जस्टिस सुधांशु धूलिया ने अपने फैसले में कहा कि हिजाब पहनना या नहीं पहनना, यह मुस्लिम लड़कियों की पसंद का मामला है और इस पर कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने आज हिजाब मामले में विभाजित फैसला सुनाया। दो सदस्यों वाली बेंच के बीच विचारों के मतभेद को देखते हुए अब इस मामले को तीन जजों के हवाले कर दिया गया है। जानकारी के अनुसार, बड़ी बेंच में एकमत से या फिर बहुमत के साथ ही यह फैसला हो सकेगा।
जस्टिस हेमंत गुप्ता ने अपना फैसला सुनाते हुए कर्नाटक सरकार की ओर से हिजाब बैन को सही करार दिया। इसके साथ ही विरोध करने वालों की अर्जी को खारिज कर दिया।
वहीं जस्टिस धूलिया ने हिजाब बैन के कर्नाटक सरकार के फैसले को गलत माना। ऐसे में दो जजों के अलग-अलग फैसले व विचारों के चलते निर्णय मान्य नहीं होगा। अब आखिरी फैसला बड़ी बेंच की ओर से ही किया जाएगा।
बता दें, यह फैसला कर्नाटक उच्च न्यायालय के 15 मार्च के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आया है। उच्च न्यायालय द्वारा उडुपी में प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों में पढ़ रही मुस्लिम लड़कियों द्वारा कक्षाओं में हिजाब पहनने के अधिकार की मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था।
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हिजाब केस को लेकर जस्टिस सुधांशु धूलिया ने क्या कहा?
जस्टिस सुधांशु धूलिया ने अपने फैसले में कहा कि हिजाब पहनना या नहीं पहनना, यह मुस्लिम लड़कियों की पसंद का मामला है और इस पर कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए। उन्होंने कर्नाटक सरकार की ओर से शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर रोक के फैसले को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि छात्राओं की पढ़ाई उनके लिए अहम है। हिजाब पर बैन जैसे मुद्दे से उनकी पढ़ाई प्रभावित हो सकती है।
यह बहुत ही साधारण बात है कि जो लड़कियां गाँवो या अर्ध शहरी क्षेत्रों में रहती है उन्हें किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। स्कूल जाने से पहले उन्हें घर में अपनी मम्मी का खाना बनाने और कपड़े धोने व घर के अन्य कामों में मदद करनी होती है। क्या हम उनकी ज़िंदगी किसी तरह से आसान बना रहें हैं।
'A Matter Of Choice, Girls' Education Most Important Question' : Justice Sudhanshu Dhulia While Setting Aside Karnataka Hijab Ban
#SupremeCourtOfIndia #hijab pic.twitter.com/SKk97SVQ7z— Live Law (@LiveLawIndia) October 13, 2022
गौरतलब है कि हिजाब बैन के खिलाफ अपील करने वाले पक्ष की ओर से भी दलील दी गई थी कि यह महिला अधिकार से जुड़ा मामला है, इसे कुरान या इस्लाम से नहीं जोड़ना चाहिए।
“इस विवाद के निर्धारण के लिए #हिजाब पहनना #ईआरपी (एंटरप्राइज रिसोर्स प्लैनिंग) है या नहीं, यह आवश्यक नहीं है। अगर विश्वास ईमानदार है, और यह किसी और को नुकसान नहीं पहुंचाता है, तो कक्षा में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के लिए कोई उचित कारण नहीं हो सकता है” – जस्टिस धूलिया
“एक पूर्व विश्वविद्यालय की छात्रा को अपने स्कूल के गेट पर हिजाब उतारने के लिए कहना, उसकी प्राइवसी और गरिमा पर आक्रमण है।”
“यह स्पष्ट रूप से भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) और 21 के तहत उन्हें दिए गए मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।”
हिजाब केस को लेकर जस्टिस गुप्ता का बयान
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा, “प्रत्येक धर्म की प्रथाओं की जांच केवल उस धर्म के सिद्धांतों के आधार पर की जानी चाहिए। सिख धर्म के अनुयायियों की आवश्यक धार्मिक प्रथाओं को इस्लामिक आस्था के विश्वासियों द्वारा #हिजाब / सिर पर स्कार्फ पहनने का आधार नहीं बनाया जा सकता है।”
आगे कहा, “धार्मिक विश्वास को राज्य के धन से बनाए गए एक धर्मनिरपेक्ष स्कूल में नहीं ले जाया जा सकता है।”
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सुप्रीम कोर्ट द्वारा हिजाब विवाद पर हो चुकी है बहस
लाइव हिंदुस्तान की प्रकाशित रिपोर्ट में हिजाब केस पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा किये गए विवाद को लेकर बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट में हिजाब विवाद पर काफी बहस देखने को मिली थी। अदालत में हिजाब समर्थकों ने जनेऊ, क्रॉस, कृपाण और कड़ा जैसे प्रतीकों का उदाहरण देते हुए कहा था कि इन्हें पहनने पर कोई रोक नहीं है। हालांकि इन दलीलों का सरकार के वकीलों ने विरोध करते हुए कहा था कि ऐसा कहना गलत है। ये प्रतीक ड्रेस के ऊपर से नहीं पहने जाते हैं।
अदालत ने भी इन प्रतीकों से हिजाब की तुलना को गलत माना था। बता दें कि कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी, न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित और न्यायमूर्ति जेएम खाजी की पीठ ने पहले माना था कि ड्रेस कोड लागू करने के फैसले पर छात्र आपत्ति नहीं कर सकते हैं। यह किसी भी संस्थान का अधिकार है कि वह ड्रेस पर नियम बना सके।
अंत में बात फिर वहीं आ गयी कि यह “चॉइस की बात है”, जिसका हवाला जस्टिस धूलिया ने भी अपने फैसले में दिया। किसी को क्या पहनना है, इसका अधिकार तो संविधान भी देता है। अब संविधान द्वारा दिए गए अलग-अलग अधिकारों को अलग-अलग जगहों पर रखकर फैसला सुनाने की कोशिश की जा रही है। विवाद और मतभेदों के बीच बड़ी बेंच का क्या फैसला आता है, वह भी बहुत प्रश्नीय होगा।
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