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वो कहते हैं न कि लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, और कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। कुछ ऐसा ही जीवन रहा है चित्रकूट ज़िले के खांच गाँव की रहने वाली मीरा भारती का। मीरा के जीवन का संघर्ष छोटी सी ही उम्र से शुरू हो गया था जब उन्हें शादी के बंधन में बाँध दिया गया था। लेकिन उन्होंने अपने भविष्य की लकीरें भी खुद ही लिखीं और ससुराल वालों की प्रताड़ना को पीछे छोड़ उन्होंने वापस अपने घर आकर अपनी पढ़ाई पूरी करने की ठानी। मीरा के एक मामूली अल्पसंख्यक लड़की से आज जिला पंचायत सदस्य बनने के इस सफर पर पेश है हमारी ये ख़ास है पेशकश।
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