खबर लहरिया Blog Felling of Trees and Forests: हसदेव से भागलपुर तक, पेड़ भी गिरे रहे और सच भी गिराया जा रहा 

Felling of Trees and Forests: हसदेव से भागलपुर तक, पेड़ भी गिरे रहे और सच भी गिराया जा रहा 

कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये कहा कि बिहार के भागलपुर में सरकार ने सिर्फ एक रुपये प्रतिवर्ष की कीमत पर 1,050 एकड़ ज़मीन अडानी को पावर प्लांट लगाने के लिए दे दी। उन्होंने आगे कहा ये लीज़ 33 सालों के लिए फाइनल हुई है और ज़मीन पर दस लाख से ज़्यादा आम, लीची और सागौन के पेड़ लगे हुए हैं।

Felling of trees in forest

जंगल में पेड़ों की कटाई (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

भारत में आज दो बड़े खतरे साफ नजर आ रहे हैं। जंगलों की कटाई और पर्यावरण प्रदूषित का। बिहार चुनाव सरगर्मी के बीच भागलपुर से आई खबर ने चिंता और बढ़ा दी है। यहां सड़क और विकास परियोजना के नाम पर क़रीब दस लाख पेड़ काटने की तैयारी में है। सोचिए इतनी बड़ी संख्या में पेड़ों के खत्म हो जाने का असर सिर्फ पर्यावरण पर नहीं पड़ेगा बल्कि नदियों के बहाव, खेतों की उपज और गांव की ज़िंदगी तक को बदल देगा। पहले हसदेव हरण्य, रायगढ़, झारखंड में पेड़ों की कटाई, हैदराबाद में यूनिवर्सिटी के जंगलों को काटने की कोशिश और अब वही खतरा बिहार के सामने आ खड़ा हुआ है। इसी के विरोध में पिछले कई साल से आदिवासी और स्थानीय लोग अपने जंगल और अपने अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे हैं। बिहार के भागलपुर में उस समय उथल-पुथल मच गया जब गौतम सरकार ने अडानी को 1050 ओकलैंड ग्राउंड 1 रुपये पर लीज पर रिज़र्व दिया। इस जमीन पर बड़े स्तर पर पावर प्लांट लगाने की योजना है, लेकिन इसकी कीमत पर्यावरण और आम जनता को चुकानी होगी।

आख़िर क्या था मामला ? 

यह मामला तब तेजी से बढ़ा जब बिहार से लगातार एक खबर सोशल मीडिया में तेजी से चल रही थी। खबर ये चल रही थी कि बिहार के भागलपुर में दस लाख पेड़ों की कटाई की जा रही है और वो ज़मीन एक रुपए प्रति एकड़ में अडानी को दी गई है। इसी के साथ सोशल मीडिया पर वहां के ग्रामीण लोगों से कुछ पत्रकार बात करते दिखे। उस वीडियो में लोगों द्वारा ये कहा जा रहा था कि उनका पूरा मुआवजा नहीं मिला है। किसी को कम मुआवजा मिला किसी को ज़्यादा। उन्होंने ये भी कहा कि “ज़मीन जो लिया तो उसमें सिग्नेचर (हस्ताक्षर) कराया गया वो कलम के बजाय पेंसिल से कराया गया।”  

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Molitics (@moliticsindia)

इसी से संबंधित कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने 15 सितंबर को दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये कहा कि बिहार के भागलपुर में सरकार ने सिर्फ एक रुपये प्रतिवर्ष की कीमत पर 1,050 एकड़ ज़मीन अडानी को पावर प्लांट लगाने के लिए दे दी। उन्होंने आगे कहा ये लीज़ 33 सालों के लिए फाइनल हुई है और ज़मीन पर दस लाख से ज़्यादा आम, लीची और सागौन के पेड़ लगे हुए हैं।  

उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में जब चुनाव हुए तो उससे पहले पावर प्लांट का प्रोजेक्ट और धारावी गौतम अडानी को दे दिया। इसी तरह, झारखंड और छत्तीसगढ़ में भी चुनाव से पहले गौतम अडानी को प्रोजेक्ट दिए गए। पवन खेड़ा ने आरोप लगाया कि किसानों को धमकाकर, जबरदस्ती पेंसिल से दस्तखत कराए गए और उनकी जमीन ली गई। फिर इसी प्लांट से निकली बिजली बिहार के लोगों को 6.75 रुपए/यूनिट के दर से बेची जाएगी, जबकि महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के लिए ये दर 3 से 4 रुपए है।

“राष्ट्र सेठ गौतम अडानी को 1 रुपये में जमीन दी”

न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा, “बिहार में भागलपुर के पिरपैंती में ‘राष्ट्र सेठ’ गौतम अडानी को पावर प्लांट लगाने के लिए 1 रुपये प्रति वर्ष के हिसाब से 33 साल के लिए 10 लाख पेड़ और 1,050 एकड़ जमीन दी गई है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज बिहार दौरे पर जा रहे हैं, वहां के गांव वालों को नजरबंद रखा गया है, ताकि वे प्रदर्शन न कर सकें। इसकी लिस्ट लंबी है और जब भी बीजेपी को लगता है कि वह चुनाव हारेगी, वह उससे पहले ही गौतम अडानी के हाथों में गिफ्ट दे देती है।”

छत्तीसगढ़ हसदेव अरण्य में भी पेड़ों की कटाई 

फोटो साभार: एक्स (ट्विटर)

यह न केवल जैव विविधता से भरपूर है, बल्कि यहां लाखों पेड़ हैं जो पूरे भारत के लिए ऑक्सीजन का काम करते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से हसदेव जंगल में लगातार पेड़ों की कटाई हो रही है। कोयला खनन के नाम पर इस क्षेत्र को उजाड़ा जा रहा है। स्थानीय आदिवासी, किसान और पर्यावरण कार्यकर्ता बार–बार विरोध करते हैं, धरना देते हैं, पदयात्रा करते हैं। लेकिन उनकी आवाज़ को अक्सर अनसुना कर दिया जाता है।

फोटो साभार: एक्स (ट्विटर)

 छत्तीसगढ़ के पाँचवी अनुसूचित क्षेत्र, हसदेव में ग्रामसभा ने खनन की सहमति नहीं दी बावजूद इसके आदिवासियों की जमीन छीनी जा रही है। अदानी की विकास योजना तेजी से आदिवासियों का सब कुछ छीन रही है । 

फोटो साभार: एक्स (ट्विटर)

सरकार दावा करती है कि वह आदिवासी अधिकारों और पर्यावरण की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और ही कहती है। स्थानीय आदिवासियों की सहमति के बिना जिस तरह अडानी समूह को कोयला खनन के लिए हजारों हेक्टेयर जंगल सौंप दिए गए वह लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है। क्या हरे-भरे जंगलों की क़ीमत सिर्फ कोयले की खदानों से वसूली जा सकती है?

यह खदान भी राजस्थान की है और MDO अडानी का है। इस खदान का 95 प्रतिशत क्षेत्र जंगल है और इसमें 1742 हेक्टेयर वन भूमि में पांच लाख से अधिक पेड़ काटे जाएँगे। ध्यान देने वाली बात ये है कि पेड़ कटाई के मामले भी छत्तीसगढ़ में चुनाव के आसपास ही आई थी। 

छत्तीसगढ़ का  रायगढ़ भी पेड़ कटाई से अछूता नहीं 

Tree felling in Raigarh

रायगढ़ में पेड़ों की कटाई (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के तमनार तहसील के मुड़ागांव और सरायटोला गांवों में जून 2025 को लोगों के लाख विरोध करने पर भी 26 और 27 जून 2025 को कम से कम 5,000 पेड़ काटे गए। इन गाँवों में गारे पाल्मा सेक्टर II कोयला ब्लॉक में कोयला खदान स्थापित करने के लिए बड़े पैमाने में पेड़ों को काटा जा रहा है। यह खदान महाराष्ट्र राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी लिमिटेड (महाजेनको-MAHAGENCO) के लिए अडानी समूह द्वारा संचालित की जाएगी। दरअसल मुडागांव में एक उद्योग समूह की एक परियोजना के लिए जंगल की कटाई शुरू की गई है। इस कार्य के लिए सैकड़ों पुलिस बल की तैनाती की गई थी। स्थानीय ग्रामीणों का कहना था कि इस क्षेत्र में घने जंगल और जैव-विविधता से भरपूर वन क्षेत्र हैं, जो न केवल पर्यावरणीय संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि स्थानीय आदिवासी समुदायों की आजीविका का भी आधार है। इसमें ग्रामीणों का आरोप है कि कटाई के लिए उनकी सहमती नहीं ली गई और न ही इसकी पर्याप्त जानकारी दी गई।

द वायर के रिपोर्ट के अनुसार, अनुमान है कि इस खदान से कम से कम 655 मिलियन मीट्रिक टन कोयला प्राप्त होगा, लेकिन परियोजना से 14 गांव सीधे प्रभावित होंगे और इसके लिए लगभग 2,584 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया जाना है। इसमें लगभग 215 हेक्टेयर वन भूमि है जिसमें पेड़ों और अन्य वनस्पतियों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया जाएगा। इस क्षेत्र में छह अन्य कोयला खदानें पहले से ही चालू हैं तथा चार और खदानों पर काम चल रहा है। स्थानीय पुलिस ने 26 जून को एक दिन के लिए सात लोगों को अवैध रूप से हिरासत में रखा। इसके बाद भी वहां के निवासियों द्वारा विरोध प्रदर्शन जारी रखा गया।

हैदराबाद विश्वविद्यालय का मामला

एक और ताज़ा उदाहरण है हैदराबाद विश्वविद्यालय का। अप्रैल 2025 में यहां विकास के नाम पर चार सौ एकड़ क्षेत्र के पेड़ काटे जा रहे थे। जब छात्रों ने विरोध किया, तब कहीं जाकर कोर्ट ने मामले पर स्टे लगाया। सोचिए, अगर छात्र न बोलते नहीं लड़ते तो इतने सारे पेड़ चुपचाप काट दिए जाते। उसी विरोध प्रदर्शन को करने पर छात्राओं के ऊपर लाठी भी बरसाई गई। इससे यह भी साफ होता है कि पर्यावरण की रक्षा के लिए जागरूकता और संघर्ष की कितनी ज़रूरत है।

Picture of trees being cut at Hyderabad University

हैदराबाद यूनिवर्सिटी में पेड़ों को काटने के दौरान की तस्वीर (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

अगर हम चुप रहेंगे, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ भी नहीं बचेगा – न पेड़, न जंगल, न शुद्ध हवा। यह भी एक सवाल है कि विश्वविद्यालय जैसे जगहों का जंगल काट देने का मकसद क्या है ? विश्वविद्यालय के कांचा गाचीबोवली के वन सरीखे क्षेत्र में तेलंगाना स्टेट इंडस्ट्रियल इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन को आवंटित किए जाने के खिलाफ छात्र और पर्यावरणविद मिलकर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। कॉरपोरेशन इस भूमि की नीलामी करके एक आईटी पार्क विकसित करना चाहता है। हालकि इस पेड़ कटाई पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगाई गई।

एक तरफ ‘एक पेड़ मां के नाम’ लगाकर वात्सल्य और प्रकृति प्रेम का ढोंग करती है, वहीं दूसरी ओर हजारों पेड़ उद्योगपतियों के हवाले कर देती है। ये कैसा दोहरापन है? आदिवासी अंचलों में पूंजीपतियों को जंगल काटने की खुली छूट देकर से नजर आती है। सरकार एक ओर पर्यावरण संरक्षण की बातें करती है, दूसरी ओर वनभूमि का औद्योगिक दोहन जारी है। क्या ‘हरियाली’ सिर्फ प्रचार का ज़रिया है और असली हरियाली की लाशें जंगलों में बिछाई जा रही हैं? क्या पर्यावरण सिर्फ तस्वीरों और नारों तक सीमित रहेगा? 

अभी कहानी यहीं खत्म नहीं होती। जब लोग इन सवालों को उठाते हैं या सच दिखाने की कोशिश करते हैं तो उनकी आवाज भी दबा दी जाती है। हाल ही में अडानी समूह से जुड़ी रिपोर्टिंग पर अदालत और सरकार के आदेश से कई पोस्ट और वीडियो हटाए गए। अब जानते हैं इसके भी पूरे मामले। 

पूरा मामला 

दरअसल केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (एमआईबी) ने 16 सितंबर 2025 को दो मीडिया हाउस और कई यूट्यूब चैनलों को नोटिस भेजकर उन्हें अडानी समूह का जिक्र करने वाले कुल 138 वीडियो और 83 इंस्टाग्राम पोस्ट हटाने का आदेश दिया। मंत्रालय ने मंगलवार को लिखे पत्र में कहा कि ये आदेश अडानी एंटरप्राइजेज द्वारा दायर मानहानि मामले में उत्तर पश्चिम दिल्ली जिला न्यायालय द्वारा 6 सितंबर को जारी एकपक्षीय आदेश पर आधारित हैं। अदालत ने परंजॉय गुहा ठाकुरता, रवि नायर, अबीर दासगुप्ता, आयुष जोशी और आयुष जोशी सहित कई पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को उन लेखों और सोशल मीडिया पोस्ट को हटाने के लिए कहा था, जिनमें कथित तौर पर अडानी समूह को बदनाम किया गया था। इसी के साथ रवीश कुमार, ध्रुव राठी, न्यूज़लॉन्ड्री, द वायर, एचडब्ल्यू न्यूज़ और आकाश बनर्जी के द देशभक्त सहित कई पत्रकारों, मीडिया घरानों और रचनाकारों को हटाने के नोटिस जारी किए हैं। यह निर्देश अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (एईएल) द्वारा दायर मानहानि के एक मामले में दिल्ली की एक अदालत के गैग ऑर्डर का हवाला देते हुए जारी किया गया है। 

नोटिस में 138 यूट्यूब लिंक और 83 इंस्टाग्राम पोस्ट सूचीबद्ध हैं, जिनमें से न्यूज़लॉन्ड्री को अपने यूट्यूब चैनल से 42 वीडियो हटाने के लिए कहा गया है। वहीं द वायर को भी 16 सितंबर को यह नोटिस दिया गया है। मंत्रालय ने दावा किया है कि अदालत का आदेश 6 सितंबर को जारी किया गया था और अदालत के आदेश के बावजूद मीडिया संगठनों ने लिंक नहीं हटाए।

मंत्रालय का यह निर्देश रोहिणी न्यायालय के वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश अनुज कुमार सिंह द्वारा 6 सितंबर, 2025 को पारित एकपक्षीय अंतरिम निषेधाज्ञा से प्रेरित है। न्यायालय ने आदेश दिया था कि “अपने-अपने लेखों/सोशल मीडिया पोस्ट/ट्वीट्स से मानहानिकारक सामग्री हटा दी जाए और यदि ऐसा करना संभव न हो, तो उसे 5 दिनों के भीतर हटा दिया जाए।” 

एक तरफ हसदेव अरण्य, और असम जैसे इलाक़ों में जंगलों को लगातार काटा जा रहा है, जहां आदिवासी और स्थानीय लोग अपने जंगल और अपने अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे हैं। दूसरी तरफ इन्हीं खबरों का रिपोर्टिंग करने वाली वीडियो और सोशल मीडिया पोस्ट्स को हटाने के आदेश दिए जा रहे हैं। ये भी बता दें अदालतों और सरकार के जरिए सैकड़ों वीडियो और पोस्ट इंटरनेट से गायब कर दिए या फिर सोशल मीडिया से हटाने के लिए निर्देश दिए गए। अब सवाल ये उठता है कि जब जंगल काटे जाते हैं और पत्रकारों की आवाज दबाई जाती है तो असल में बचता क्या है जमीन जा जुबान? एक सवाल यह भी है कि विकास किसकी कीमत पर हो रहा है? अगर जंगल काट दिए जाएँगे तो आने वाली पीढ़ियों की हवा, पानी और ज़मीन ही नहीं बचेगी। विकास जरुरी है पर ऐसा विकास जो पेड़ों और प्रकृति को मिटा कर हो, वह आने वाले कल को बंजर बना देगा। सवाल यह भी है कि क्या हम आने वाली पीढ़ियों के लिए हरियाली छोड़ना चाहते हैं या सिर्फ कंक्रीट का जंगल? और उन आदिवासियों का क्या जो पूर्वजों से जंगल में रहते हुए उसे संवारते आ रहे हैं और उनकी आधी ज़िंदगी और संस्कृति जंगलों पर ही निर्भर है? 

 

यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें

If you want to support our rural fearless feminist Journalism, subscribe to our premium product KL Hatke