चित्रकूट नाम सुनने पर आपके मन में सबसे पहला ख्याल चित्रकूट के प्रसिद्ध धामों का ही आता होगा। यह होना लाज़मी भी है क्यूंकि हमारे पौराणिक कथाओं में कई बार इनका उल्लेख किया गया है। लेकिन आपको यहां सिर्फ धार्मिक ही नहीं बल्कि ऐतिहासिक कहानियां और स्थल भी मिलेंगे, जिनके बारें में अधिकतर लोग नहीं जानते। आप यह तो जानते ही होंगे की मराठों ने हमारे देश में कई महल, किले, मंदिर और बाड़वड़ियाँ बनवायीं। मध्यप्रदेश और यूपी में आपको ऐसी ही कई किले देखने को मिलेंगे, जैसे- कालिंजर किला, अजयगढ़ का किला, खजुराहो मंदिर आदि। इन जगहों पर लोग अक्सर घूमने भी आते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं की चित्रकूट में भी एक खजुराहों जैसा मंदिर है जिसे मराठों ने बनवाया था। जिसका नाम है गणेश बाग।
गणेश बाग
चित्रकूट जिला मुख्यालय से 3 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में कर्वी के देवांगना सड़क पर गणेश बाग स्थित है। जिसे स्थानीय लोगों द्वारा ‘गणेश मंदिर’ भी कहा जाता है। मराठों ने इसे खजुराहों मंदिर की शैली में बनाने की कोशिश की थी। जिसकी वजह से इसे ‘मिनी खजुराहो’ भी कहा जाता है। इस बाग का निर्माण पेशवा नरेश विनायक राव पेशवा द्वारा 1800 ईसवीं के लगभग करवाया गया था। इस बाग का इस्तेमाल पेशवाओं द्वारा गर्मियों में खेलने के लिए और पारिवारिक मनोरंजन के लिए किया जाता था।
कामुक और देवी-देवतों के उकेरे गए हैं चित्र
इसमें खजुराहों शैली पर आधारित काम और कला का सुंदर रूप से चित्रण किया गया है। पेशवा ने गणेश बाग के साथ पुरानी कोतवाली किला, गोल तालाब और नारायण बाग भी बनवाया था। गणेश बाग की दीवारों को काट-काट कर, उन पर देवी-देवताओं की मूर्तियों को गढ़ा गया है। पंच मंजिलों के समूह को पंचायतन कहा जाता है। इसमें सबसे ऊपर शिखर पर काम और कला के बहुत से भीतरी चित्र खोदे गए हैं। कुछ चित्रकारी तो खुले तौर पर कामुक मुद्रा में बनाये गए हैं और कुछ चित्र पुराणों और रामायण पर भी आधारित है। यहां पर आपको काम, योग और भक्ति का एक अद्भुत और खूबसूरत मेल देखने को मिलेगा।
मंदिर के बीच में है गहरी बावली
मंदिर की बाहरी दीवारों पर सात अश्वों के रथ पर सवार सूर्यदेव, कहीं विष्णु और अन्य देवी-देवताओं के चित्र बनाये गए हैं। मंदिर के निर्माण में नागर शैली का प्रयोग किया गया है। जिसकी वजह से गणेश बाग को मिनी खजुराहो कहा जाता है। नागर शैली की विशेषता है कि ऊँची जगह बनाकर ही मूर्ति बनाई जाती है। यहां के मंदिर में बनी मूर्तियां खजुराहों के मंदिर में बनी मूर्तियों की तरह ही है। साथ ही बाग में एक बावली भी है, जिसमें सात खंड है। सात में से छह खंड पाने में डूबे रहते हैं और एक खंड खुला रहता है। यह बावली गर्मियों के समय ठंडक पहुँचाने का काम करती है।
शिव मंदिर है, मुख्य आकर्षण
यहां का खुबसूरत और विशेष तरह की नक्काशी से बना शिव मंदिर इस बाग का मुख्य आकर्षण है। जिसे स्थानीय लोग ‘गणेश मंदिर’ के रूप में जानते हैं। इस मंदिर में कामुक मूर्ति कला देखने को मिल सकती है। खास कर इस मंदिर के गुंबदों पर खजुराहो मंदिर की तरह मूर्ति कला उकेरी गई है। मंदिर के बरामदे में चारों ओर से सीढि़यों से घिरा एक तालाब है जो मंदिर के सौन्दर्य को बढ़ाता है।
मंदिर के सामने है एक तालाब
मंदिर के ठीक सामने एक तालाब भी है, जिसमें दो छिद्रों से पानी आता है। इसका आकार चौकोर है। कहते हैं कि कर्वी पेशवाकालीन राजमहल से गणेश बाग तक आने का एक गुप्त रास्ता भी है। जो पेशवाओं के पारिवारिक सदस्यों के आने-जाने के लिए प्रयोग किया जाता था। यही नहीं, इसी के आस-पास पेशवाओं के आवास भी बने हैं, जो लगभग खंडहर हो चुके हैं लेकिन उनकी बनावट आज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
आप चित्रकूट के साथ कालिंजर किले का भी आनंद ले सकते हैं जो यहां से 50 किलोमीटर है। यहाँ आस-पास में जानकी कुंड, राम घाट, सती अनुसुइया मंदिर,हनुमान धारा आदि जगहें भी हैं, जहां आप घूम सकते हैं।
खुलने का समय : रोज़ सुबह 6 से शम के 6 बजे तक।
कैसे पहुंचे
ट्रेन से : चित्रकूट से सबसे नज़दीक कर्वी रेलवे स्टेशन है, जिसकी दूरी 8 किमी. है।
हवाईजहाज से : सबसे करीब खजुराहो हवाई अड्डा, बमरौली हवाईअड्डा ( इलाहबाद )
बस से : झाँसी, वाराणसी, बाँदा, इलाहबाद, फैज़ाबाद, लखनऊ, दिल्ली आदि अन्य जगहों से यहां तक आने सड़कों का अच्छा जनसंपर्क है।