14 दिसंबर 2025 को नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर कड़े पुलिस बंदोबस्त के बावजूद एक हज़ार से अधिक मज़दूरों ने इस चार नए लेबर कोड के खिलाफ प्रदर्शन किया। इसमें दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के आसपास के इलाकों से आए मज़दूर शामिल थे। प्रदर्शन में शहरी, औद्योगिक और ग्रामीण क्षेत्रों के ऑटोमोबाइल, गारमेंट, इलेक्ट्रॉनिक्स, घरेलू कामगार, मनरेगा, निर्माण, एमएसएमई, गिग और स्कीम मज़दूरों ने भाग लिया।
देश के 14 मज़दूर संगठनों, यूनियनों और फ़ेडरेशनों के संयुक्त मंच मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (MASA) ने हाल में लागू किए गए चार नए लेबर कोड के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन किए। इन लेबर कोडों को मज़दूर विरोधी बताते हुए रैलियों और सभाओं का आयोजन किया गया।
इस दौरान दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों के कई प्रमुख शहरों जैसे दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, पटना, लखनऊ, बरेली, भुवनेश्वर, कुरुक्षेत्र, लुधियाना, हरिद्वार, रुद्रपुर, दावणगेरे और गुलबर्गा में “अखिल भारतीय मज़दूर अधिकार दिवस” मनाया गया। इन कार्यक्रमों के ज़रिए मज़दूरों ने अपने अधिकारों पर हो रहे हमलों के खिलाफ एकजुट होकर आवाज़ उठाई।
जंतर-मंतर पर मज़दूरों की बड़ी जुटान
बीते कल यानी 14 दिसंबर 2025 को नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर कड़े पुलिस बंदोबस्त के बावजूद एक हज़ार से अधिक मज़दूरों ने इस चार नए लेबर कोड के खिलाफ प्रदर्शन किया। इसमें दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के आसपास के इलाकों से आए मज़दूर शामिल थे। प्रदर्शन में शहरी, औद्योगिक और ग्रामीण क्षेत्रों के ऑटोमोबाइल, गारमेंट, इलेक्ट्रॉनिक्स, घरेलू कामगार, मनरेगा, निर्माण, एमएसएमई, गिग और स्कीम मज़दूरों ने भाग लिया। दिल्ली-एनसीआर में MASA के घटक संगठनों जैसे मज़दूर संघर्ष संगठन, CSTU, IMKE, IFTU-सर्वहारा, ग्रामीण मज़दूर यूनियन बिहार और बनवासु ने मिलकर इस विरोध का आयोजन किया। इसके साथ ही कई अन्य ट्रेड यूनियनों और श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए।
चार लेबर कोड पर तीखा विरोध
प्रदर्शन में ICTU, IFTU, AIFTU (न्यू), मज़दूर एकता कमेटी जैसी ट्रेड यूनियन फ़ेडरेशनों के साथ ऑल इंडिया रेलवे ट्रैकमेन यूनियन, मारुति सुज़ुकी संघर्ष समिति, बेल्सोनिका कर्मचारी यूनियन, डाइकिन वर्कर्स यूनियन, MMTC वर्कर्स यूनियन, संग्रामी घरेलू कामगार यूनियन, MNREGA मज़दूर यूनियन हनुमानगढ़, चीफ हेल्थ ऑफिसर्स यूनियन, किसान एकता केंद्र और कई छात्र-युवा संगठन शामिल रहे।
इस विरोध प्रदर्शन में वक्ताओं ने कहा कि 21 नवंबर को देशभर के श्रमिक संगठनों की आपत्तियों और चेतावनियों को नज़रअंदाज़ करते हुए मोदी सरकार ने बड़े देशी-विदेशी पूंजीपतियों के हित में चार मज़दूर-विरोधी लेबर कोड लागू कर दिए। उनके अनुसार इन कानूनों का उद्देश्य स्थायी नौकरियों को खत्म करना, “हायर एंड फायर” को बढ़ावा देना, यूनियन गतिविधियों को कमजोर करना, काम के घंटे बढ़ाना, श्रम सुरक्षा कम करना, लेबर कोर्ट और विभाग की भूमिका घटाना तथा मज़दूरों की सुरक्षा को और असुरक्षित बनाना है।
लोगों की मन की बातें
विरोध प्रदर्शन में आए लोगों से बात करने पर लोगों ने कहा कि ये चार नए लेबर कोड मज़दूरों के विरोध में है। विरोध प्रदर्शन में शामिल मज़दूरों से बातचीत के दौरान उन्होंने साफ़ तौर पर कहा कि नए चारों लेबर कोड मज़दूरों के हित में नहीं बल्कि उनके खिलाफ हैं। मज़दूरों का कहना था कि ये कानून उनके अधिकारों को मजबूत करने के बजाय उन्हें और ज़्यादा शोषण की ओर धकेलते हैं। मज़दूरों ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि नए कोड के तहत काम के घंटे बढ़ाकर 12 घंटे करने का प्रावधान किया गया है। उनका कहना था कि प्रावधान में है 12 घंटे काम को ज़्यादा घंटे काम करने का अधिकार माना जा रहा है जिसपर लोगों का था कि जब आठ घंटे काम करके भी मज़दूरों का जीवन ठीक से नहीं चल पा रहा है तो 12 घंटे काम करने से हालात कैसे बेहतर हो सकते हैं।
मज़दूरों ने नए लेबर कोड में शामिल अन्य नियमों को भी गंभीर चिंता का विषय बताया। उनका कहना था कि इससे हड़ताल करने, अपनी बात रखने और अधिकारों की मांग करने का हक़ लगभग खत्म हो जाएगा।
महिलाओं से जुड़े प्रावधानों पर बोलते हुए प्रदर्शनकारी मज़दूरों ने कहा कि नए लेबर कोड में रात के समय काम करने को समानता के नाम पर पेश किया जा रहा है लेकिन उनका सवाल था कि जब देश में महिलाएं दिन के उजाले में भी सुरक्षित नहीं हैं और उनके खिलाफ अपराध लगातार बढ़ रहे हैं तो रात में काम करने वाली महिलाओं की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित होगी। मज़दूरों ने पूछा कि अगर महिलाओं को देर रात काम करना पड़े और उन्हें किसी तरह की परेशानी या खतरे का सामना करना पड़े तो इसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा। उनका कहना था कि ऐसे हालात में 12 घंटे काम और ओवरटाइम की व्यवस्था महिलाओं के लिए बराबरी नहीं बल्कि नए जोखिम पैदा करने वाली है।
मज़दूरों ने कहा कि जो चार नए लेबर कोड है ये मज़दूरों के लिए लागू किया और किसानों के खिलाफ तीन कृषि क़ानून सरकार ने लागू किए थे ये दोनों वादे झूठे निकले हैं।
मासा की मुख्य और तात्कालिक मांगें
मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (MASA) ने अपनी मांगों के ज़रिए साफ़ किया कि मौजूदा नीतियां मज़दूरों के हितों के खिलाफ हैं और इन्हें तुरंत बदला जाना चाहिए। अभियान की प्रमुख मांगें इस प्रकार हैं –
- मज़दूरों से जुड़े अधिकारों को फिर से बहाल किया जाए और सभी मज़दूर-विरोधी श्रम क़ानूनों को वापस लिया जाए।
- मज़दूर आंदोलनों और हड़तालों पर हो रहे सरकारी दमन को तुरंत रोका जाए।
- मज़दूरों को संगठन बनाने और ट्रेड यूनियन खड़ी करने की पूरी आज़ादी दी जाए।
- ठेका और अस्थायी नौकरी की व्यवस्था खत्म कर सभी कामगारों को स्थायी रोज़गार दिया जाए।
- न्यूनतम मासिक वेतन ₹30,000 तय किया जाए और वेतन को महंगाई के हिसाब से बढ़ाया जाए।
- ग्रामीण रोज़गार योजनाओं को मज़बूत किया जाए और ₹1,000 प्रतिदिन की दर से 300 दिन का काम सुनिश्चित किया जाए।
- आठ घंटे का कार्यदिवस लागू किया जाए और मज़दूरों पर बढ़ते शोषण का विरोध किया जाए।
- गिग और प्लेटफॉर्म पर काम करने वाले मज़दूरों को भी मज़दूर का दर्जा दिया जाए और डिजिटल शोषण खत्म किया जाए।
- प्रवासी मज़दूरों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए और उनके अधिकारों को मज़बूती दी जाए।
- सभी मज़दूरों के लिए सामाजिक सुरक्षा और सम्मान के साथ जीने का अधिकार पक्का किया जाए।
- निजीकरण की नीतियों को रोका जाए और सार्वजनिक संपत्ति को कॉर्पोरेट लूट से बचाया जाए।
- समाज को बांटने और नफरत फैलाने की राजनीति बंद हो तथा फासीवादी प्रवृत्तियों के खिलाफ मज़दूर वर्ग को एकजुट किया जाए।
इन मांगों के ज़रिए MASA ने साफ़ कहा कि मज़दूरों की एकता और संघर्ष से ही उनके अधिकारों की रक्षा संभव है।
श्रम संहिताएं और मज़दूर अधिकारों पर हमला
ये नई श्रम संहिताएं भारतीय मज़दूर वर्ग द्वारा करीब सौ वर्षों में संघर्ष करके हासिल किए गए ट्रेड यूनियन अधिकारों को एक झटके में खत्म करने की क्षमता रखती हैं। मज़दूर संगठनों का कहना है कि यह प्रक्रिया मज़दूरों को अधिकारों से वंचित कर पूरी तरह असुरक्षित हालात में धकेलने की सोची-समझी कोशिश है। इससे न सिर्फ आज के मज़दूरों बल्कि आने वाली पीढ़ियों की उम्मीदों और भविष्य पर भी गहरा असर पड़ेगा। उनके अनुसार यह कोई साधारण नीतिगत बदलाव नहीं बल्कि मज़दूर वर्ग पर किया गया सीधा और संगठित हमला है जिसे केवल मज़दूरों की एकता और विरोध से ही रोका जा सकता है।
मज़दूर नेताओं ने यह भी बताया कि श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी ड्राफ्ट राष्ट्रीय श्रम एवं रोज़गार नीति (ड्राफ्ट श्रम शक्ति नीति, 2025) भी मज़दूरों के खिलाफ़ एक और कदम है। उनका कहना है कि यह नीति आधुनिक और संवैधानिक सोच के बजाय मनुस्मृति जैसी पुरानी सोच से प्रभावित है। ऐसे समय में जब देश का मज़दूर वर्ग पहले से ही कठिन दौर से गुजर रहा है। इस तरह की नीतियां हालात को और बदतर बना रही हैं। एक ओर बड़े कॉर्पोरेट घरानों का मुनाफ़ा लगातार बढ़ रहा है वहीं दूसरी ओर मज़दूरों की नौकरियां जा रही हैं, वेतन घट रहा है और काम के घंटे बढ़ाए जा रहे हैं। साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों, बैंकों और बीमा सेवाओं का तेज़ी से निजीकरण किया जा रहा है जिससे आम लोगों को मिलने वाली ज़रूरी सुविधाएं कम होती जा रही हैं।
मज़दूर एकता तोड़ने का आरोप
वक्ताओं ने आरोप लगाया कि मज़दूरों की एकजुट ताकत को कमजोर करने के लिए समाज में जानबूझकर सांप्रदायिकता, जातिवाद और अंधराष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है। उनका कहना था कि ये विभाजनकारी राजनीति मज़दूरों को उनके असली मुद्दों और शोषण के खिलाफ़ संघर्ष से भटकाने का काम करती है। इसी संदर्भ में, मासा ने नए लेबर कोड को रद्द करने, मज़दूरों द्वारा संघर्ष से हासिल किए गए अधिकारों की रक्षा करने और निजीकरण, बेरोज़गारी, महंगाई व फासीवादी हमलों के खिलाफ़ देशभर में निरंतर और निर्णायक आंदोलन तेज़ करने का आह्वान किया। प्रदर्शन के दौरान 30,000 न्यूनतम मासिक वेतन, सभी के लिए स्थायी और सुरक्षित रोज़गार तथा सभी श्रम कानूनों की सुरक्षा की मांग उठाई गई। इसी तरह के कार्यक्रम अखिल भारतीय मज़दूर अधिकार दिवस के तहत देश के अन्य हिस्सों में भी आयोजित हुए जहां मज़दूरों ने नए लेबर कोड के खिलाफ़ संघर्ष को और मज़बूती से आगे बढ़ाने का संकल्प लिया।
बता दें इससे पहले भी कई जगहों पर नए चार लेबर कोर्ड के विरोध में प्रदर्शन हुए हैं। आप नीचे दिए गए लिंक के माध्यम से देख सकते हैं।
Four New Labor Laws: चार नए लेबर क़ानून लागू, सरकार ने कहा एतिहासिक सुधार, मज़दूर संगठनों का विरोध
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