिलाया कि जब सरकार की तरफ से मुआवजा आएगा, तो सभी लोगों को मिल जाएगा।   

लेखपाल शैलेंद्र (फोटो साभार: शिवदेवी)

बांदा जिले के सोनरही गांव की ये तस्वीर साफ़ दिखाती है कि आपदा के बाद भी सरकारी सिस्टम की सुस्ती कैसे लोगों को और ज़्यादा तकलीफ देती है। ग्रामीण महिलाएं लगातार गुहार लगा रही हैं लेकिन अभी तक उन्हें न छत मिली है न न्याय।

 

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