प्रयागराज के इसौटा गांव में 30 वर्षीय दलित मजदूर देवी शंकर की संदिग्ध हत्या और अधजली लाश मिलने की घटना ने समाज, सियासत और संविधान—तीनों को झकझोर कर रख दिया है।क्या इंसाफ बचेगा या फिर दबा दिया जाएगा?
दलित की अधजली लाश और गांव में सनसनी
प्रयागराज के करछना थाना क्षेत्र के इसौटा गांव में 13 अप्रैल 2025 को जो हुआ, उसने न सिर्फ एक दलित परिवार की दुनिया उजाड़ दी बल्कि समाज की संवेदनाओं को भी झकझोर कर रख दिया। 30 वर्षीय मजदूर देवी शंकर जो तीन बच्चों का बाप और अपने बूढ़े मां-बाप का इकलौता सहारा था। 12 अप्रैल को गेहूं की मड़ाई के बहाने गांव के ही कुछ लोगों के साथ निकला। अगली सुबह उसकी अधजली लाश गांव के बाहर बगीचे में मिली। गांव वालों का कहना है कि रात को बगीचे में आग जलती दिखी थी लेकिन डर के कारण कोई पास नहीं गया। परिजन और ग्रामीणों ने साफ आरोप लगाया है कि देवी शंकर को गांव के छुट्टन सिंह और उसके साथियों ने पहले ले जाकर जिंदा जलाया। मामला सिर्फ हत्या का नहीं है बल्कि उस दलित दर्द का है जो आए दिन किसी न किसी को निगल रहा है।
अंबेडकर जयंती के ठीक पहले हुई यह घटना
बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर की जयंती से ठीक पहले हुई यह घटना एक गंभीर संकेत है। क्या आज भी दलित समाज को काम के बहाने बुलाकर जिंदा जलाया जा सकता है और हम इसे ‘सामान्य अपराध’ मान लें? क्या हमारे गांवों में अभी भी जाति के नाम पर जान लेने की इजाजत मानसिक रूप से मौजूद है? जब सत्ता और प्रशासन की चुप्पी अपराधियों की ढाल बन जाती है, तब संविधान की आत्मा कराह उठती है।
शव मिलने के बाद गांव में गुस्सा फूट पड़ा। दो घंटे तक शव को पुलिस को नहीं उठाने दिया गया। ये विरोध सिर्फ हत्या के खिलाफ नहीं था बल्कि उस व्यवस्था के खिलाफ था जो आज भी कमजोर को न्याय से दूर रखती है।
मुख्य आरोपी फरार
पुलिस ने नामजद शिकायत के आधार पर सात में से छह आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। खबर लिखे जाने तक मुख्य आरोपी छुट्टन सिंह अब भी फरार है। एसपी करछना के मुताबिक हत्या के बाद शव जलाया गया है लेकिन क्या देवी शंकर को जिंदा जलाया गया। इसका जवाब पोस्टमॉर्टम से ही मिलेगा। सवाल है क्या जांच निष्पक्ष होगी? क्या दबंग आरोपी पर वैसी ही कार्रवाई होगी जैसी कमजोरों पर होती है?
क्या कहते हैं नेताओं के बयान?
घटना सामने आते ही बसपा प्रमुख मायावती ने इसे सामंती ताकतों की करतूत बताया। वहीं अखिलेश यादव ने इसे सत्ता के प्रश्रय और अहंकार की उपज कहा। दोनों नेताओं के बयान तीखे हैं लेकिन क्या वो इस पीड़ित परिवार की लड़ाई में जमीन पर भी साथ देंगे? क्या ये प्रतिक्रियाएं संवेदना हैं या आने वाले चुनावों की रणनीति? यह भी ध्यान देने लायक है कि सरकार की ओर से अब तक कोई ठोस बयान या मुआवजा घोषणा सामने नहीं आई है।
कानून की नजर में, क्या सब बराबर हैं?
क्या कानून की नजर में सब बराबर हैं का जवाब ‘नहीं’ है। देवी शंकर अब नहीं है पर उसकी जलती हुई देह से उठता धुआं हमसे कई सवाल पूछ रहा है। क्या न्याय सिर्फ रसूखदारों के लिए है? क्या दलितों के लिए संवेदनाएं मौसमी हैं? और क्या सरकार की चुप्पी उसके पक्ष को जाहिर कर रही है? आज जरूरत है कि हम इन सवालों को सिर्फ बहस तक न रखें बल्कि सड़कों से सदनों तक पहुंचाएं, वरना कल फिर कोई देवी शंकर इसी तरह जला दिया जाएगा और हम फिर एक दुखद खबर का सामना करेंगे। अब आप ही बताइए, क्या वाकई इस देश में हर इंसान बराबर है? दलित की अधजली लाश, गांव में सन्नाटा, सियासत में तूफान… क्या न्याय बचेगा या दब जाएगा?