सीएम पटेल ने कहा कि “जब लड़की घर छोड़कर चली जाती है तो उसका परिवार टूट जाता है और समाज का सामना करने में सक्षम नहीं होता है। माता-पिता अपने बच्चों का पालन-पोषण करते हैं, इसलिए उनकी सहमति अनिवार्य की जानी चाहिए। मेरे पास ऐसे कई मामले आए हैं, जहां लड़कियां अपने माता-पिता की इच्छा के खिलाफ भाग गईं और बाद में उन्हें पछताना पड़ा।’
गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल ने कहा कि उनकी सरकार “संविधान के दायरे में” प्रेम विवाह में माता-पिता की सहमति को अनिवार्य बनाने की संभावना पर विचार करेगी – यह बयान उन्होंने इस रविवार को दिया।
यह फैसला पुरुष प्रधान समाज का एक और उदाहरण है जहां एक बार फिर महिलाओं पर ही पाबंदी लगाने की योजना बनाई जा रही है।
सीएम पटेल ने रविवार को मेहसाणा जिले के नुगर गांव में छात्रों को सम्मानित करने के लिए पाटीदार समुदाय के एक कार्यक्रम में यह टिप्पणी की थी। “(कार्यस्थल पर) आते समय, (राज्य के स्वास्थ्य मंत्री) रुशिकेशभाई पटेल मुझसे कह रहे थे कि हमें लड़कियों के भागने के मामलों पर दोबारा गौर करना चाहिए और सभी (पहलुओं) का अध्ययन किया जाना चाहिए… इसलिए यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ किया जा सकता है कि इसमें (प्रेम विवाह) माता-पिता की सहमति हो,” सीएम ने कहा।
आगे कहा, ”अगर संविधान बाधा नहीं बनेगा तो हम उसके लिए अध्ययन कराएंगे और हम यह भी प्रयास करेंगे कि इसमें अच्छे नतीजे हासिल किये जा सकें।”
यह बयान यह कहने के लिए काफी है कि किस तरह से महिलाओं को एक तस्वीर में चित्रित किया जा रहा है, वहीं उस तस्वीर में महिला से परे पुरुष की तस्वीर को नहीं रखा जा रहा जो उसमें शामिल है। यह नहीं कहा जा रहा कि पुरुष, महिला को ले गया, ये नहीं कहा जा रहा कि उसकी वजह से परिवार को समाज का सामना करना पड़ेगा, ये सरकार की दोहरी बातें खत्म ही नहीं होती।
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यह हिंदू-मुस्लिम मुद्दा नहीं है
बता दें, कार्यक्रम को सरदार पटेल समूह (एसपीजी) द्वारा आयोजित किया गया था, जो एक पाटीदार समूह है जिसने 2015 में समुदाय के आरक्षण आंदोलन का नेतृत्व किया था। इसमें राज्य के पूर्व डिप्टी सीएम नितिन पटेल के अलावा कई पाटीदार नेता भी शामिल हुए थे।
सीएम की घोषणा की अहमदाबाद के जमालपुर-खड़िया निर्वाचन क्षेत्र से विपक्षी कांग्रेस विधायक इमरान खेड़ावाला ने प्रशंसा की, जिन्होंने योजना को अपना समर्थन देने के लिए सोमवार को सीएम को पत्र भी लिखा था। खेड़ावाला ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “यह हिंदू-मुस्लिम मुद्दा नहीं है बल्कि दो परिवारों से जुड़ा मामला है।”
लड़की के जाने से परिवार टूट जाता है – सीएम
सीएम पटेल ने कहा कि “जब लड़की घर छोड़कर चली जाती है तो उसका परिवार टूट जाता है और समाज का सामना करने में सक्षम नहीं होता है। माता-पिता अपने बच्चों का पालन-पोषण करते हैं, इसलिए उनकी सहमति अनिवार्य की जानी चाहिए। मेरे पास ऐसे कई मामले आए हैं, जहां लड़कियां अपने माता-पिता की इच्छा के खिलाफ भाग गईं और बाद में उन्हें पछताना पड़ा।’
कांग्रेस विधायक खेड़ावाला ने विधानसभा के आगामी मानसून सत्र में इस मुद्दे पर एक विधेयक लाने की मांग की और कहा कि वह इसका समर्थन करेंगे। “यह विधेयक लाना ज़रूरी है, क्योंकि आजकल बच्चे अपने माता-पिता के नियंत्रण में नहीं हैं। वे संवेदनहीन हो गए हैं,” उन्होंने कहा।
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विवाह कानून में संशोधन की बात कब आई?
जानकारी के अनुसार, सीएम पटेल द्वारा रविवार को की गई घोषणा खेड़ावाला की पार्टी सहयोगी और विधायक गेनीबेन ठाकोर द्वारा माता-पिता की सहमति को शामिल करने के लिए राज्य के विवाह कानून में संशोधन के लिए विधानसभा में भाजपा विधायक फतेसिंह चौहान की मांग को दोहराने के चार महीने बाद आई।
दोनों विधायकों ने मांग की थी कि गुजरात विवाह पंजीकरण अधिनियम, 2009 में बदलाव किया जाए ताकि प्रेम विवाह को उसी तालुका में पंजीकृत किया जा सके जहां लड़की रहती है, स्थानीय गवाहों की उपस्थिति में और माता-पिता की सहमति से।
सरकार द्वारा प्रस्तुत की गई इस पूरी विचारधारा में या तो महिला या लड़की के फैसले को गलत बताया जा रहा है, या ये कहा जा रहा है कि सारी गलती उसकी है। उसकी ज़िम्मेदारी समाज और परिवार को समेटने की है, वह खुद के लिए फैसले नहीं ले सकती, सिर्फ परिवार ही उसके लिए फैसला लेगा और तभी उसके लिए सब कुछ सही रहेगा। यही सरकार का रास्ता है, मामलों को रोकने का।
पुरुष प्रधान वाले समाज की सरकार आखिर और कहेगी ही क्या? उसने तो हमेशा से महिलाओं को बांधने के बारे में ही सोचा है और उसे बांधते आया है। अब ये प्रेम-विवाह में भी वह वही करने की कोशिश कर रहा है। महिला अपनी मर्ज़ी से ज़िंदगी भी नहीं जी सकती। अपने लिए स्वयं साथी का चुनाव भी नहीं कर सकती, क्योंकि समाज के अनुसार उसके फैसले समाज के विरुद्ध है, गलत है, अमान्य है।
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