बोर्ड ने अपने फैसले में कहा कि सिस जेंडर महिला द्वारा निप्पल्स को दिखाते हुए फोटो पोस्ट किया जाना प्रतिबंधित है। वहीं अगर वही फोटो उस व्यक्ति द्वारा की जाती है जो अपनी पहचान गैर-बाइनरी के रूप में करता है तो उन्हें वह फोटो पोस्ट करने की अनुमति है।
फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अब शायद ट्रांसजेंडर और गैर-बाइनरी उपयोगकर्ता खुले तौर पर अपने निप्पल्स को बिना किसी रोक-टोक या बैन के प्रदर्शित कर सकते हैं लेकिन इसकी आज़ादी उन महिलाओं को नहीं है जिन्हें जन्म के साथ ही महिला की पहचान दी गयी थी। उनके पास अपने निप्पल्स को फ्लॉन्ट / इठलाकर बिना किसी पाबंधी के दिखाने की आज़ादी नहीं है और न इस पर विचार किया गया है।
नग्न छाती वाली तस्वीरें पोस्ट करने को लेकर मेटा ने तकरीबन एक दशक पहले इस पर प्रतिबंध लगाया था। आज एक दशक बाद मेटा ओवरसाइट बोर्ड ने अपने नियम को बदलने की बात कही है जिसमें फिलहाल ट्रांसजेंडर और गैर-बाइनरी लोगों को ही अपने निप्पल्स दिखा पाने की इज़ाज़त दी गयी है यानि अब इन सीमित जेण्डरों में उनके द्वारा निप्पल्स दिखाने को अश्लील नहीं माना जाएगा।
यह बात कोई नई नहीं है कि अगर कोई महिला अपना निप्पल दिखाती है तो उसे अश्लीलता में गिना जाता है। वहीं जब पुरुष टाइट कपड़े पहन या अर्धनग्न होकर अपने निप्पल्स दिखाते हैं वह अश्लीलता नहीं कहलाती। पुरुष अपने शरीर का प्रदर्शन बिना किसी पाबंधी के खुलेतौर पर करता है। उनकी इस आज़ादी पर पाबंधी नहीं लगाई जाती है लेकिन अगर महिला अपने शरीर पर अपना हक़ जताते हुए उसे अपने अनुसार प्रदर्शित करने की चाह रखती है या करती है तो उस बंदिशे लग जाती हैं।
कई बार आपने देखा होगा, जब महिलाएं खुलें में बच्चों को दूध पिलाती हैं तो उनसे कहा जाता है कि वह अपने स्तन का प्रदर्शन कर रही हैं। उन्हें यह काम किसी ऐसी जगह पर करना चाहिए जहां कोई उन्हें देख न रहा हो। महिलाओं के शरीर के अंगो और उसके अधिकारों को समाज द्वारा बखूबी बाँध दिया गया है जहां वह खुद भी अपने शरीर पर अधिकार नहीं जता पातीं।
महिलाओं के शरीर को लेकर हमेशा से सबकी रुचि रही है। महिला के शरीर का कौन-सा अंग उसे छुपाना चाहिए, क्या नहीं दिखाना चाहिए इसे लेकर महिला को छोड़कर हर कोई अपनी राय देता दिखता है और पाबंदियां लगाता है कि महिलाएं अपने शरीर के इस भाग को तो बिलकुल दिखा ही नहीं सकती। अगर दिखाया तो वह चरित्रहीन है या वह वासना को बढ़ावा दे रही है।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे फेसबुक व इंस्टाग्राम पर जब भी किसी महिला ने टॉपलेस फोटो पोस्ट की है तो तुरंत ही उसे अश्लील कहते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स द्वारा हटा दिया जाता है जो अब मेटा द्वारा बदले गए नियमों के बाद सीमित जेंडरों पर लागू नहीं होगा।
ये भी पढ़ें – अंतर्राष्ट्रीय वकीलों ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ की आपराधिक शिकायत दर्ज़
फ्री निप्पल्स को लेकर बोर्ड का संकुचित फैसला
बता दें, मेटा ओवरसाइट बोर्ड विशेषज्ञों का एक स्वतंत्र निकाय है जिसे मेटा के सीईओ मार्क जुकरबर्ग सामग्री मॉडरेशन ( Meta CEO Mark Zuckerberg ) और सेंसरशिप नीतियों के लिए कंपनी का “सुप्रीम कोर्ट” कहा है। जुकरबर्ग ने फेसबुक और इंस्टाग्राम को ट्रांसजेंडर या नॉन-बाइनरी के रूप में अपनी पहचान रखने वाले किसी भी व्यक्ति के टॉपलेस फोटो पर से प्रतिबंध हटाने का आदेश दिया है। ट्रांसजेंडर या नॉन-बाइनरी, उन्हें कहा गया जो महिला या पुरुष किसी में भी अपने आपको नहीं पहचानते हैं।
बोर्ड ने अपने फैसले में कहा कि सिस जेंडर (cisgender) महिला द्वारा निप्पल्स को दिखाते हुए फोटो पोस्ट किया जाना प्रतिबंधित है वहीं अगर वही फोटो उस व्यक्ति द्वारा की जाती है जो अपनी पहचान गैर-बाइनरी के रूप में मानता है तो उन्हें वह फोटो पोस्ट करने की अनुमति है।
“सिजेंडर” वह व्यक्ति होता है जिनका लिंग जन्म के समय उन्हें सौंपे गए लिंग से मेल खाता है।
कई बार हटाई गयी है टॉपलेस फोटो
बोर्ड द्वारा नियम में बदलाव को लेकर एक मामले का उदाहरण दिया गया जिसमें एक जोड़े द्वारा जो खुद को ट्रांसजेंडर व नॉन-बाइनरी के रूप में पहचानते हैं, उन्होंने टॉपलेस फोटो पोस्ट की थी और निप्पल्स को छुपाया हुआ था – जोकि सिर्फ इसलिए पोस्ट की गयी थी ताकि अन्य उपयोगकर्ता उसे फ्लैग कर पाएं।
मेटा द्वारा इनकी पोस्ट की गयी फोटो को बैन कर दिया गया था लेकिन जोड़े द्वारा जो याचिका की गयी थी, वह उसे जीत गए जिसके बाद फिर से तस्वीर को ऑनलाइन रिस्टोर कर दिया गया था।
फ्री निप्पल्स फैसले को लेकर बोर्ड की राय
बोर्ड ने कहा, “मेटा “मानव समीक्षकों” पर भरोसा करेगा, जिन्हें “उपयोगकर्ता के लिंग का जल्दी से आंकलन करने का काम सौंपा जाएगा, क्योंकि यह नीति ‘महिला निप्पल्स’ और उनकी लिंग पहचान पर लागू होती है।”
आगे कहा, नियम में प्रस्तवित परिवर्तन उन शिकायतों के जवाब में है जिनमें कहा गया था कि पुरानी नीति जेंडर-फ्लूइड (gender-fluid) उपयोगकर्ताओं के साथ भेदभाव करती है।
अपनी बात को आगे जोड़ते हुए कहा, “विरोध के संदर्भों के आधार पर अतिरिक्त निप्पल संबंधी अपवाद, जन्म देना, जन्म के बाद और स्तनपान को लेकर यहां जांच नहीं की गयी है लेकिन इसका आंकलन भी किया जाना चाहिए।”
मेटा द्वारा नियन में परिवर्तन के आदेश के बाद कई लोगों द्वारा इसे सरहाया भी गया है वहीं यह निर्णय कहीं न कहीं संकुचित भी दिखाई पड़ता है जहां सिर्फ सीमित जेंडर्स को ही अपने निप्पल्स आज़ादी से सोशल मीडिया पर प्रदर्शित करने की आज़ादी दी गयी है।
ये भी पढ़ें – लखनऊ : बुर्का पहने स्विगी डिलीवरी का बैग टांगे महिला की कहानी | Viral Pic
‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’