“सर्दियों में खुद को बचाने के लिए हम शमशान की लकड़ियों का इस्तेमाल करते हैं। इसी को जलाकर हम खुद को सर्दियों में गर्म रखते हैं। इसके आलावा चाय-खाना बनाने में इसका इस्तेमाल करते हैं। लकड़ियां उठाने के लिए उन्हें कोई मना नहीं करता। उन्हें कभी ऐसा नहीं लगा कि वह शमशान से लकड़ियां ला रहे हैं, क्योंकि उनके सामने उनकी ज़रूरत सबसे ज़्यादा बड़ी है।”
‘शमशान की लकड़ियां’, दिल्ली में पड़ती कड़ाके की ठंड में बेघरों की ज़िंदगियां बचाने का काम कर रही हैं। उनका चूल्हा जला रही हैं। उन्हें गर्म रख रही हैं। शमशान की लकड़ियों को लेकर बेशक कई लोगों में हिचकिचाहट, सामाजिक व अन्य धार्मिक भ्रांतियां होंगी लेकिन यह बेघरों को ठंड और भूख से नहीं बचातीं।
दिल्ली के सबसे बड़े और मशहूर शमशान घाट,‘निगम बोध घाट’ के पीछे ‘यमुना पुश्ता’ पर तकरीबन 500 बेघर लोग रहते हैं जोकि कश्मीरी गेट के पास है। ‘यमुना पुश्ता’ जिसके सामने बहती है यमुना। ये सभी सभी लोग शमशान की लकड़ियों का इस्तेमाल करते हैं।
इस पुश्ता पर केवल पुरुष रहते हैं, युवा,बुज़ुर्ग और कुछ छोटे बच्चे। पुश्ता से कुछ मिनटों की दूरी पर है निगम बोध घाट जो उनके लिए इस ठंड में जीवनदायनी बना हुआ है।
यमुना पुश्ता पर रह रहे 31 वर्षीय सूरज ने बताया,
“ठंड की वजह से हमें शमशान घाट से लकड़ियां लानी पड़ती है। उसी पर खाना बनाते हैं, उसी पर हाथ सेंकते हैं।”
कहा, यहां सभी बेघर लोग रहते हैं। सभी खुद को ठंड से बचाने के लिए शमशान की लकड़ियों का इस्तेमाल करते हैं। तकरीबन एक साल पहले मार्च में जी-20 के नाम पर दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) द्वारा उनके रैन बसेरे को तोड़ दिया गया था। रैन बसेरे के टूटने से उन्हें जो भी थोड़ी बहुत सुविधा मिल रही थी, वह भी उनसे छिन गई।
अपनी बात को जोड़ते हुए आगे बताया,
“मैं कबाड़ा बीनने का काम करता हूँ। मेरा और कोई काम नहीं है क्योंकि मेरा एक्सीडेंट हो रखा है। वजन का काम मुझसे होता नहीं है।”
सूरज का कहना है कि वह लगभग 14-15 साल से शमशान से लकड़ियां लेकर आ रहे हैं। सर्दियों में वह इन्हीं लकड़ियों का इस्तेमाल कर, उन्हें जलाकर खुद को ठंड से बचाते हैं।
वहीं यमुना पुश्ता पर रह रहे 45 वर्षीय चंदन ने कहा,
“सर्दियों में खुद को बचाने के लिए हम शमशान की लकड़ियों का इस्तेमाल करते हैं। इसी को जलाकर हम खुद को सर्दियों में गर्म रखते हैं। इसके आलावा चाय-खाना बनाने में इसका इस्तेमाल करते हैं। लकड़ियां उठाने के लिए उन्हें कोई मना नहीं करता। उन्हें कभी ऐसा नहीं लगा कि वह शमशान से लकड़ियां ला रहे हैं, क्योंकि उनके सामने उनकी ज़रूरत सबसे ज़्यादा बड़ी है।”
यहां पुश्ता पर रहने वाले सभी लोग शाम या सुबह 6 बजे के करीब लकड़ियां लेने के लिए शमशान घाट जाते हैं। लोग लकड़ियां लेने के लिए शमशान घाट के पीछे का रास्ता अपनाते हैं।
चंदन ने बताया कि वह शमशान में राख उठाने का काम करते हैं। एक चिता का उन्हें 50 रूपये मिलता है। एक दिन में दो से चार व्यक्ति मिलकर यह काम करते हैं। किसी का मन हुआ तो कोई 100-50 रूपये ज़्यादा दे देता है चाय-पानी के लिए। इसी से उनकी जीविका चलती है। वह सरकार से यही चाहते हैं कि उनके लिए सरकार टेंट-वगैरह का इंतज़ाम करे।
सड़क पर रहने वाला है सबसे ज़्यादा ग्रसित
सामाजिक कार्यकर्ता, सुनील कुमार आलेडिया जोकि सेंटर फॉर हॉलिस्टिक डेवलपमेंट (सीचडी) के साथ बेघर लोगों के लिए काम करते हैं, उन्होंने अपने X अकाउंट पर 9 जनवरी लिखते हुए यह जानकारी दी थी कि किस तरह से बेघर लोग ठंड से बचने के लिए शमशान की लकड़ियों का इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने X पर लिखा, “
“मुर्दों की जली बची हुई लकड़ी के सहारे रात बिता रहे है दिल्ली के बेघर। शीला दीक्षित सरकार में अलाव का प्रावधान होता था। @dusibdelhi बाकी सब ठीक है।”
इसके बाद खबर लहरिया ने सुनील कुमार से बात की। उन्होंने कहा, “जो व्यक्ति सड़क पर है, आखिर में है उन्हें मौसम की मार सबसे ज़्यादा होती है, चाहें वह सर्दी हो, गर्मी हो या बरसात हो। यह देखा जाता है कि सर्दियों और गर्मियों में मौतों की संख्या हमेशा बढ़ जाती है। दिल्ली में बेघरों की तादाद लाखों में है लेकिन इन्हें सुनने वाला, समझने वाला कोई नहीं है।”
आगे कहा, सरकार के पास कभी कभी अंतिम व्यक्ति के लिए पैसे नहीं होते लेकिन कमर्शियल के होते हैं। सरकार इन तक पहुंच जाए, वही बड़ी बात है।”
बिज़नेस स्टैण्डर्ड की जनवरी 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दशक में ठंड के संपर्क में आने से हर साल औसतन 800 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई है।
वहीं अगर दिल्ली सरकार की बात करें तो इस साल भी उनके द्वारा विंटर एक्शन प्लान की शुरुआत की गई है। इस योजना में 16 लोगों की टीम बनाई गईं हैं जो सड़कों पर रहने वाले व्यक्तियों को सक्रिय रूप से स्थानांतरित करने का काम करेगी। इसके आलावा सरकार द्वारा 24×7 संचालित एक केंद्रीकृत नियंत्रण कक्ष स्थापित
इस योजना को लागू करने के लिए, सड़कों पर रहने वाले व्यक्तियों को स्थानांतरित करने में सक्रिय रूप से संलग्न होने के लिए सोलह टीमें जुटाई गई हैं। इसके अलावा, प्रयासों की निगरानी और समन्वय के लिए 24×7 संचालित एक केंद्रीकृत नियंत्रण कक्ष स्थापित किया गया है। योजना की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए, तीन हेल्पलाइन नंबर चालू किए गए हैं, जिससे सर्दियों के मौसम के दौरान बेघरों की जरूरतों पर त्वरित प्रतिक्रिया की सुविधा मिल सके।
इसके अलावा 24/7 केंद्रीकृत नियंत्रण कक्ष भी बनाया गया है और योजना को प्रभावी बनने के लिए तीन हेल्पलाइन नंबर भी ज़ारी किये गए हैं – 14461, 011-23378789 और 011-23370560, इसके ज़रिये लोग बेघर लोगों के बारे में सूचित कर सकते हैं ताकि उन्हें जल्द से जल्द सुविधा मिल सके।
यह योजना और दावा इस साल भी विफल ही नज़र आया। जब हम कड़ाके की ठंड में यमुना पुश्ता पर रह रहे लोगों को देखते हैं तो सरकार की कथनी और करनी, दोनों का पता लग जाता है।
यहां रह रहे लोग सालों से शमशान की लकड़ियां ला रहे हैं ताकि वे खुद को ठंड और भूख से बचा सकें। शमशान घाट को लेकर लोगों की अपनी भ्रांतियां होंगी लेकिन यहां ये लकड़ियां यहां रह रहे बेघर लोगों का सहारा हैं।
फोटो – सेजल पटेल
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