भारत में मध्यप्रदेश के इंदौर में “ग्रीन फंगस” का पहला मामला सामने आया है। हालांकि, इस पर अभी तक कोई रिसर्च नहीं की गयी है।
मध्यप्रदेश के इंदौर में “ग्रीन फंगस यानी हरा कवक” के संक्रमण का मामला सामने आया है। इससे पहले कोरोना की दूसरी लहर के बीच भारत में ब्लैक फंगस, येलो (पीला) फंगस और वाइट (सफ़ेद) फंगस के मामले दर्ज़ किये गए थे।
जानकारी के अनुसार, पहले तो मध्यप्रदेश के इंदौर में रहने वाला व्यक्ति कोरोना से ठीक हो गया था। उसके बाद उसे कुछ जाँच कराने के लिए कहा गया। डॉक्टरों को शक था कि व्यक्ति को ब्लैक फंगस म्यूकोर्मिकोसिस का संक्रमण है। जब जाँच की गयी तो उसमें सामने आया कि व्यक्ति को ग्रीन फंगस है।
द क्विंट की 18 जून की रिपोर्ट के अनुसार, व्यक्ति को 15 जून की तारीख को हवाई एम्बुलेंस के ज़रिये मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में भर्ती किया गया था।
देश में “ग्रीन फंगस” का यह पहला मामला दर्ज़ किया गया है।
क्या है ग्रीन फंगस ?
ग्रीन फंगस को एस्परगिलोसिस संक्रमण भी कहा जाता है। यह एक दुर्लभ संक्रमण है जो आमतौर पर पाए जाने वाले फंगस की प्रजाति है। जिसे डॉक्टरों की भाषा में एस्परगिलोसिस कहा जाता है। यूएस के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के अनुसार,यह घर के अंदर और बाहर दोनों जगह पाया जाता है। यह फंगस पर्यावरण में पाया जाता है। डॉक्टरों के मुताबिक़ बहुत से लोग हर दिन बिना बीमार हुए एस्परगिलोसिस जीवाणुओं में ही सांस लेते हैं।
किन्हें हो सकता है ग्रीन फंगस?
– यह फंगस आमतौर पर शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली के कमज़ोर होने से हो सकता है।
– कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली और फेफड़ों की बीमारियों से ठीक होने वाले या उससे पीड़ित लोगों में ग्रीन फंगस होने का सबसे ज़्यादा खतरा होता है।
– फेफड़ों में दिक्क्त, सांस लेने में परेशानी, स्टेरॉयड का ज़्यादा उपयोग, कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली का होना शामिल हैं।
– डॉक्टरों के अनुसार यह वजन घटाने और कमज़ोरी की वजह से हो सकता है।
– यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता।
फंगस को लेकर यह है कि एम्स के निदेशक का कहना
मई में हुई एक प्रेस कांफ्रेंस में एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा था कि एस्परगिलोसिस फंगस आमतौर पर फेफड़ों पर असर करता है। उन्होंने यह भी कहा था कि कैंडिडा, एस्परगिलोसिस, क्रिप्टोकोकस, हिस्टोप्लास्मोसिस और कोक्सीडियोडोमाइकोसिस जैसे अलग-अलग प्रकार के फंगल संक्रमण होते हैं। म्यूकोर्मिकोसिस, कैंडिडा और एस्परगिलोसिस कम रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले व्यक्ति में देखा जाता है।
पीटीआई ( प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया) के मुताबिक़ ग्रीन फंगस पर अभी ज़्यादा रिसर्च नहीं की गयी है। इस बात पर रिसर्च करने की ज़रुरत है कि क्या कोरोना से ठीक हुए मरीज़ों में ग्रीन फंगस के संक्रमण के लक्षण बाकी अन्य मरीज़ों से अलग है या नहीं।
ग्रीन फंगस के सामान्य लक्षण
यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक यह हो सकते हैं ग्रीन फंगस के सामान्य लक्षण:-
– बुखार
– छाती में दर्द
– खांसी
– खांसी में खून का आना
– सांस लेने में परेशानी
– नाक से खून बहना
– कमज़ोरी
– वजन का कम होना इत्यादि।
एलर्जी एस्परगिलस साइनसिसिस:
– उमस
– नाक का बहना
– सर दर्द
– सूंघने की क्षमता कम होना
फंगल संक्रमण को किस तरह से रोकें ?
– इसके लिए खुद की स्वछता रखना बेहद ज़रूरी है। खासतौर पर बात करते समय ( करीब से किसी से बात न करें) और शारीरिक।
– दूषित जगह या जहँ ज़्यादा पानी जमा हो, वहां न जाएँ।
– मास्क पहनकर रखें।
– अपने चेहरों और हाथों को साबुन और पानी से बार-बार धोते रहें।
डॉ. रणदीप गुलेरिया का कहना है कि, “सही नामों का उपयोग करना बेहद ज़रूरी है। अगर फंगस कुछ क्षेत्रों में बढ़ता है, तो उसका रंग अलग दिख सकता है, और एक ही फंगस को अलग-अलग रंग के लेबल से बुलाने से लोगों में भ्रम पैदा होगा। ”
ग्रीन फंगस के पहले मामले के बाद यूँ तो स्वास्थ्य मंत्रालय के तरफ से कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई है। हालांकि, कई संगठनों ने इस पर रिसर्च करना शुरू कर दिया। कोरोना की दूसरी लहर के बीच फंगस संक्रमण ने लोगों में दुगना डर भर दिया है।
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