भारत को खुले में शौच से मुक्त करने के लिए भारत सरकार 2 अक्टूबर 2014 से स्वच्छ भारत अभियान चला रही है। सरकारी योजनाओं में शौचालय निर्माण की बात तो जोर-शोर से की जाती है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही तस्वीर हमारे सामने रख रही है। पिछले तीन वर्षों से इसको लेकर काफी काम किया जा रहा है, लेकिन अभी भी कहीं बना ही नहीं तो कहीं दूसरी क़िस्त के इन्तजार में अधूरा पड़ा है और लोग खुले में शौच जाते हैं। खुले में शौच का मतलब है कि जब लोग शौचालय का उपयोग करने की बजाय खुले स्थानों में, यानी खेतों, जंगलों, झाड़ियों, झीलों और नदियों में शौच करते हैं। केंद्र सरकार की योजना खुले में शौच जाने के बजाय घर में ही शौचालय बनवाया जाय वाकई काबिल तारीफ़ है लेकिन जब लोगों को बाहर जाने से मुक्ति मिल जाये तभी सफल होगी।
ललितपुर जिले के ब्लाक महरौनी, गांव कुम्हैडी मोहल्ला बगिया में अभी भी 20 परिवार ऐसे हैं जिनके पास शौचालय नहीं हैं और बाहर जाने को मजबूर हैं। सबसे ज्यादा बाहर जाते समय दिक्कतें आती हैं। बार- बार खड़ा होना पड़ता है अगर किसी के खेत में जाते हैं तो लोग गाली-गलौज करते हैं और जाने नहीं देते। शौचालयों का अभाव महिलाओं की सेहत पर भारी पड़ रहा है। हिंसा और उत्पीडऩ की आशंका के चलते महिलाएं दिन निकलने से पहले शौच जाने के लिए मजबूर हैं। यही नहीं, दिन के वक्त वे जरूरत से बहुत कम पानी पीती हैं, सिर्फ इसलिए ताकि उन्हें शौच के लिए नहीं जाना पड़े।
प्रेम देवी ने बताया कि किसी के खेत में जाओ तो कहते हैं हमारी खड़ी फसल में मत जाओ और बच्चो को कहाँ भेजे अगर अकेले कहीं भेज दें तो जानवर मार डालें किसी को पता नहीं चलेगा। प्रधान कहते हैं कि तुम लोग ने हमें वोट नहीं दिया है। बाबूलाल का कहना है कि प्रधान से कई बार मिला वह कहते हैं न बना था शौचालय न तुम्हारे यहाँ बनेगा। हम परिवार में तीन लोग हैं सब बाहर जाते हैं। महिला पुरुष का एक ही तरफ जाना है महिलाएं बैठी रहती हैं जब कोई पुरुष दिखता है तो उनको उठाना पड़ता है जिससे काफी दिक्कत होती है। जिस वजह से लोटा लेकर भोर के अँधेरे में निकलना पड़ता है जिससे किसी की किसी पर नजर न पड़े। यही सोचकर रात में ही जाते हैं लेकिन बच्चों को कहाँ भेजें उनको तो डर लगा रहता है कि कहीं कोई जानवर न मार दे। खेतों में अन्ना जानवर घूमते रहते हैं।
सरकार द्वारा जनपद में करोड़ों खर्च कर ग्रामीण इलाको को स्वच्छता के लिए प्रयास किया जा रहा है लेकिन फिर भी प्रशासन गांवो की स्थिति बदलने में कामयाब नहीं हो सका। कई ग्राम पंचायतों में शौचालय की बहुत शिकायते हैं जहां शौचालय निर्माण नहीं हो पाया है। सुबह होते ही लोटा लिए बाहर जाते दिखाई देते हैं लोग। घर में शौचालय न होने से महिलाएं सकुचाती हुई सुबह होते ही लोटा व बोतल लेकर बाहर जाती दिखाई देती है। जबकि अफसरों का दावा है कि गांवो में शौचालय बनाए गए हैं।
चित्रकूट जिले के खिचड़ी कालोनी में कई घरों के शौचालय अधूरे पड़े हैं ऐसा नहीं है की लोग शौचालय बनवाने से खुश नहीं हैं लोग काफी खुश हैं लेकिन अधूरा होने की वजह से उनके काम का नहीं है। लोगों का कहना है जिस बात से हम डरते थे की खुले में जाते हैं शौचालय बन जाता तो ठीक था सरकार ने शौचालय तो बनवा दिया| लेकिन अधूरा अभी भी है जिससे हमारे स्वास्थ्य पर वैसा ही असर पड़ रहा है क्योंकि अभी भी हम खुले में ही शौच करते हैं।
खिचड़ी कालोनी की संगीता ने बताया कि बहुत दूर जाना पड़ता है लगभग तीन किलोमीटर लोग गाली देते हैं। रिंकी ने बताया की हमें लाज शर्म छोडकर खुले में बैठना पड़ता है। अगर दूसरी क़िस्त मिल जाती तो शौचालय पूरा हो जाता। वहीँ मुकुन्दलाल प्रधानपति का कहना है कि पैसा प्रशासन से स्वीकृति होकर आ गया है जल्दी काम शुरू होगा। इस बुढ़ापे में बाहर शौच जाना पड़ता है। कई बार मेड़ पर गिरकर चोटहिल भी हो चुके हैं, लेकिन मजबूरी है बाहर शौचालय जाना ही पड़ेगा| क्योंकि गांव में एक भी शौचालय नहीं बनवाया गया। शौचालय न होने से हम महिलाओं को भी शौच के लिए जंगल जाना पड़ता है। हमे भी शर्म आती है, लेकिन क्या करें पिछले कई वर्षो से शौचालय बनवाने की मांग कर रहे हैं लेकिन कोई सुनने वाला नहीं। ये तो सिर्फ उदहारण है ऐसे कई गाँव हैं जहाँ अभी शौचालय नहीं बना या अधूरा पड़ा हुआ है और लोग लोटा लेकर बाहर जाते दिख जाते हैं।