महिला जब पहली बार माँ बनती है, उसमें उसकी कितनी मर्जी होती है? वह मानसिक रूप से तैयार है या नहीं? यह बात पूछी नहीं जाती। ग्रामीण स्तर पर आज भी रूढ़िवादी सोच हावी है। शादी को साल भर नहीं होते की लोग बहू का पेट निहारने लगते हैं। कहते हैं बहू का पांव भारी नहीं हुआ अभी तक या फिर गोद नहीं भरी। उनके मन में तरह-तरह के सवाल उठने लगते हैं, कहीं कोई दिक्कत तो नहीं? पढ़ने-लिखने की उम्र में ही शादी कर दी जाती है। लड़कियां पूरी तरह से तैयार भी नहीं होती हैं कि ऊपर से बच्चे की ख्वाहिश। इन्हीं कशमकश से भरे सवालों की कहानी है हमारे इस बार के शो में। सुनिए महिलाओं से ही उनकी आपबीती।
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