कर्नाटक उच्च न्यालय ने हिजाब विवाद का फैसला बड़ी बेंच को सौंप दिया है। शिवमोग्गा में 144 धारा लागू कर दी गयी है।
“मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा”
जनवरी 2022 में कर्नाटक के कॉलेज से शुरू हुआ हिजाब विवाद अन्य राज्यों, कॉलेजों और छात्रों के बीच फ़ैल चुका है। आज का युवा कल का भविष्य है लेकिन कर्नाटक राज्य में जब युवाओं को गले में सैफरन शॉल लपेटे हिजाब पहनी लड़कियों का विरोध करते हुए देखा तो आने वाले भविष्य पर सवाल खड़ा होने लगा। यह महसूस हुआ कि यह युवा भी दकियानूसी राजनीति और विचारधारा का शिकार हो चुके हैं।
कर्नाटक राज्य के शिवमोग्गा के सरकारी प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में शुरू हुई हिज़ाब के साथ शिक्षा प्राप्त करने की लड़ाई, अब शिक्षा से कई ज़्यादा आगे बढ़ चुकी है। अब लड़ाई हक़ से विचारधारा और धर्म पर आकर खड़ी हो गयी। अब लड़ाई हिज़ाब / सैफरन शॉल (केशरिया) के बीच है। धर्मनिरपेक्ष भारत में इस तरह का विवाद होना खुद उसकी धर्मनिरपेक्षता पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।
संविधान कहता है, किसी भी धर्म पर आधारित न होना ही धर्म निरपेक्षता है। 24वें संविधान संशोधन 1976 के द्वारा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में संशोधन करके धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़ा गया है।
विवाद की आवाज़ दूर-दूर तक राजनीतिक नेताओं, अदालतों और देश के कोने-कोने में नागरिकों तक पहुंची। इसके बाद कर्नाटका हाई कोर्ट को इस मामले में आना ही पड़ा। वहीं बागलकोट में विरोध प्रदर्शन इतना हिंसक हो गया कि शिवमोग्गा में धारा 144 लागू कर दी गयी है। इसके बाद कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई ने स्कूलों और कॉलेजों को अगले तीन दिन के लिए बंद करने का आदेश दिया है। साथ ही यह भी खबर सामने आई कि उडुपी में प्रदर्शनकारियों ने एक-दूसरे पर पथराव किया और स्कूल के बाहर भगवा रंग का झंडा फहराया गया।
ये भगवा रंग का झंडा फहराने का क्या मतलब है? भगवा रंग तो त्याग, बलिदान, ज्ञान आदि का प्रतीक है तो क्या ये भगवाधारी समूह पत्थर बरसा कर, जय श्री राम का नारा लगाकर, हिंसा फैलाकर त्याग और बलिदान का प्रतीक प्रस्तुत कर रहें हैं? हिज़ाब पहनना अपराध कैसे हो सकता है जब भगवा रंग पहनना, टीका लगाना अपराध में नहीं बल्कि आस्था और विश्वास में गिना जाता है?
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कर्नाटक हाई कोर्ट ने हिजाब मामले को बड़ी बेंच को भेजा
हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस कृष्णा दीक्षित की एकल पीठ ने मामले को बड़ी बेंच के पास भेज दिया है। अब कॉलेज में हिजाब पर प्रतिबंध के मामले में हाई कोर्ट की बड़ी बेंच सुनवाई करेगी।
स्कूल-कॉलेजों के 200 मीटर के दायरे में भीड़ की इज़ाज़त नहीं
कर्नाटक में हिजाब विवाद के बाद पुलिस ने कुछ निर्देश ज़ारी किये हैं। आदेश के मुताबिक़ बेंगलुरु में स्कूल, प्रि-यूनिवर्सिटी कॉलेज, डिग्री कॉलेज या अन्य शैक्षणिक संस्थानों के गेट के 200 मीटर के दायरे में किसी भी तरह के जमावड़े या विरोध-प्रदर्शन की अनुमति नहीं होगी। यह गाइडलाइन तकरीबन दो हफ्तों तक लागू रहेगी।
हिज़ाब विवाद मामले में कर्नाटक के शिक्षा मंत्री का बयान
हिजाब विवाद पर कर्नाटक के प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने कहा कि कानून व्यवस्था को कोई अपने हाथ में नहीं ले सकता। किसी भी बदमाश को सरकार नहीं छोड़ेगी।
हिज़ाब विवाद मामले में कर्नाटक के राजस्व मंत्री का बयान
कर्नाटक के राजस्व मंत्री आर. अशोक ने कहा कि सरकार न तो हिजाब और न केसरी के पक्ष में है। छात्र सड़कों पर जो चाहें पहन सकते हैं, लेकिन स्कूलों में ड्रेस कोड अनिवार्य है। हमने छात्रों की सुरक्षा के लिए एहतियात के तौर पर स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए हैं। इस राजनीति के पीछे कांग्रेस है।
हिजाब मामले में केंद्रीय मंत्री मुख़्तार अब्बास नकवी का कहना
कर्नाटक में हिजाब पर हो रहे हंगामे पर केंद्रीय मंत्री मुख़्तार अब्बास नकवी ने कहा कि हमारे देश में अल्पसंख्यक लोगों के आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक अधिकार बराबर हैं। इसलिए हिजाब पर किसी तरह का हंगामा ठीक नहीं है। जो संस्थान हैं उनके अपने ड्रेस कोड होते हैं, उस पर सांप्रदायिक कील मत ठोकिए।
प्रियंका गांधी ने हिजाब मामले में किया ट्वीट
प्रियंका गांधी ने ट्वीट करते हुए कहा है कि बिकिनी, घूंघट, हिजाब या जींस में से क्या पहनना है, ये तय करना महिला का अधिकार है।
महुआ मोइत्रा ने भी किया ट्ववीट
तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा कहती हैं, “राज्य और केंद्र में भाजपा की सरकारें हमें यह बताना बंद करें कि क्या पहनना है। हम वही पहनेंगे जो हम पहनना चाहते हैं।”
BJP govts in state & centre: Stop telling us what to wear.
We Will Wear What We Want To Wear
Don’t leave your caves if you don’t like to see it.
— Mahua Moitra (@MahuaMoitra) February 9, 2022
छात्राओं की तरफ से पैरवी में वकील ने कुरान का किया ज़िक्र
हिजाब पहनने के अधिकार की मांग कर रहीं छात्राओं की ओर से सीनियर एडवोकेट देवदत्त कामत ने कोर्ट में उनकी पैरवी की। उन्होंने कहा, ‘5 फरवरी 2022 को राज्य सरकार ने जो नोटिफिकेशन जारी किया है, वह तीन हाई कोर्ट के तीन फैसलों पर आधारित है। लेकिन ये मामले हिजाब से जुड़े नहीं थे। पवित्र कुरान में हिजाब पहनने को आवश्यक धार्मिक परंपरा बताया गया है।’
कामत ने कुरान की आयत 24.31 का हवाला देते हुए कहा कि गर्दन के नीचे के हिस्से का प्रदर्शन पति के अलावा किसी और के लिए नहीं होना चाहिए। कोर्ट के एक फैसले का जिक्र करते हुए कामत ने कहा, ‘सवाल यह है कि क्या इस परंपरा को हटाने से संबंधित धर्म का मूल चरित्र बदल जाता है। धार्मिक अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर किसी धार्मिक परंपरा की धर्मनिरपेक्षता का परीक्षण नहीं किया जा सकता है।’ कामत ने कोर्ट में उस फैसले को भी पढ़ा जिसमें धार्मिक प्रथाओं को किस हद तक संवैधानिक संरक्षण मिल सकता है, इसका ज़िक्र है।
संविधान के अनुच्छेद 14 और 25 का भी दिया हवाला
याचिकाकर्ता ने कहा है कि छात्राओं को हिजाब पहनने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 14 और 25 के तहत दिया गया मौलिक अधिकार है और इस्लाम के तहत यह एक आवश्यक प्रथा है।
जानें कहाँ से शुरू हुआ हिजाब विवाद
विवाद का सिलसिला तब शुरू हुआ जब 8 लड़कियां हिजाब पहनकर परीक्षा देने पहुंची। इसके बाद यह सवाल उठने लगे कि वह हिजाब पहनकर शैक्षणिक संसथान में कैसे आ सकती हैं? लड़कियों का कॉलेज और कक्षाओं में प्रवेश वर्जित कर दिया गया। अपने हक़ की मांग करते हुए मुस्लिम लड़कियां कॉलेज के सामने बैठने को मज़बूर हो गयीं। वह कहतीं, अध्यापक फोन पर तो साथ देने की बात करते हैं लेकिन सामने से आकर कोई साथ देने के लिए खड़ा नहीं होता। यहां तक की उन्हें डराया-धमकाया भी गया कि वह हिजाब पहनकर कॉलेज में न आएं। धीरे-धीरे यह विवाद इतना बड़ा कि इसकी आवाज़ उच्च न्यायालय तक पहुँच गयी।
बीते मंगलवार 8, फरवरी को इस विवाद ने बड़ा रूप ले लिया। वायरल होते हुए वीडियो में देखा गया कि जब मुस्लिम लड़की अपनी स्कूटी से उतर कॉलेज की तरफ बढ़ी तभी सैफरन शॉल ओढ़े लड़कों का समूह उसे देख “जय श्री राम” चिल्लाने लगे। उसने भी “अल्लाहु अकबर” कहकर उन्हें मुंह तोड़ जवाब दिया।
एक और वायरल वीडियो में यह भी देखा गया कि किस तरह सैफरन शॉल ओढ़े लड़कों का समूह चलती क्लास के रूम का दरवाज़ा तोड़ उसमें घुस गए और “जय श्री राम” का नारा लगाने लगा। राम ने तो कभी बैर नहीं किया फिर राम का नाम लेकर आखिर ये दकियानूसी विचारधारा के शिकार हुए युवा किसे डराने, धमकाने की कोशिश कर रहे हैं?
हिजाब के मुद्दे के साथ अब यह भी सोचना ज़रूरी हो गया है कि आखिर लोगों की मानसिक बीमारी को कैसे ठीक किया जाए ? धर्मनिरपेक्ष भारत में धर्म के नाम पर लड़ाई होना कोई पहली और नई नहीं बल्कि बेहद आम बात है, माफ़ कीजिये बिल्कुल आम हो गयी है। कर्नाटक हाई कोर्ट भी अभी किसी जवाब तक नहीं पहुँच पायी है। राजनेता से लेकर सभी जानी-मानी हस्तियां इस पर अपनी-अपनी राय दे रही हैं। कोई पूरे मसले को एक पार्टी पर थोप रहा है तो कोई धर्म को दोष देता दिख रहा है। कुरान और गीता जिसने पढ़ी नहीं, वे उनका हवाला देकर खुद के मन में बनाये हुए धर्म और विश्वास की और बेमतलब की लड़ाई लड़ रहे हैं। अब देखना है कि बड़ी बेंच इस मुद्दे पर अपना क्या फैसला सुनाती है।
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