किसानों ने कम लागत और कम समय में गाजर धोने के लिए मशीन बनवाई है। मशीन से गाजर धोने में ज़्यादा मेहनत की ज़रुरत नहीं पड़ती।
खेती किसानों की जीविका का ज़रिया है। एक तरफ बुंदेलखंड का किसान इस समय मौसमी बदलाव की वजह से खेती करने से डरा हुआ है। लगातार बारिश, मौसम परिवर्तन से उसे खेती में फायदा नहीं हो रहा। जिसकी वजह से वह क़र्ज़ में डूबते चले जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ अगर फतेहपुर जिले के किसानों को देखा जाए तो वह काफ़ी खुश नज़र आ रहे हैं। उनके खेत पूरे साल हरे-भरे नज़र आते हैं। फसल की पैदावार भी अच्छी खासी होती है।
इस समय फतेहपुर जिले के किसानों द्वारा खेतों में गाजर की खुदाई की जा रही है। किसानों के खेतों में भारी मात्रा में सब्ज़ियां व गाजर लगी हुई हैं। गाजर की पैदावार इतनी ज़्यादा है कि उसे हाथों से धो पाना मुश्किल है। जिसे देखते हुए किसानों ने गाजर की धुलाई के लिए नई तरकीब सोची।
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जानिये कैसे आया गाजर धोने की मशीन बनाने का आइडिया
किसानों ने गाजर धुलाई के लिए पहले एक बहुत बड़ा ड्रम लिया। ड्रम में गाजर और उसमें पानी डालकर दो लोगों द्वारा उसे घुमाया जाता है। इस तरह गाजर पूरी तरह से साफ़ हो जाती है। अब हम इस बारे में थोड़ी और गहराई से बात करेंगे।
हमने इस बारे में किसानों से बात की। नंदा देव गांव के एक किसान ने बताया कि उनके गांव में 40% किसान गाजर की खेती करते हैं। इसके अलावा यहां पर अन्य फसलें भी बहुत अच्छी होती हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि यहां पर पानी भरपूर है। यहां हर किसान के खेत में पानी का बोर लगा हुआ है। वह कहते हैं कि वह साल की चार फसलें कर लेते हैं जिसमें गेहूं, चावल, चना, सरसो तो होता ही है। इसके अलावा मिर्ची, गाजर, गोभी, आलू यह सब चीज़ों की सब्जियां भी वह करते हैं।
उन्होंने 2 एकड़ में इस साल गाजर लगाई है। उनके पास खुद की खेती नहीं है। उनकी अच्छी खासी गाजर की फसल हुई है जिसे बेचकर वह मुनाफा कमाएंगे और अपने परिवार का भरण पोषण करेंगे। हमने उनसे गाजर की धुलाई के पीछे की सोच और मशीन के बारे में पूछा।
उन्होंने बताया कि घाटमपुर साइड में 60% किसान गाजर की खेती करते हैं। पहले वह लोग गाजर को खेतों से उखाड़ कर पानी में डाल देते थे। एक-एक गाजर को धोना पड़ता था तो काफी समय लग जाता था। इस वजह से इस साल उन्होंने यह मशीन बनवाई है। यह मशीन उन्हें 3000 रूपये की पड़ी है और इसका आईडिया उन्होंने घाटमपुर क्षेत्र में देखा था। देखने के बाद उन्हें लगा कि क्यों ना वह भी बनवा लें।
अब ड्रम से बनी हुई मशीन के ज़रिये वह एक बार में कम से कम 5 से 6 पसेरी गाजर धो लेते हैं। हां, थोड़ा सिकाई की मेहनत पड़ती है लेकिन बहुत जल्दी हो जाता है और यह आसान तरीका भी है। वह रोज़ जितना गाजर खोदते हैं उतना धो भी लेते हैं। इसके साथ ही गाजर समय से बिकने के लिए भी पहुंच जाती है। हां, यह बात सच है कि जब किसानों के खेतों में फसल अच्छी आ जाती है तो मार्केट का रेट सस्ता हो जाता है लेकिन किसानों को वह रेट नहीं मिल पाता जो उन्हें मिलना चाहिए। इसके बाद भी यह किसान खुश हैं। किसान जितनी लागत लगाते हैं, उसमें 20 प्रतिशत की उनकी कमाई हो जाती है। इसमें उनके परिवार का भी भरण-पोषण हो जाता है। वह इतने व्यस्त रहते हैं कि बाहर जाने की भी ज़रुरत नहीं पड़ती।
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पहले लगती थी ज़्यादा मेहनत और पानी
दूसरे किसान ने हमें बताया कि मशीन की वजह से इस साल उन्हें बहुत सुकून मिला है। सिर्फ वही नहीं बल्कि गाँव के 40 परिवार मशीन के ही ज़रिये गाजर की धुलाई करते हैं। वह बताते हैं कि पहले उन्हें टंकी में गाजर डालनी पड़ती थी फिर उसे पैरों से कचारना पड़ता था तब जाकर मिट्टी निकलती थी। इसके बाद फिर गाजर को धोया जाता था। पूरे ड्रम का पानी एक बार में खराब हो जाता था और साथ ही गाजर भी सही से नहीं धुल पाती थी।
सबसे बड़ी बात यह होती थी कि पैरों से गाजर को कचारने पर गाजर टूट जाती थी और उन्हें नुकसान होता था। मशीन आने से अब पानी की भी बचत होती है क्यूंकि एक बार में वह ड्रम में दो से तीन बारी 5 से 6 पसेरी गाजर डालकर धो लेते हैं। इसमें गाजर टूटती भी नहीं है और नुकसान भी नहीं होता। इस वजह से उन्हें मशीन बेहद अच्छी लगी।
वह चाहते हैं कि लोग ऐसे ही नए-नए आइडिया अपनाएं और खेती को बढ़ावा दें। कृषि उनका मुख्य रोज़गार है। उनके परिवार के सभी लोग खेती में लगे रहते हैं क्योंकि पहले जुताई,बुआई, खुदाई करना फिर क्यारी बनाना और इसके बाद गाजर पैदा की जाती है। यह सारा काम महिला और पुरुष मिलकर करते हैं।
वह कहते हैं कि अगर वह लोग ठेके में खेती लेते हैं और फिर मजदूरों से खेती करवाएंगे तो उनकी कुछ बचत नहीं होगी। जब हमने उनसे पूछा कि ठेके में कैसे खेती लेते हैं तो उन्होंने बताया कि उन्होंने 10,000 बीघा खेत पर साल भर के लिए ठेका लिया है। अब वह पूरा साल उसमें ही खेती करेंगे। जिसमें वह चार फसलें उगाएंगे और उससे जो आमदनी होगी उससे अपने परिवार का भरण-पोषण करेंगे। खेत के पास में ईंट-भट्ठा है जहां मज़दूर काम करने के लिए आते हैं। वह लोग भी गाजर खाते हैं और थोड़ा बहुत हाथ भी बंटा देते हैं।
इस खबर की रिपोर्टिंग गीता देवी द्वारा की गयी है।
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